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Aniruddha Bapu |
किसी मनुष्य का, किसी आदत का या किसी तत्त्व का गुलाम नहीं बनना चाहिए। नियमों का पालन अवश्य करें, लेकिन ‘नियमों के लिए इन्सान नहीं है बल्कि इन्सान के लिए नियम है’ इस बात को न भूलें। मानव को चाहिए कि उसने स्वयं ही मन पर जो दूसरों की राय आदि बातों के अनावश्यक आवरण चढा लिये हैं, उन्हें वह हटा दे। पत्थर में से अनावश्यक हिस्से को तराशने से मूर्ति बनती है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक- http://aniruddhafriend-samirsinh.com/carving-unnecessary-parts-from-a-stone-converts-it-into-a-statue/
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Aniruddha Bapu |
सज्जनों
से, आप्तमित्रों से मार्गदर्शन अवश्य लें, लेकिन औरों की राय से स्वयं को
मत ढालिए। मेरा जीवन मुझे अपने हिसाब से जीना चाहिए, अपने मत से उसे बनाना
चाहिए, यह मानव ध्यान में रखें। अपनी जिंदगी को स्वयं ही आकार देना चाहिए,
इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४
के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
विडियो लिंक- http://aniruddhafriend-samirsinh.com/dont-shape-your-life-by-others-opinions/
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Aniruddha Bapu |
अन्य
लोगों से, उनकी राय से मानव को अपना जीवन नहीं बनाना चाहिए। दूसरों के साथ
प्यार से पेश आना, परिजनों के प्रति रहने वालीं अपनी जिम्मेदारियॉं
निभाना, आप्तमित्रों से राय लेना यह आवश्यक है, लेकिन स्वयं को दूसरों के
हिसाब से ढालना यह मानव के लिए नुकसानदेह होता है। दूसरों की राय से मानव
अपने झूठे मैं को बनाता है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध
बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस
व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
हमेशा
अपना दुखडा रोते रहने से बच्चों पर भी इस बात का नकारात्मक परिणाम होता
है। पॅरेंट्स के द्वारा किया जानेवाला नकारात्मक आचरण और उनकी नकारात्मक
सोच बच्चों के मन पर बुरा परिणाम करते हैं। मानव स्वयं ही स्वयं का आधार
बनकर जीवन में सकारात्मक सोच रखे, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री
अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप
इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
मानव
को चाहिए कि वह पहले स्वयं की खोज करे। भगवान के द्वारा मानव को दिये गये
अच्छे गुणों की खोज मानव को करनी चाहिए। स्वयं में रहने वालीं सकारात्मक
बातों को, क्षमताओं को खोजकर भक्ति करके बढाना चाहिए इस बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में
बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक- http://aniruddhafriend-samirsinh.com/discover-your-skills/
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॥ हरि ॐ ॥
मध्यम मार्ग
परमपूज्य बापू व्दारा लिखे गये धर्मग्रंथ का नाम ही है "श्रीमद्पुरुषार्थ" । दैववादिता अथवा शरीर पर भस्म लगाने की बात बापू ने कभी नही की और किसी को भी शिक्षण, ग्रहस्थी, व्यवसाय आदि की ओर दुर्लक्ष करने को नही कहा । परन्तु प्रवृत्तिवादी जीवन को अधिकाधिक अच्छीतरह से जीने के लिये तथा उसके यशस्वी होने के लिये धर्म, अर्थ, काम, इन पुरुषार्थो के साथ-साथ भक्ती और मर्यादा, ये दो पुरुषार्था नितांत आवश्यक है, यही बात सद्गुरु श्री अनिरुध्द हमेशा से कहते रहे है ।
