मानव के भीतर रहने वाला
‘झूठा मैं’ उस मानव के मन में भय और भ्रम उत्पन्न करता है । मन को
बीमारियों का उद्भवस्थान कहा जाता है । भय के कारण ही पहले मन में और
परिणामस्वरूप देह में रोग उत्पन्न होते हैं । संतश्रेष्ठ श्री तुलसीदासजी
द्वारा विरचित श्रीहनुमानचलिसा की ‘नासै रोग हरै सब पीरा’ इस पंक्ति में
छिपे भावार्थ के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने
११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-
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