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राजस्थान के अलवार जिला में रहनेवाले इम्रान खानजी शुक्रवार की रात को कभी भूला नहीं सकतें हैं । उस दिन वो हमेशा की तरह सो गए थे । इम्रानजी के मकान में टीव्ही ही नही है, तो सोने के पहले टीव्ही देखने को कोई सवालही पैदा नहीं होता है । किंतु वे जब सो रहे होगें, तब ऐसे कुछ भी अनहोनी घटना हो जाएगी, ऐसा कभी उन्होंने सपने में भी सोचा नहीं था । दूसरे दिन सुबह से उन्हे उनके दोस्तोंके फोन आ रहे थे और संदेशे भी आ रहे थे । वो यह बात जान ही नहीं पा रहे थे कि उन्हे उनके अपने दोस्त बधाई क्यों दे रहे है ? पर दोस्तों के बधाई देने का कारण पता चलने पर वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे । बार बार वो यह सब घटना सच है ना, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ, इस बात का यकीन अपने आप को दिला रहें थे ।
ब्रिटन के वेम्बले मैदान (स्टेडियम) में अनिवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदीजी ने जो भाषण किया था , उसमें उन्होने इम्रानजी की तारीफ की थी । जो लोगों ने शुक्रवार रात का प्रधानमंत्री मोदीजी का भाषण सुना होगा , उन्हें इम्रानजी ने असल में क्या किया है , इसकी जानकारी अवश्य ही होगी । इम्रानजी ने लगभग 52 मोबाइल ऐप की खोज की है, जो शिक्षा के क्षेत्र से जुडे हुए है ।
३७ साल उम्र के इम्रानजी अलवारा के स्कूल में शिक्षक के पद पर तैनात है । उल्लेखनीय बात यह है कि इम्रानजी के मकान में टीव्ही नहीं है, बल्कि कंप्यूटर है, जब कि उन्होंने कंप्यूटर की कोई ढंग की पढाई भी नहीं की है । पर वे उनका बहुत सा समय इंटरनेटपर तंत्रज्ञान के बारे में जानकारी हासिल करने में बिताते थे । साथ ही साथ उन्होंने इंजीनियरिंग कर रहे अपने भाई की किताबें भी रुची से और लगन से पढ़ीं हैं । उन्होंने नेट और किताबों के जरिए वेबसाइट डिजाइन और ऐप बनाने की जानकारी पाकर, २००९ साल में अपनी खुद की वेबसाइट बनायी थी । उसके बाद कई लोगोंने उन्हें ऐप्स बनाने की सलाह दी थी । २०१२ साल में इम्रानजीने नौवी कक्षा के छात्रों के लिए ’एनसीईआरटी लर्न सायन्स’ नाम का ऐप निर्माण किया था और उनके इस ऐप का काफी लोगों ने प्रयोग किया था । उसके बाद ३ सालों में उन्होंने लगभग ५२ ऐप्स निर्माण किए है , जो सारे के सारे शिक्षा क्षेत्र से जुडे है और गुगल प्ले स्टोअरमें मुफ्त में उपलब्ध भी हैं । गुगल प्ले स्टोअरमें ’जीकेटॉक’ नाम से खोजने पर इम्रानजी के सारे ऐप्स मिलतें हैं और आप उन्हें आसानी से डाऊनलोड भी करवा सकतें हैं । सारे जग से लेकर राजस्थान तक का सामान्य ज्ञान आप इस ऐप्स में पा सकतें हैं । साथ ही साथ ‘जनरल सायन्स इन हिंदी’, ‘एज्युकेशन अॅप्स’, ‘हिस्ट्री जीके इन हिंदी’ ‘राजस्थान प्रशासकीय सेवा’ ऐसे तरह कि विभिन्न ऐप्स भी उपलब्ध हैं । इम्रानजी बतातें है कि ‘जनरल सायन्स इन हिंदी’ यह ऐप अभी तक ७ लाख लोगोंने डाऊनलोड किया है और ५२ ऐप्स ३० लाख से अधिक लोगोंने डाऊनलोड किया है । इम्रानजी के इन्ही ऐप्स की जानकारी सोशल मिडीया में आने पर ऐप्स डाऊनलोड करनेवालों की गिनती और भी जादा तादात में बढेगी ।
इम्रानजी खुद एक शिक्षक होने की वजह से उन्हे शिक्षा के क्षेत्र से काफी लगाव है । शिक्षा का महत्त्व एक शिक्षक के सिवा और दूसरा कौन बेहतर समझा सकता है ? इसिलिए इम्रानजीने अपने सारे के सारे ऐप्स शिक्षा के क्षेत्र को समर्पित किए हैं । यह ऐप्स देश के हर छात्र को, खास कर के कम्पटीशन में सहभाग लेनेवाले छात्रों के लिए पढाई आसान करने के लिए बहुत ही फाय़देमंद बन सकतें हैं । आज कल के छात्रोंकी युवा पिढी किताबों से जादा मोबाईल में दिलचस्पी दिखा रही है, इस बात को मद्दे नजर रखतें हुए शिक्षा क्षेत्र से संबंधित ऐप्स अधिकतम मात्रा में उपलब्ध होने से , उनका लाभ बहुत जादा बच्चे ले सकतें हैं । एक विशेष बात यह भी है कि इम्रानजी ने निर्माण किए हुए ऐप्स हिंदी में भी उपलब्ध हैं ।विदेश में जाकर प्रधानमंत्रीने इम्रानजी के कार्य की सराहना करनेसे, सारे स्तरोंपर उनकी तारीफ की जा रही है , उन पर शुभेच्छा संदेशो की बौछार हो रही है और उनकी भेंट लेने लोगों की भीड लगी है । ’मैंने छोटीसी कोशिश की थी, पर प्रधानमंत्रीजी ने मेरी तारीफ करने से मुझे बहुत खुशी हो रही है, मैं अच्छा एहसास महसूस कर रहा हूँ ’ ऐसी भावना इम्रानजीने दर्शायी है ।