वर्तमान वैश्विक करण के युग में जिसकी वास्तव में दुर्दशा हो रही है, वह है मध्यम वर्ग । वे अच्छीतरह से पैसा, धन अर्जित नही कर पाते और प्राप्त धन का विनियोग कैसे करे, यह भी वे ठीक से नही समझ पाते । वास्तव मे यही मध्यम वर्ग, भक्ती व मर्यादा के पुरुषार्थ के पालन का ज्यादा से ज्यादा प्रयत्न करता रहता है और नीतीयों का, संस्कृती का संरक्षण व संवर्धन भी यही मध्यम वर्ग करता रहता है ।
जैसेही परमपूज्य सद्गुरु से इस वर्ष के "प्रत्यक्ष" के वर्धापन दिन के विषय के बारे में पुच्छा तो उन्होने तुरत जो उत्तर मुझे दिया वह था, "मध्यमवर्गिय लोगों को "अर्थ" पुरुषार्थ के बारे मे उचित जानकारी दो ।" उनके मर्गदर्शन में ही हम सब लोंगों ने विभिन्न विषयों, समीकरणों, नीतीयों तथा तत्त्वों पर निबंध तैयार किये । संपादक मंडल तथा उनके सहकर्मियों ने अविश्रांत मेहनत की । परमपूज्य बापू प्रत्येक बैठक मे नयी-नयी चीजें जोडते ही रहे ।
इस विशेषांक को तैयार करते समय हम सभी ने बहुत कुछ सीखा । मुख्य बात यह है कि हमें, बापू के सभी लोगों के प्रति प्रेम के एक अनोखे दृष्टिकोण का अहसास हुआ । बापू का प्रेम, प्रत्येक श्रध्दावान की सहायता करने के लिये कितना आतुर व तत्पर रहता है, इसका विलक्षण अनुभव हमे इस निमित्त से प्राप्त हुआ ।
परमपूज्य श्री अनिरुध्द द्वारा (बापू द्वारा) आपके हाथों में दिये गये इस "प्रत्यक्ष" के विशेषांक को जो कोई भी अपने जीवन में आचरित करेगा उअसे ही जीवन का वास्तविक अर्थ समझ मे आयेगा और वही इसे प्राप्त कर सकेगा ।
मात्र " इस अर्थ पुरुषार्थ की अधिष्ठात्री देवता श्रीलक्ष्मी, सबको ही धन प्रदान करती रहती है, परन्तु तृप्ती, शांती व समाधान सिर्फ नारायण के भक्तों को ही प्रदान करती है." परमपूज्य बापू के ये शब्द हथेली पर लिखकर रखो ।
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Aniruddha Bapu |
जो
मानव समय का उचित उपयोग नहीं करता, वही निकम्मा है। समय का उपयोग विकास के
लिए करना चाहिए, अपनी क्षमता को बढाना चाहिए। समय का उचित उपयोग करने के
बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के
हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
हर
एक मानव के पास ‘मैं हूं’ यह एहसास रहता ही है और उसके इस एहसास के कारण
ही उसके लिए दुनिया का होना मायने रखता है। यदि यह एहसास ही न हो, तब बाकी
की बातें बेमतलब साबित हो जाती हैं। मनुष्य के ‘मैं हूं’ इस एहसास के बारे
में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०९ अक्टूबर २०१४ के
हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
श्रीश्वासम्
यह द हिलिंग कोड ऑफ द युनिव्हर्स है। हर एक बीमारी को दूर करने वाला, हर
एक अडचन को मिटाने वाला वैश्विक हिलिंग कोड ‘श्रीश्वासम्’ है। श्रीश्वासम्
का आयोजन २०१५ के अप्रैल के अन्त में या मई की शुरुआत में किया जायेगा, यह
बात परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०४ दिसंबर २०१४ के हिंदी
प्रवचन में बतायी, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
झूठे अहं
से मुक्ति पाने का आसान उपाय | हनुमानजी का स्मरण करना और अपने आराध्य का
ध्यान करना इस प्रक्रिया से मानव झूठे अहं से अपना पाला छुडा सकता है।
झूठे अहं से मुक्त होने के सरल उपाय के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री
अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप
इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक- http://aniruddhafriend-samirsinh.com/an-easy-way-to-get-rid-of-false-self/
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Aniruddha Bapu |
शोकविनाशक
हनुमानजी | हनुमानजी जिस तरह सीताशोकविनाशक हैं, उसी तरह रामशोकविनाशक एवं
भरतशोकविनाशक भी हैं। मानव को यह सोचना चाहिए कि जो सीता और श्रीराम के
शोक हो दूर कर सकते हैं, वे हनुमानजी क्या मेरे शोक को दूर नहीं कर सकते?
