मानव के भीतर के ‘ सही मैं ’ को यानी बिभीषण को महाप्राण हनुमानजी सामर्थ्य प्रदान करते हैं । वहीं, मानव के भीतर का ‘ झूठा मैं ’ यह कुंभकर्ण की तरह रहता है । मानव को चाहिए कि भगवान की भक्ति करके वह ‘ झूठे मैं ’ का दामन छोडकर ’सही मैं’ को प्रबल बनाये । मानव के भीतर रहने वाले ‘ सही मैं ’ और ‘ झूठा मैं ’ इनके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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