इम्रानजी बार बार यु- टयुबपर प्रधानमंत्रीजी का भाषण सुनकर सही में उन्होने मेरी ही तारीफ की थी ना इस बात को सत्यापित कर रहें है क्यों की बहुत समय बितने के बाद पर उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था ।
सच में देखा जाए तो एक छोटे से देहात के इंसान ने किया हुआ यह कार्य बहुत ही तारीफ के पात्र है । केंद्र सरकार द्वारा प्रक्षेपित किए जानेवाले ’ डिजीटल इंडिया ’ कार्यक्रम के दौरान देश के छोटे से छोटे देहातों में (ग्रामों में ) इंटरनेट की सुविधा उललब्ध कर देना यह अग्रिम (मुख्य) उद्देश्य है । इसपर गौर करने पर अलवार जैसे छोटे से जिला के देहात में रहकर इम्रानजीने तंत्रज्ञान के क्षेत्र में किए हुए इस कार्य का महत्त्व असाधारण ही है।
इम्रानजी के इस कार्य की जानकारी दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसादजीने हासिल कर ली है और हौसला अफजाई के रूप में उन्होंने इम्रानजी को इंटरनेट सुविधा मुफ्त में देने के आदेश बीएसएन कंपनी को दिए है , जिससे इम्रानजी जादा से जादा उपयुक्त ऐप्स निर्माण कर सकेंगे और शिक्षा क्षेत्र में खुले स्वरूप से अपना योगदान दे सकेंगें । -
उस दिन जम्मू - कश्मिर के अखनूर जिले के एक ग्राम में एक समारोह का आयोजन किया गया था। भारतीय सेना की दसवी इन्फ्रैंट्री डिविजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल कुलप्रीत सिंह और जम्मू-कश्मिर के पुलिस उपनिरीक्षक सिमरनदीप सिंह इस समारोह में प्रमुख अतिथी के रूप में मौजूद थे। भारतीय सेना ने १९९९ साल में कारगिल युद्ध के दौरान इन किसानों की जमीन अपने अधिकार में ली थी । सोलह साल के बाद किसानोंको उनकी जमीन वापस लौटाई गयी । इस समारोह में करीब ३७ एकड़ कृषि-भूमि को स्थानीय किसानों के सुपुर्द कर दिया गया। उस वक्त हरेक किसान का चेहरा खिल उठा था (हरेक किसान के चेहरे पर समाधान झलक रहा था )।
१९९९ के फरवरी माह में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मिर के नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास की चौकियाँ अपने कब्जे में कर लेने की शुरुवात की थी। पाकिस्तानी सेना ने इस कारवाई की शुरुवात करते वक्त कानोकान खबर नही होने दे थी अत: भारतीय गुप्तचर विभाग (जासूसी विभाग) को पाकिस्तानी सेना की इस कारवाई का पता देरी से चला और उसके बाद जो हुआ उसे सारे लोग जानते ही है ।
भारतीय सेनाने ’‘ऑपरेशन विजय’ हाथ में लेकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को यहाँ से भगा दिया था । कारगिल पर कब्जा करके उसके बाद पूरे कश्मिर को हडप लेने का पाकिस्तानी सेना का मनसुबा पानी में तो बह ही गया था और उपर से पाकिस्तानी सेना की नाक कट गयी थी । भारत को आसानी से हरा देंगे ऐसी दहाड भरी तोंपे पाकिस्तानी सेना दाग रही थी । ६५ एवं ७१ साल के युध्द से वाकिफ न होनेवाली पाकिस्तानी युवाओं को अपनी सेना पर बहुत भरोसा था पर वो कितना बेबुनियादी था, यह कारगिल युध्द से स्पष्ट हुआ था ।
पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जब भारतीय सेनाने जम्मू के नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास की किसानों की कृषी भूमी सुरक्षा के हेतु अपने अधिकार में ली थी । भारतीय सेना को पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकने के लिए जमीन में बारूदी सुरंग (माईन) बिछाने का काम करना था और उसी कारण से भारतीय सेना को वह कृषी -भूमी चाहिए थी । किसानों ने सुरक्षा के लिए तकरीबन ३० हजार एकड़ से अधिक मात्रा में अपनी कृषि-भूमि भारतीय सेना के हवाले कर (हाथों में सौंप) दी थी । भारतीय सेना के कई अधिकारी बतलाते हैं कि इस कारगिल युध्द में इस कृषि-भूमी पर बिछाए हुए बारूदी सुरंग ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभायी हैं । कारगिल युध्द में भारतीय सेनाने विजय हासिल कर ली थी किंतु किसानों की वह कृषि-भूमी उन्हें वापस लौटायी नहीं थी क्योंकि उस कृषि-भूमी में लगभग ८०० बारूदी सुरुंग (माईन) बिछा दिये थे और उन्हें नाकाम करने का काम कई सालों से शुरु था ।