अवश्य कर सकते हैं। हनुमानजी के शोकविनाशक सामर्थ्य के बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में
बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
मानव के
जीवन में रामरूपी कर्म और कर्मफलरूपी सीता के के बीच में सेतु बनाते हैं
महाप्राण हनुमानजी! रावणरूपी भय मानव के कर्म से कर्मफल को दूर करता है।
रामभक्ति करके मानव को चाहिए कि वह हनुमानजी को अपने जीवन में सक्रिय होने
दें। हनुमानजी के भयभंजक सामर्थ्य के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री
अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप
इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक- http://aniruddhafriend-samirsinh.com/bhaya-bhanjak-hanumanji/
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Aniruddha Bapu |
स्तुति
और निन्दा के कारण मानव अपने अंदर ‘झूठे मैं’ को पनपने देता है।
स्तुति-निन्दा को मन पर हावी होने देने के कारण मधु-कैटभ इन राक्षसों का
जन्म होता है। आदिमाता महाकाली का अवतार मधु और कैटभ इन दो असुरों का वध
करने हेतु हुआ था। मानव को इन राक्षसों से बचने के लिए क्या करना चाहिए,
इसके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर
२०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
भय के कारण मानव के मन पर बुरे परिणाम होते हैं। गर्भवती महिला के गर्भ पर भी भय का असर होता है। गर्भवती महिला को इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए भयकारी बातों से दूर रहना चाहिए। मानवी गर्भ पर भय किस तरह असर करता है, इसके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/fear-affects-the-human-fetus-part-3/
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Aniruddha Bapu |
भय के कारण मानव के मन पर बुरे परिणाम होते हैं। गर्भवती महिला के गर्भ पर भी भय का असर होता है। गर्भवती महिला को इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए भयकारी बातों से दूर रहना चाहिए। मानवी गर्भ पर भय किस तरह असर करता है, इसके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/fear-affects-the-human-fetus-part-2/
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Aniruddha Bapu |
भय के कारण मानव के मन पर बुरे परिणाम होते हैं। गर्भवती महिला के गर्भ पर भी भय का असर होता है। गर्भवती महिला को इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए भयकारी बातों से दूर रहना चाहिए। मानवी गर्भ पर भय किस तरह असर करता है, इसके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/fear-affects-the-human-fetus/
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Aniruddha Bapu |
मनुष्य के हाथों जो गलती हुई है, उसका एहसास रखकर, उसे भगवान के पास उसे कबूल कर, उसे सुधारने का प्रयास भक्तिशील बनकर मानव को अवश्य करना चाहिए। उस गलती के लिए स्वयं को बार बार कोसते नहीं रहना चाहिए। मनुष्य के इस तरह स्वयं को बार बार दोषी ठहराते रहने की प्रवृत्ति से ‘झूठे मैं’ को बल मिलता है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं ll
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/self-blaming-tendency-and-false-self/
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Aniruddha Bapu |
प्रसव के समय गर्भ की स्थिति-गति का परिणाम उस शिशु के यानी मानव के मन पर होता है। उस अवस्था में जिन परिवर्तनों से वह गुजरता है, उसके परिणामस्वरूप उस प्रकार के विचार दृढ होते हैं। गर्भस्थ शिशु अवस्था से शुरू होनेवाली इस विचार-शृंखला के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि उसके मन में पहला विचार कब आया था। गर्भस्थ शिशु अवस्था से ही मानव के मन में विचार आते रहते हैं यानी माँ की कोख से जन्म लेने से पहले भी गर्भस्थ शिशु अवस्था में भी मानव सोचता रहता है। विचारों की इस शृंखला के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८ सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/beginning-of-the-thought-process/
