॥ हरि ॐ ॥
मध्यम मार्ग
परमपूज्य बापू व्दारा लिखे गये धर्मग्रंथ का नाम ही है "श्रीमद्पुरुषार्थ" । दैववादिता अथवा शरीर पर भस्म लगाने की बात बापू ने कभी नही की और किसी को भी शिक्षण, ग्रहस्थी, व्यवसाय आदि की ओर दुर्लक्ष करने को नही कहा । परन्तु प्रवृत्तिवादी जीवन को अधिकाधिक अच्छीतरह से जीने के लिये तथा उसके यशस्वी होने के लिये धर्म, अर्थ, काम, इन पुरुषार्थो के साथ-साथ भक्ती और मर्यादा, ये दो पुरुषार्था नितांत आवश्यक है, यही बात सद्गुरु श्री अनिरुध्द हमेशा से कहते रहे है ।
वर्तमान वैश्विक करण के युग में जिसकी वास्तव में दुर्दशा हो रही है, वह है मध्यम वर्ग । वे अच्छीतरह से पैसा, धन अर्जित नही कर पाते और प्राप्त धन का विनियोग कैसे करे, यह भी वे ठीक से नही समझ पाते । वास्तव मे यही मध्यम वर्ग, भक्ती व मर्यादा के पुरुषार्थ के पालन का ज्यादा से ज्यादा प्रयत्न करता रहता है और नीतीयों का, संस्कृती का संरक्षण व संवर्धन भी यही मध्यम वर्ग करता रहता है ।
जैसेही परमपूज्य सद्गुरु से इस वर्ष के "प्रत्यक्ष" के वर्धापन दिन के विषय के बारे में पुच्छा तो उन्होने तुरत जो उत्तर मुझे दिया वह था, "मध्यमवर्गिय लोगों को "अर्थ" पुरुषार्थ के बारे मे उचित जानकारी दो ।" उनके मर्गदर्शन में ही हम सब लोंगों ने विभिन्न विषयों, समीकरणों, नीतीयों तथा तत्त्वों पर निबंध तैयार किये । संपादक मंडल तथा उनके सहकर्मियों ने अविश्रांत मेहनत की । परमपूज्य बापू प्रत्येक बैठक मे नयी-नयी चीजें जोडते ही रहे ।
इस विशेषांक को तैयार करते समय हम सभी ने बहुत कुछ सीखा । मुख्य बात यह है कि हमें, बापू के सभी लोगों के प्रति प्रेम के एक अनोखे दृष्टिकोण का अहसास हुआ । बापू का प्रेम, प्रत्येक श्रध्दावान की सहायता करने के लिये कितना आतुर व तत्पर रहता है, इसका विलक्षण अनुभव हमे इस निमित्त से प्राप्त हुआ ।
परमपूज्य श्री अनिरुध्द द्वारा (बापू द्वारा) आपके हाथों में दिये गये इस "प्रत्यक्ष" के विशेषांक को जो कोई भी अपने जीवन में आचरित करेगा उअसे ही जीवन का वास्तविक अर्थ समझ मे आयेगा और वही इसे प्राप्त कर सकेगा ।
मात्र " इस अर्थ पुरुषार्थ की अधिष्ठात्री देवता श्रीलक्ष्मी, सबको ही धन प्रदान करती रहती है, परन्तु तृप्ती, शांती व समाधान सिर्फ नारायण के भक्तों को ही प्रदान करती है." परमपूज्य बापू के ये शब्द हथेली पर लिखकर रखो ।
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