२०१० साल में उस जमीन से बारूदी सुरंग हटाये जाने की सूचना जारी कर दी थी। उसके बाद कई किसानों को उनकी जमिनें लौटायी भी गयी थी किंतु अभी भी कई कृषि क्षेत्र में बारूदी-सुरंग बचे है ऐसी शिकायत किसानोंने दर्ज करने पर उस कृषि-भूमी में बारूदी-सुरंग ढूँढने की नयी कारवाई सेना को अपने हाथों में लेनी पडी थी । इस साल के मई मास में शुरु की हुई वह कारवाई अक्तूबर मास में खतम हुई । इस कृषि-क्षेत्र से बारूदी -सुरंग नाकाम (निकम्मा) करके बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना के २० जवान दिनरात इकठ्ठा कर रहे थे ।
अपनी कृषि-भूमी वापस पाकर यहां के किसान मानो खुशी से झूम रहे थे । उसके अलावा पाकिस्तान के हमले का धोखा भी करीबन नष्ट हो गया था ऐसे आसार दिख रहें थे क्यों कि भारतीय सेना उस जगह पर बहुत ही सावधानी से निगेबानी कर रही थी । उसी वजह से किसानों को उनकी हिफाजत और शांति सुनिश्चितता से प्राप्त भी हुई थी और उनको पेट पालने की समस्या का भी हल मिल गया था । -
जग में सर्वाधिक सोने के भंडारवाले देशों में जर्मनी का स्थान दूसरे क्रंमांक पर है। इस देश के पास 3,390 टन सोने का भंडार है। पर इसमें से 70 प्रतिशत से अधिक सोने का भंडार जर्मनी से बाहर है। जर्मनी का 1536 टन सोना अमेरीका के फेडरल रिजर्व के पास है, तो 450 टन ब्रिटन तथा तकरीबन 374 टन फ्रान्स के बैंक में है। दूसरे महायुद्ध के दौरान जर्मनी ने यह सोना इन देशों में सुरक्षित रखने हेतु दिया था। पर जर्मनी के राजनीतिज्ञों का मत है कि अब इस सोने को दूसरे देशों में सुरक्षित रखने की जरुरत नहीं है। इसलिए अब इसमें से कुछ टन सोना वापस लाने की कोशिशें जारी हैं। इस में फ्रान्स से 374 टन और अमेरीका में रखे हुए सोने के भंडार से 300 टन सोना वापस लाने की योजना आंकी गई है।सन 2020 में यह सोना जर्मनी में वापस लाया जाएगा ऐसी आशा जर्मन बैंक एवं सत्ताधारियों ने जताई थी। फ्रान्स ने यह सोना लौटाने की बात भले ही मानी हो, मगर अमेरीका के फेडरल रिजर्व ने यह सोना दिखाने या उसका अंशमात्र भी लौटाने से इन्कार कर दिया है। इसका स्पष्टीकरण देते हुए ’सुरक्षा का मुद्दा’ और ’सोना देखने आनेवालों के लिए जगह नहीं है’ ऐसे कारण बताए गए।मगर जर्मनी अपना सोना देखने की बात पर अटल है, ऐसी घोषणा करती रही। तत्पश्चात जब जर्मन प्रतिनिधि न्यूयॉर्क गए तब सोने की पांच-छे ईंटें दिखाकर ’यह आपके सोने के भंडार में से है’, यह कहकर उन्हें बिदा किया गया। पर इसके बाद फिर से जर्मनी ने अपने प्रतिनिधियों को अमेरीका भेजने का निर्णय लिया।जर्मन प्रतिनिधियों की दूसरी भेंट में उन्हें न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व के सोने के वॉल्ट तक प्रवेश दिया गया। मगर इस बार फिर से फेडरल रिजर्व ने चालाकी से उन्हें नौं कमरों में से केवल एक ही कमरा खोलकर दिखाया। कमरा खोलने के बाद भी सोना केवल देखा जा सकता है, उसे छूआ नहीं जा सकता, ऐसी ताकीद भी दी गई। अमेरीका द्वारा किए गए इस व्यवहार के बाद जर्मन प्रतिनिधि हाथ मलते हुए लौट आए।अमेरीका के फेडरल रिजर्व द्वारा जर्मनी के साथ किया हुआ यह बर्ताव और सोने के भंडार के संदर्भ में अपनाई हुई भूमिका अंतरराष्ट्रिय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है, तथा इससे एक नई बात सामने आई है, वह यह कि वास्तव में फेडरल रिजर्व के पास अधिक सोना नहीं बचा है।और इस संदेह को पुष्टि मिली है अमेरीका के एक निजी निवेश निधि (हेज फंड) के व्यवस्थापन परिचालक विल्यम केय के विवादास्पद विधान से कि, ’जर्मनी को उसका सोना कभी भी दिखाया नहीं जाएगा। अमेरीका के फेडरल रिजर्व जैसे केंद्रीय बैंकों ने यह सोना देश स्थित जे.पी. मॉर्गन तथा गोल्डमन सॅच जैसे निजि बैंकों को दिया है। बाजार में सोने की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। इसके बदले में फेड को सिक्यूरिटीज दी गई हैं। जर्मनी को अपना सोना कभी भी दिखाई नहीं देगा, क्योंकि वह मेरे तथा मुझ जैसे निवेशकों के खातों में सुरक्षित रखा गया है।’जुलाई 2013 में केय द्वारा किया गया यह विधान जर्मनी का सोना वापस लाने की सभी आशाओं पर पानी फेरनेवाला साबित हुआ। केय ने खुद कई साल गोल्डमन सॅच में कार्य किया होने के कारण उनका यह विधान गैरजिम्मेदार या निरर्थक नहीं माना जा सकता।