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Aniruddha Bapu |
मानव के मन में विचारों की
शृंखला चलती रहती है। मानव के अवास्तविक विचारों के कारण उसके मन में ‘झूठा
अहं’ बढता रहता है। प्रशंसा और निन्दा से भी यह झूठा अहं बढता है। यह झूठा
अहं ही मानव के जीवन में पीडा और भय उत्पन्न करता है। इस झूठे अहं की
घातकता के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८
सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैं ll
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बापु के अनेक श्रद्धावान मित्र दैनिक प्रत्यक्ष के अग्रलेखों से संबंधित विषयों से जुडी वेबसाईट्स् का इंटरनेट पर अध्ययन कर रहे हैं । यह अध्ययन करते समय कुछ श्रद्धावानों के मन में कौन सा स्कन्दचिन्ह उचित और कौन सी स्कन्दचिन्हसदृश आकृति अनुचित, यह प्रश्न उठ रहा था। इसलिए सभी श्रद्धावान मित्रों की जानकारी के लिए उचित और अनुचित आकृति नीचे दे रहा हूं ।
उचित स्कन्दचिन्ह (दो अलग अलग रंगों के त्रिकोण एक पर एक रखे हुए)
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अनुचित स्कन्दचिन्ह सदृश आकृति (दो अलग अलग रंगों के त्रिकोण एकदूसरे में फंसे हुए / अटके हुए)
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञll
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जब तक मानव का हनुमानजी
के साथ कनेक्शन नहीं जुडता, तब तक उसका विकास नहीं हो सकता और हनुमानजी के
साथ मानव का कनेक्शन जुडने के आडे मानव का झूठा मैं आता है। इस झूठे मैं को
खत्म करने के लिए मानव को भक्तिमय प्रयास करना चाहिए। झूठे मैं से छुटकारा
कैसे पाया जा सकता है इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू
ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-to-get-rid-of-false-self-2/
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मानव के भीतर रहने वाला
‘झूठा मैं’ उस मानव के मन में भय और भ्रम उत्पन्न करता है । मन को
बीमारियों का उद्भवस्थान कहा जाता है । भय के कारण ही पहले मन में और
परिणामस्वरूप देह में रोग उत्पन्न होते हैं । संतश्रेष्ठ श्री तुलसीदासजी
द्वारा विरचित श्रीहनुमानचलिसा की ‘नासै रोग हरै सब पीरा’ इस पंक्ति में
छिपे भावार्थ के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने
११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/naasai-rog-harai-sab-peera/
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Add caption |
मन, प्राण और प्रज्ञा ये
मानव के भीतर रहने वाले तीन लोक हैं । मानव के भीतर के इन तीनों लोकों का
उजागर होना मानव का विकास होने के लिए आवश्यक होता है । इन तीनों लोकों को
उजागर करने के हनुमानजी के कार्य के बारे में सद्गुरुपरम पूज्य सद्गुरु
श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस
व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/jai-kapees-tihun-lok-ujaagar-2/
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सन्तश्रेष्ठ
श्रीतुलसीदासजी श्रीहनुमानचलिसा स्तोत्र में हनुमानजी को ‘कपिश’ कहकर
संबोधित करते हैं । ‘कपिश’ यह संबोधन ‘कपि’ और ‘ईश’ इन दो शब्दों का अर्थ
अपने ११ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी
ने बताया । जिसे आप इस इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/jai-kapish-tihu-lok-ujagar/
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सन्तश्रेष्ठ
श्रीतुलसीदासजी हनुमानजी को हमेशा ही बडे प्यार से संबोधित करते हैं ।
श्रीहनुमानचलिसा स्तोत्र के प्रारंभ में वे ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर’
कहकर हनुमानजी की जयजयकार करते हैं । महाप्राण श्रीहनुमानजी के
ज्ञानगुनसागर स्वरूप के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने
अपने ११ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैंl
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अपने ‘झूठे मैं’ के कारण
मानव स्वयं के बारे में गलत कल्पनाएँ ही करता रहता है । मानव जब कुछ भी
नहीं करता, तब भी उसका मन विचार करते रहता है और विचार यह भी एक कर्म होने
के कारण कर्मफल के रूप में इन विचारों का परिणाम अवश्य ही मानव पर होता
रहता है । ‘झूठे मैं’ से प्रेरित विचारों की घातकता के बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन
किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/false-self-generated-thoughts-are-harmful/
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मानव यदि स्वयं अपनी
विवेकबुद्धि का उपयोग नहीं करता, तो उसका सही मैं दुर्बल बनता जाता है ।
दुर्बल मन पर भय आसानी से कब्जा कर लेता है और भय के कारण बार बार गलत
विचार आते रहते हैं । गलत विचारों की शृंखला से झूठा मैं ताकतवर होता है,
पनपता है । भय से ‘झूठा मैं’ किस तरह बढता है इस बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन
किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/fear-makes-false-self-more-stronger/
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मानव के मन में विचारचक्र लगातार चलता रहता है । मानव किसी भी बात के बारे में डर की भावना से सोचता है । इस अनुचित विचारशृंखला से उसका सही मैं दबकर झूठा मैं उसपर हावी हो जाता है । ‘झूठे मैं’ की उत्पत्ति के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-the-false-self-gets-created/
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मानव के जीवन में लोग जो उसके बारे में कहते हैं उसके आधार पर वह मानव अपनी एक झूठी प्रतिमा बना लेता है और वही उसका सही मैं है यह वह मान लेता है । इस भ्रम कारण से ही उसके जीवन में रण चलता रहता है । भगवान की शरण में जाकर इस ‘ झूठे मैं ’ के रण से मुक्ति पायी जा सकती है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-to-get-rid-of-false-self/
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अन्य लोगों से मानव अपने बारे में रहने वाली उनकी राय सुनकर ‘अपने मैं’ की धारणा बना लेता है। इससे वह अपने सही मैं को दबाकर झूठे मैं को ताकतवर बनाता है और इन दोनों के बीच की खींचातानी जीवन भर चलती रहती है । सही मैं और झूठा मैं के बीच की खींचातानी के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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मानव के भीतर के ‘ सही मैं ’ को यानी बिभीषण को महाप्राण हनुमानजी सामर्थ्य प्रदान करते हैं । वहीं, मानव के भीतर का ‘ झूठा मैं ’ यह कुंभकर्ण की तरह रहता है । मानव को चाहिए कि भगवान की भक्ति करके वह ‘ झूठे मैं ’ का दामन छोडकर ’सही मैं’ को प्रबल बनाये । मानव के भीतर रहने वाले ‘ सही मैं ’ और ‘ झूठा मैं ’ इनके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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साईनाथजी की शरण में गया और जीवन व्यर्थ हो गया ऐसा इस दुनिया में कोई भी नहीं है । यह साईवचन मानव के जीवन में सच हो सकता है, लेकिन इसके लिए उसका सच में साईनाथजी की शरण में जाना अनिवार्य है । शरण इस शब्द के अर्थ के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते
हैं l
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दैनिक ‘प्रत्यक्ष’ के कार्यकारी संपादक श्री. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी अर्थात हम सबके चहीते सद्गुरु अनिरुद्ध बापू द्वारा लिखित, संतश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी के ‘श्रीरामचरितमानस’ लिखित सुन्दरकाण्ड पर आधारित ‘तुलसीपत्र’ नामक अग्रलेखश्रृंखला का 1000वां लेख दि. 05-08-2014 को प्रकाशित हुआ। इस अग्रलेखश्रृंखला द्वारा बापू श्रद्धावानों के जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास करने संबंधी मार्गदर्शन कर रहे हैं, दुष्प्रारब्ध से लड़ने की कलाकुशलता सिखा रहे हैं और साथ ही साथ संकटों से समर्थरूप से मुकाबला करके उन पर मात करने की कला भी सिखा रहे हैं।