इस विवादास्पद विधान से जर्मनी की केंद्रीय बैंक अर्थात ‘बुंडेस बैंक’ खासी घिर गई है। एक तरफ सोना वापस लाने के लिए बढता हुआ दबाव और दूसरी तरफ फेडरल रिजर्व द्वारा बेरुखी, ऐसे दोहरे संकट से इस बैंक को जूझना पड रहा है। इससे सामयिक समाधा हेतु बैंक ने एक निवेदन प्रसिद्ध किया है कि, केय द्वारा की गई विवेचना पर हम कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते।इसी के साथ निवेदन में यह भी दर्ज किया गया है कि, अमेरीका के फेडरल रिजर्व द्वारा दी गई पारदर्शक जानकारी पर हमारा विश्वास है, तत्पश्चात परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। परंतु जर्मनी के नागरिक इस बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। बल्कि जर्मनी के विभिन्न क्षेत्र के दिग्गजों ने मिलकर स्वतंत्र मुहीम चलाई है जिसका नाम है, ’रिपैट्रिएट अवर गोल्ड’ अर्थात हमारा सोना लौटा दो। इस मुहीम के नेताओं ने आरोप लगाया है कि सन 2020 तक अमेरीका से 300 टन तथा फ्रान्स में रखा हुआ सोना वापस लाने हेतु दिए गए आश्वासन अधूरे हैं और टालमटोल करने के तरीके हैं।जर्मनी के इस प्रसंग के बाद और एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दा उपस्थित हुआ है और वह यह कि क्या फेडरल रिजर्व के पास वास्तव में सोने का भंडार है? फेडरल रिजर्व के दावे के अनुसार अमेरीका के पास तकरीबन 8,133 टन इतने बडी मात्रा में सोने का भंडार है। यह सोना न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व, डेनेवर, अमेरीकी सेना ‘फोर्ट नॉक्स’ तल जैसे स्थानों पर रखा गया है।परंतु विवाद की बात यह है कि 1953 के बाद इनमें से किसी भी स्थान पर सोने का ’ऑडिट’ नहीं किया गया है। इसलिए यह प्रश्न निर्माण हुआ है कि, अमेरीका के फेडरल रिजर्व के दावे पर विश्वास कैसे किया जाए? जर्मनी को इस बात का खेद हुआ होगा कि उसके अधिकारियों से उचित व्यवहार नहीं किया गया, मगर अचरज की बात तो यह है कि अमेरीकी सांसदों को भी सन 1970 के बाद देश में सोने के भंडार का दर्शन नहीं कराया गया है। अमेरीका के चंद प्रसार माध्यमों ने तथा विश्लेषकों ने यह मुद्दा बार बार उठाया है। पर इसका उत्तर देते समय फेडरल रिजर्व हम पर विश्वास करें (’ट्रस्ट अस’) कहकर बात को टाला है। अमेरीका के वरिष्ठ सांसद रॉन पॉल ने सन 2011 में सोने के ऑडिट के संदर्भ में प्रस्ताव लाने का प्रयास किया, परंतु इस पर भी कोई कारवाई नहीं की गई है।इसलिए अमेरीका जितना सोना उसके पास होने का दावा कर रही है उसके अस्तित्व पर ही संदेह निर्माण हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में दूसरे देशों में रखे गए सोने का क्या हुआ होगा इसका अंदाजा ही लगा सकते हैं। आनेवाले समय में अमेरीका द्वारा जर्मनी के साथ गोपनीय करार करके या सोने की कीमत अदा करके इस प्रसंग को मिटाने की संभावना अधिक है। यदि ऐसा भी नहीं हुआ तो जर्मनी को ’हमारा सोना खो गया; किसी ने न देखा’ ऐसा चीखने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहेगा।जर्मनी को सोना दिखाने या सोने का परिक्षण कराने के लिए अमेरीका सरकार भले ही नहीं मानती हो फिर भी यह सोना है, और इस पर जग विश्वास करे, इस बारे में वह आग्रही है। देखा जाए तो चलन और सोने का संबंध अमेरीका ने ही सन 1971 में तोड दिया था। इसलिए यह समझ में नहीं आ रहा है कि सोना उसके पास है अथवा इस संदर्भ में विश्वास रखा जाए ऐसा दावा अमेरीका क्यों कर रही है। मगर सोने का भंडार, अपनी अर्थव्यवस्था और चलन के बारे में अंतरराष्ट्रिय समुदाय और निवेशकों को विश्वास दिलाता है। अमेरीका के अर्थ विशेषज्ञों ने सोने के इतने भंडार रखने के प्रति विभिन्न कारण दिए हैं। फेडरल रिजर्व के भूतपूर्व गवर्नर ऍलन ग्रीनस्पॅन ने कहा था कि, जरुरत पडने पर इस्तेमाल करने हेतु सोने का भंडार रखा है। तो विद्यमान गवर्नर बेन बर्नांके ने उत्तर दिया कि सोने का भंडार जतन करना यह दीर्घकालीन परंपरा है।मुडीज् ऍनालिटिक्स में प्रमुख अर्थ विशेषज्ञ के रूप में जाने जानेवाले मार्क जैंडी ने इन शब्दों में सफाई देने की कोशिश की कि, हमारे पास सोने का बडा भंडार होने की वजह से निवेशकों को कुछ हद तक विश्वास होता है।भारत जैसे देश ने सन 1991 में आर्थिक संकट के दौरान सोना गिरवी रखकर पैसे जुटाए थे और अर्थव्यवस्था को संभाला था। गिरवी रखने के लिए सोना था इसलिए उस दौर में अर्थव्यवस्था पर निवेशकों का विश्वास गंवाने पर भी भारत को निधि प्राप्त हुई।अब अमेरीकी प्रतिनिधी भी ऐसी टीका करने लगे हैं कि, अर्थव्यवस्था कितनी भी सुदृढ क्यों न हो फिर भी उसका आधार सोना ही होना चाहिए, प्रिंटिंग प्रेस में संपत्ती बनाई नहीं जा सकती।इसीलिए फेडरल रिजर्व के पास रखे हुए जर्मनी के सोने का क्या हुआ, यह प्रश्न केवल अमेरीका और जर्मनी तक ही सीमित नहीं रह सकता। इसकी वजह से अमेरीका तथा विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं। वास्तव में जर्मनी को अभी ही अपना सोना फेडरल रिजर्व से वापस लेने की क्यों सूझी, यह बात सोचने योग्य है।अमेरीकन अर्थव्यवस्था कर्ज के बोझ तले कुचली जाते समय केवल जर्मनी में ही नहीं बल्कि विश्वभर में अविश्वास, अनिश्चितता का वातावरण निर्माण हो गया है। विश्व अर्थव्यवस्था पर इसके विपरीत परिणाम होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। इसीलिए जर्मनी के स्वामित्व की सोने की ईंटें उन्हीं को पुन: प्राप्त हों, यही हम सबकी मंगल कामना है।॥ हरी ॐ॥- अंबरीष परळकर
Read in English : http://www.aniruddhafriend-samirsinh.com/the-lost-gold-of-germany-1/More reference : http://www.bloomberg.com/news/features/2015-02-05/germany-s-gold-repatriation-activist-peter-boehringer-gets-results#BringBackOurGold
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‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पो’ में लॉर्ड केल्वीन भी सहभागी हुए थे। ‘इंटरनेशनल नायगरा कमीशन’ के अध्यक्ष के रूप में उनकी अपनी पहचान थी। इस ‘नायगारा कमिशन’ पर नायगारा के उस जगप्रसिद्ध जलप्रपात पर जलविद्युत प्रकल्प बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। टेसला के प्रदर्शन को देखकर लॉर्ड केल्वीन आश्चर्यचकित हो उठे थे। पहले ‘एसी करंट सिस्टम’ के विरोध में रहनेवाले लॉर्ड केल्वीन इस प्रदर्शन के पश्चात् पूर्णरूप से ‘एसी करंट सिस्टम’ के समर्थक बन गए। इतना ही नहीं, बल्कि लॉर्ड केल्वीन ने नायगारा पर जलविद्युत प्रकल्प बनाने का प्रोजेक्ट उन्होंने डॉ.टेसला कार्यरत रहनेवाली वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिकल कंपनी को ही दिया।
१ मई १८९३ के दिन ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पोझिशन’ की जोरदार शुरुआत हुई। पहले दिन ही इस ‘एक्स्पो’ की एक लाख से अधिक लोगों ने मुलाकात की। इस भव्य प्रदर्शन में जगह-जगह पर प्रस्तुत किये गए विविध कक्ष एवं दालानों में लोग दाखिल हुए। ‘एक्स्पो’ का प्रथम दिन होने के कारण लोगों का उत्साह और भी अधिक दुगुना हो गया था। परन्तु इस एक्स्पो के देखने के लिए आने वाले सभी लोग विस्मित हो उठे थे रात्रि के समय। जब इस एक्स्पो के कारण वहॉं का सारा वातावरण विविध प्रकार के प्रकाश से जगमगा उठा था। ध्यान रहे १८९३ में रात्रि के समय रोशनी की इतनी अधिक जगमगाहट देखने का सुअवसर इससे पहले किसी को भी नहीं मिला था। इसीलिए इतना अधिक प्रकाश देखने पर ‘एक्स्पो’ को भेट देने वाले लोगों को कितनी हैरानी हुई होगी, इसके बारे में जान लेना उचित होगा।
यही कारण था कि इस ‘एक्स्पो’ की ‘इलेक्ट्रिसिटी बिल्डिंग का दालान’ आकर्षण का प्रमुख केन्द्र साबित हुआ। डॉ.टेसला ने ‘हाय फ्रिक्वेन्सी’ तथा ‘हाय व्होल्टेज’ का उपयोग करके विविध प्रकार के गॅसवाले ट्यूबज तैयार किये थे। इसकी जानकारी हम हासिल कर चुके हैं। उन्हीं ट्यूबज् का उपयोग उन्होंने एक्स्पों में (पिछले लेख में) विविध प्रकार की ‘लाईटिंग’ के लिए किया था। आज के समय में ‘ट्यूबलाईटस्’ तथा ‘निऑन साईन्स’ का आरंभ डॉ.टेसला द्वारा तैयार किए गए इन्हीं लाईटस् से हुआ। अर्थात ‘फ्ल्युरोसंट लाईटिंग’ के जनक के रूप में भी हम डॉ.निकोल टेसला की पहचान दे सकते हैं। औद्योगिक क्षेत्र में इस प्रकार की लाईटस् की खोज करने के ४० वर्ष पूर्व ही डॉ.टेसला अपनी प्रयोग शाला में इस लाईटस् का उपयोग करते थे।
फ्ल्युरोसंट लाईटस् के प्रदर्शन यह डॉ.टेसला द्वारा ‘एक्स्पो’ में दिखाए गए कुछ प्रयोगों में से एक था। ‘एग ऑफ कोलंबस’। इसी कारण उपस्थित लोग हैरान थे। इस प्रयोग की जानकारी हासिल करने से पहले उसकी पृष्ठभूमि की जानकारी जान लेना ज़रूरी है। कोलंबस ने १५९३ में अमरिका खंड की खोज की। इसके पश्चात् कुछ लोगों के साथ चर्चा करते समय, किसी ने प्रश्न उठाया कि अमरीका की खोज यह कोई बहुत बड़ा कार्य नहीं है, उस पर अन्य लोगों ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी। यह सुनकर कोलंबस परेशान हो उठे। उन्होंने उपस्थित लोगों को चुनौती दी। अपने हाथ में एक अंडा लेकर कोलंबस ने उन से कहा कि बिना किसी भी आधार के इसे खड़ा करके दिखाये । कोई भी ऐसा नहीं कर पान के कारण उन्होंने हार स्वीकार कर ली। तब कोलंबस ने उस अंडे को हलके से पटककर पिचका दिया और अपनी कलाई पर खड़ा करके दिखाया।