आप सबको यह बताने में हमें बड़ा हर्ष हो रहा है कि, ‘तुलसीपत्र’ अग्रलेखश्रृंखला में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध के 1000 लेख पूरे होने के उपलक्ष्यमें अक्तूबर महीने के मासिक ‘कृपासिंधु’ का अंक ‘सहस्र तुलसीपत्र अर्चन विशेषांक’ के नाम से प्रकाशित किया जाएगा।
इस अग्रलेखश्रृंखला में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने चण्डिकाकुल की पहचान, वेदों में से विद्या, गुरुशिष्य का नाता, भगवान किरातरुद्र और माता शिवगंगागौरी के सात अवतार, हल्दी, आमला, जव, मोगरा जैसे वनस्पतियों की उत्पत्ति की कथा, शिव-पारवती विवाह, स्कन्द-कार्तिकेय और ब्रह्मणस्पति-गणपति की जन्मकथा, गणपतिवाहन मूषकराज कथा जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मार्गदर्शन किया है।
परमपूज्य बापू द्वारा लिखे गए इस सहस्र तुलसीपत्रों का संपूर्ण विवरण करना असंभव है, परंतु सहस्र तुलसीपत्र अर्चन विशेषांक में डॉ. योगिंद्रसिंह जोशी इनमें से कुछ सार प्रस्तुत मुद्दों पर विवेचन करेंगे।
इसकी वजह से बापू ने अग्रलेखशृंखला द्वारा जो अनमोल मार्गदर्शन किया है उसका एक बार फिर पुनः अवलोकन होगा। सद्गुरु श्री अनिरुद्ध अपने श्रद्धावान मित्रों के लिए जो अथक मेहनत कर रहे हैं, उनके प्रेम के प्रति यह हमारी प्रतिक्रिया होगी, उनकी मेहनत के प्रति हमारा अभिवन्दन होगा।
अक्तूबर 2014 में ‘कृपासिंधु’ का यह विशेषांक मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी इन तीन भाषाओँ में एकसाथ प्रकाशित होगा, तो नवम्बर महीने में यह विशेषांक गुजराती भाषा में भी प्रकाशित किया जाएगा। सभी श्रद्धावान कृपया इस बात को नोट करें।
- श्री. समीरसिंह दत्तोपाध्ये,
प्रकाशक, कृपासिंधु
|| हरि ॐ || श्रीराम || अंबज्ञ ||
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अनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम में स्वतंत्रता दिवस समारोह बड़े शानदार तरीके से मनाया गया। अनिरुद्धास् अकैडमी ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट के डी.एम.वीस. द्वारा बड़ा ही प्रशंसनीय परेड पेश किया गया। मैं इसके फोटो संलग्न कर रहा हूँ।
इस समारोह में कुल १६३ डी.एम.वीस. इस परेड में शामिल हुए। परेड की जानकारी निम्नलिखित है।
- राष्ट्रीय ध्वज धारक > सुशांतसिंह राउत
- गुरुक्षेत्रम् ध्वज धारक > प्रेमावीरा कदम
- स्कन्द ध्वज धारक > प्रीतीवीरा रास्कर
- प्रमुख परेड कमाण्डर > दीपालीवीरा राउत
- प्लाटून क्र. १ - अंजलीवीरा सिंग
- प्लाटून क्र. २ - रुपेशसिंह मड़गे
- प्लाटून क्र. ३ - रविनावीरा खवले
- प्लाटून क्र. ४ - प्रवीणसिंह नाईक
- रेस्क्यू (बचाव) प्लाटून - सागरसिंह पाटील
- घोष पथक - शलाकावीरा गोवलकर
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Aniruddha Bapu |
भक्तमाता श्रीलक्ष्मी
स्वयं ऐश्वर्य स्वरूपा हैं, वहीं भक्तमाता राधाजी ऐश्वर्य की जननी हैं ।
सागर और सागर का जल, सूर्य और सूर्यप्रकाश ये जिस तरह अलग नहीं हैं, उसी
तरह राधाजी और श्रीलक्ष्मीजी अलग नहीं हैं । राधाजी और श्रीलक्ष्मी ये
भक्तमाता आह्लादिनी के ही दो स्वरूप हैं, इस बारे में पूज्य सद्गुरु श्री
अनिरुद्ध बापू ने अपने २५ मार्च २००४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस
व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/radhaji-and-shreelakshmi-are-two-forms-of-bhaktamata-aalhadini/
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Aniruddha Bapu |
भक्तमाता पंकजा
श्रीलक्ष्मी कमल में विराजमान हैं । कमल यह कीचड में से ऊपर उठकर हमेशा
ऊर्ध्व दिशा में आगे बढता रहता है । इसी तरह कुमार्ग को त्यागकर सन्मार्ग
पर आगे बढनेवाले के जीवन में भक्तमाता पंकजा श्रीलक्ष्मी प्रकट होती हैं ।
भक्तमाता पंकजा श्रीलक्ष्मी के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध
बापू ने अपने २५ मार्च २००४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में