ये था तो बहुत आसान, परन्तु उसे कैसे करना है इस युक्ति को जान लेने के बाद स्वाभाविक है, अमरीका की खोज आसान हो जाता है। यह बात खोज करने के पश्चात् ही पता चली इससे पहले यह एक चुनौती थी। यह कोलंबस ने स्पष्ट कर दिया। कोलंबस द्वारा अमरीका की खोज किये जाने को ४०० साल बीत गए। उसी की याद में स्मृतिप्रित्यर्थ ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पोझिशन’ का आयोजन किया गयाथा। इस प्रदर्शन में ही डॉ.टेसला ने कोलंबस द्वारा दी गयी। उसी चुनौती को स्वीकार किया। एक तांबे का अंडा बनाकर डॉ.टेसला ने उसे बिना किसी आधार के खड़ा करके दिखलाया। बिजली एवं चुंबकीय तत्त्वों का उपयोग करके डॉ.टेसला ने उस अंडे को खड़ा करने की महिमा कर दिखलाई। लकड़ी की एक वर्तुलाकार थाली लेकर उसमें उन्होंने तांबे के उस अंडे को रख दिया। यह लकड़ी की थाली जिस टेबल पर रखी गई उस टेबल के नीचे डॉ.टेसला ने ‘रोटेटिंग मॅग्नेटिक फिल्ड मोटर’ बिठाई थी। इसी मोटर को ‘अल्टरनेटिंग करंट जनरेटर मोटर’ कहते हैं। इसी के कारण वहाँ पर चक्राकार चुंबकीय क्षेत्र तैयार हो गया था। इसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव के कारण ही तांबे का वह अंडा भॅंवरे के समान गोल-गोल घुमने लगा। इस चुंबकीय क्षेत्र की फ्रिक्वेन्सी बढ़ाने के पश्चात् अंडे के घुमने की गति भी बढ़ गई। एक मर्यादित समय के अन्तर्गत इस अंडे की गति इतनी अधिक बढ़ गई कि वह स्थिर लगने लगा, यही उसकी विशेषता थी।
इस प्रयोग के माध्यम से डॉ.टेसला ने अल्टरनेटिंग करंट एवं मॅग्नेटिझम के क्षमता का प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किया। डॉ.टेसला अपने गहराई तक अध्ययन किए ज्ञान एवं अपने प्रयोगशीलता के कारणही इस प्रयोग को यशस्वी कर सके। ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्सोपिझिशन’ को जबरदस्त यश प्राप्त हुआ। छह महीनों तक यह ‘एक्स्पो’ चलता रहा। इस कालावधि में लगभग दो करोड़ ८० लाख लोगों ने इस एक्स्पो का लाभ उठाया। १८९३ के बारे में यदि हम देखते हैं तो यह एक अभूतपूर्व यश साबित होता है। इस एक्स्पों में दो और भी बातें लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थीं। ‘ग्रेट हॉल ऑफ इलेक्ट्रिसिटी’ यहाँ पर डॉ.टेसला के ‘एसी पॉवर सिस्टम’ का पूर्णत: प्रदर्शन किया जाता था। वहीं ‘हॉल ऑफ मिशनरी’ यहाँ पर बहुत बड़े आकार के एसी जनरेटरर्स लगाये गये थे। पूरे एक्स्पो को लगनेवाली बिजली की निर्मिती यही से की जाती थी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोन के अनुसार अत्यन्त उच्च स्तर के इस प्रयोग की व्यापकता को देख सभी लोग स्तब्ध रह गए। परन्तु इसे जान लेना उतना कठिन नहीं था कारण डॉ.टेसला ने दर्शकों की खातिर इसे बिलकुल आसान कर दिया था। इन दोनों बातों का बहुत अच्छा परिणाम इस प्रदर्शन को देखने आने वालों पर हुआ। इस प्रदर्शनी में आने वालों का कहना था कि हम सभी लोग एक ऐतिहासिक घटना के साक्षीदार हैं। यहीं से एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक क्रांति का आरंभ हुआ है। इस बात का एहसास भी वहाँ पर उपस्थित लोगों को हुआ। इस प्रदर्शन के कारण उद्योगपति, तंत्रज्ञ एवं सर्वसामान्यों के मन में ‘एसी करंट सिस्टम’ के बारे में उठने वाला डर भी निकल गया।
इस सारी भीड़ में लॉर्ड केल्वीन सहभागी हुए थे। ‘इंटरनॅशनल नायगारा कमिशन’ के अध्यक्ष के रूप में लॉर्ड केल्वीन की अपनी एक पहचान थी। यह ‘नायगारा कमिशन’ पर नायगारा के उस जगत प्रसिद्ध जलप्रपात पर जलविद्युत प्रकल्प बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। डॉ.टेसला के प्रदर्शन को देखकर लॉर्ड केल्वीन पहले से ही स्तब्ध थे। पहले ‘एसी करंट सिस्टम’ के विरोध में रहने वाले लॉर्ड केल्वीन इस प्रदर्शन के पश्चात् पूर्णरूप से ‘एसी करंट सिस्टम’ के समर्थक बन गए। इतना नहीं, बल्कि लॉर्ड केल्वीन ने नायगारा के जलविद्युत प्रकल्प बनाने का प्रोजेक्ट उन्होंने डॉ.टेसला कार्यरत रहनेवाले वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिकल कंपनी को दे दिया। ये अब तक डॉ.टेसला को मिलने वाल दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट था।
प्रदर्शन तक ही मर्यादित रहने वाले डॉ.टेसला के संशोधन का अब प्रत्यक्ष रूप में उपयोग होने वाला था। इसके बाद से ‘एसी करंट सिस्टम’ पूर्णरूप से पूरी दुनिया में प्रस्थापित होने वाला था। इसी कारण ‘वॉर ऑफ करंट’ डॉ.टेसला के ‘एसी करंट सिस्टम’ के विजय से समाप्त होने वाला था। नायगारा पर जलविद्युत प्रकल्प बनाने का स्वप्न डॉ.टेसला ने बहुत पहले ही देख रखा था और इस स्वप्न को साकार करने का सुअवसर उन्हें लॉर्ड केल्वीन ने दिया। इस प्रोजेक्ट के रूप में । कुछ लोग ऐसे भी थे जो उनके इस प्रगति से खुश नहीं थे।
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आज कल फुटबॉल वर्ल्डकप की धूमधाम शुरु है। तैयारी भी रखते हैं। दुनिया के सबसे बड़े ‘इव्हेन्ट’ के रूप में ब्राझिल में चल रहे फुटबॉल वर्ल्डकप का उल्लेख किया जाता है। आज के समय में इस प्रकार के ‘इव्हेन्ट’ आयोजित करना और उसे यशस्वी कर दिखाना यह तंत्रज्ञान व्यवस्थापनों के विकास के कारण वैसे तो बिलकुल आसान विषय बन चुका है। परन्त १८९३ में स्थिति ऐसी नहीं थी। इसीलिए अमरीका के शिकागों में आयोजित किये जाने वाले ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पो’ को अपार महत्त्व उस समय दिया जाता था। १२० वर्षों पश्चात् भी इस ‘एस्क्पो’ का महत्त्व स्थिर रहेगा, इस बात की गवाही इतिहास दे रहा है।
डॉ.टेसला कार्यरत रहने वाले ‘वेस्टिंगहाऊस इलेक्ट्रिक कंपनी’ को इस ‘एक्स्पो’ के विद्युतभार संवाहन करने का ‘प्रोजेक्ट’ न मिल पाये इसके लिए थॉमस अल्वा एडिसन के ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ ने जी तोड़ प्रयास किया था। इसके पीछे इस एक्स्पो को मिलने वाली वलय और प्रतिष्ठा थी।अमरीका की खोज करनेवाले ख्रिस्तोफर कोलंबस के अमरीका में कदम रखे ४०० वर्ष पूर्ण हो चुके, इसी खुशी में यह अतिभव्य प्रदर्शन आयोजित किया गया था। जहाँ पर यह एक्स्पो लगाया गया था। उस स्थान के मध्यभाग में ही एक विस्तृत तालाब बनाया गया था। कोलंबस के यात्रा के प्रतीक रुप में इस तालाब का निर्माण किया गया था।
१ मई १८९३ के दिन यह ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पोझिशन’ आरंभ हुआ और ३० अक्तूबर के दिन उसका समापन किया गया। पूरे छ: महीनों तक चलने वाले इस एक्स्पो में दुनियाभर के कुल ४६ देश सहभागी हुए थे। लगभग पौने तीन करोड़ नागरिकों ने इस समारोह का आनंद लूटा। इतने बड़े पैमाने पर आयोजित किये जाने वाले इस ‘एक्स्पो’ के लिए ६३० एकर जितनी बड़ी जमीन पर उस समय २०० तात्कालिक इमारतें बनाई गई थीं। इन इमारतों में खेती, खाणकाम, कला, यंत्र, इलेक्ट्रिसिटी तथा यातायात आदि के प्रति प्रदर्शन किया गया था।
इसी कारण ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पोझिशन’ को बहुत अधिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व प्राप्त हुआ था। विविध देशों के संस्कृति कि झलक दिखलाने वाले अनेक दालन यहॉं पर थे ही। परन्तु विविध यूरोपीय देशों से ३५ लड़ाकू जहाज और १० हजार से अधिक नौदल अधिकारी एवं नौसैनिक अपने-अपने देशों के नौदलों के सामर्थ्य का प्रदर्शन यहॉं पर दिखा रहे थे। उस समय यह एक्स्पो केवल अमरीका ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा प्रदर्शन साबित हुआ था। इस एक्स्पो में लगभग ३५ लाख चौरस फूट जितनी जगह प्रात्यक्षिक के लिए संभालकर रखी गई थी। इन में से सबसे बड़ा प्रदर्शन था ‘इलेक्ट्रिसिटी’ का डॉ.निकोल टेसला तथा ‘वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिसिटी कंपनी’ इस एक्स्पो के लिए जोर-शूर के साथ तैयारी कर रहे थे। ‘अल्टरनेटिंग करंट’ का प्रदर्शन दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए डॉ.टेसला के पास बहुत बड़ा अवसर एक्स्पो के रुप में चलकर आया था। इसके लिए डॉ.टेसला १२०० किलोमीटर का प्रवास करके शिकागो जा पहुँचे और वहॉं पर उन्होंने इस प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी।