देख सकते हैं |
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Aniruddha Bapu |
भक्तमाता
राधाजी का एक नाम श्रीमती है । भक्तमाता राधाजी हर प्रकार का धन भक्त को
देती हैं, भौतिक धन देती हैं । इसलिए वे श्रीमती हैं। साथ ही मन को सुमति
देनेवालीं भी भक्तमाता राधाजी ही हैं । भक्तमाता राधाजी के ‘श्रीमती’ इस
नाम के बारे में सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २५ मार्च २००४ के प्रवचन
में बतायी, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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Aniruddha Bapu |
आसुरी
मार्ग से हासिल की गयी संपत्ति को ऐश्वर्य नहीं कहा जाता क्योंकि वह न तो
प्राणमय होता है और ना ही वह ऊर्ध्व दिशा में ले जाने वाला होता है । उसे
पंक यानी दलदल कहते हैं और दलदल में फँसे हुए व्यक्ति का दलदल से बाहर
निकलना असंभव होता है । ऐश्वर्य और पंक के बीच का फ़र्क परम पूज्य सद्गुरु
श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने २५ मार्च २००४ के प्रवचन में स्पष्ट किया, जो
आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं |
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Aniruddha Bapu |
पृथ्वी के साथ जुडा हुआ
भौतिक धन, साधनसामग्री, जो प्राणसहित होती है, विकास की ओर ले जाने वाली
होती है, उसे ही ऐश्वर्य कहा जाता है । ऐश्वर्य इस शब्द का अर्थ उस शब्द
में रहने वाले बीजों के आधार पर क्या होता है, यह बात परम पुज्य बापूने
अपने गुरुवार दिनांक २५ मार्च २००४ के हिन्दी प्रवचन में बतायी, जो आप इस
व्हिडियो में देख सकते हैं l
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जो
भी भगवानमें विश्वास करते है, वो मानते है की, भगवान के पास हमे सब कुछ
देने की शक्ति है। भगवान के देने की शक्तिही राधाजी है। राधाजी भक्तोंको
आराधना करने के लिए प्रेरित करती है। राधाजी हमे आनंद कैसे पाना है ये भी
सिखाती है। इस बारेमें परम पुज्य बापूने अपने गुरुवार दिनांक २५ मार्च २००४
के हिन्दी प्रवचन मे मार्गदर्शन किया, वह आप इस व्हिडीओमें देख सकते है।
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चाहे सुख हो या दुख,
मानव को किसी भी स्थिति में भगवान से दूरी बढानी नहीं चाहिए । जीवन के हर
मोड पर, कदम कदम पर भगवान से जुडे रहना जरूरी है । मानव के जीवनरूपी वर्तुल
(सर्कल) की केन्द्रबिन्दु भगवान ही रहनी चाहिए । जो भगवान का हमेशा चिन्तन
करता है, उसके योगक्षेम की चिन्ता भगवान करते हैं । बुद्धि से भगवान की
पर्युपासना करने की ताकत राधाजी देती हैं, इस बारे में परमपूज्य सद्गुरु
अनिरुद्ध बापू ने अपने गुरूवार दिनांक २६ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में
मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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उपासना शब्द का अर्थ
हैं भगवान के नज़दीक बैठना। याने भगवान के गुणों के नज़दीक बैठना। मेरे मन
को भगवान के नज़दीक बिठाने की कोशिश करना, कम से कम मेरी बुद्धी पूरी तरह से
भगवान के शरण में लगानाl इस बारे में परमपूज्य सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने
अपने गुरूवार दिनांक २६ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में मार्गदर्शन किया वह
आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं।
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जब तक हम बुद्धी का अपराध
नहीं करते तब तक प्राणो से ताकत आती रहती हैंl जबभी बुद्धी का अपराध करते
हैं तो प्राणो की ताकत हम तक आ नहीं पहुचती l हमारे नीतिमन को ताकतवर बनाने
के लिए बुद्धी का इस्तेमाल करके हमें भगवान के शरण जाना चाहिए, इस बारे
में परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने गुरूवार दिनांक २६ फरवरी
२००४ के हिंदी प्रवचन में मार्गदर्शन किया वह आप इस व्हिडियो में देख सकते
हैं l
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