परन्तु इस चुनौती को स्वीकार करना इतना आसान नहीं था । केवल अल्टरनेटिंग करंट अर्थात एसी सिस्टम का उपयोग करके संपूर्ण ‘एस्क्पो’ को विद्युतभार संवाहन करने के लिए डॉ.टेसला को दिनरात परिश्रम करना पड़ा। ऐसे में नैसर्गिक स्थिति भी इस पूर्वतैयारी के लिए अनुकूल नहीं थी। कड़ाके की ठंडी के कारण इस प्रदर्शन के पूर्वतैयारी के काम को कुछ सप्ताह तक स्थगित करना पड़ा था। परन्तु इन सभी रुकावटों की पर्वाह न करते हुए डॉ.टेसला निरंतर ‘पॉलिफेज एसी सिस्टम’ को दुनिया के सामने लाने के लिए संघर्ष करते रहे। केवल नैसर्गिक आपत्ति ही नहीं बल्कि ‘जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी’ ने भी डॉ.टेसला कार्यरत न होने वाले वेस्टिंग हाऊस कंपनी को पेटंट के नियम उल्लंघन करने के इल्ज़ाम में कोर्ट में खींच लिया।
‘जनरल इलेक्ट्रिक’ के पास पेटंट होने वाले ‘इलेक्ट्रिक बल्ब’ का उपयोग करने से इस कंपनी ने वेस्टिंग हाऊस को रोका था। इसी लिए इस ‘एक्स्पो’ को केवल तीन महीने का समय रहने पर वेस्टिंग हाऊस कंपनी को कोर्ट में खींच कर ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ ने उनके कार्य पर रोक लगा दिया। जो एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी थी। कारण इतने कम समय में इस पेटंट के कक्ष में न आने वाले भिन्न प्रकार के बल्ब की बड़े पैमाने में निर्मिती करना यह प्रयत्नस्तर असंभव था। परन्तु वेस्टिंग हाऊस की कंपनी ने एवं डॉ.टेसला ने इसके प्रति दूसरा विकल्प ढूँढ़ निकाला तथा इस ‘एक्स्पो’ के लिए केवल तीन महीने के समय में भी दो लाख बल्ब तैयार कर लिया।
यह एक अनोखी जीत थी। १८९३ में दो लाख बल्ब की संख्या उस अमरीक में उपयोग में लाये जाने वाले बल्बों की संख्या के २५% की बढ़ोत्तरी थी। आज के समय में भी दो लाख बल्ब अल्प समय में तैयार करना कठिन हो सकता है। १८९३ में जब उद्योग क्षेत्र का इतना विकास नहीं हुआ था उस समय में भी वेस्टिंग हाऊस कंपनी एवं डॉ.टेसला ने अपने परिश्रम के जोर पर इस असंभव को संभव बना दिया था।
डॉ.टेसला ने केवल अल्टरनेटिंग करंट के उपयोग मात्र से उन दो लाख बल्बज़ से संपूर्ण ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पोजिशन’ को प्रकाशित कर दिया था। इतना ही नहीं, बल्कि डॉ.टेसला ने इस एक्स्पो में ‘स्टेप अप एवं स्टेप डाऊन ट्रान्सफॉर्मर’, ‘एसी करंट जनरेटर’, दूर तक विद्युतभार संवाहन करने वाली ‘ट्रान्समिशन लाईन’. बड़े आकार एवं क्षमता रखने वाली ‘इंडक्शन मोटर’, रेलगाड़ी चलाने की क्षमता रखने वाली मोटर उसी प्रकार ‘डायरेक्ट करंट’ (डीसी) को ‘अल्टरनेटिंग करंट’(एसी) में परावर्तीत करने वाले कर्न्व्हटर भी प्रदर्शित किया। इसके साथ ही डॉ.टेसला ने अपने अन्य आविष्कारों को भी इस प्रदर्शन के माध्यम से दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
इस प्रदर्शन के लिए डॉ.टेसला ने कुछ भिन्न प्रयोग किए थे। विशिष्ट प्रकार के गॅस भरे हुए ट्यूब्ज़ को प्रकाशमान करके दिखलाया। जिन में विशिष्ट फ्रिक्वेन्सी का करंट पास करने पर वे विभिन्न रंगों में प्रकाशित हो रही थीं। उनकी उम्र भी अधिक थी। ‘फ्ल्युरोसन्ट ट्यूब्ज़’ का उपयोग डॉ.टेसला के पहले भी हो चुका था। परन्तु उनमें विभिन्न प्रकार के फ्रिक्वेन्सी का करंट छोडकर उसका प्रभाव एवं क्षमता बढ़ाने का श्रेय डॉ.टेसला को ही जाता है।
आज ट्यूब लाईट, सीएफएल, निऑन साईन एवं सोडियम व्हेपर लॅम्प इन के संशोधनों की नींव सौ साल पूर्व ही डॉ.टेसला ने डाल रखी थी। ऐसी अनेक संशोधकों का मानना हैं।
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राजा ऑब्रेनेव्हिक ने स्वयं आगे बढ़कर डॉ.टेसला के मार्गदर्शनानुसार बेलग्रेड इस शहर में बिलकुल एक ही वर्ष में बिजली लाकर दिखा दिया। बेलग्रेड शहर में बिजली का आना, इस शहर के लिए एक अद्भूत घटना साबित हुई। यहॉं की जनता ने बिजली का उत्साहपूर्वक धूम-धाम से स्वागत किया। सर्बिया के राजा ऑब्रेनेव्हिक ने डॉ.टेसला को ‘मेडल ऑफ सेंट सावा’ इस सन्मान से सम्मानित किया। विज्ञान के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी अतुलनीय कारागीरी करनेवालों को यह मेडल दिया जाता था।
डॉ.निकोल टेसला न्यूयॉर्क वापस आ गए और उन्होंने अपना संशोधन कार्य शुरू किया। इस वर्ष, अर्थात १८९२ में टेसला को दो विशेष प्रकार के पुरस्कार मिले। इनमें से एक ‘मेडल ऑफ सेंट सावा’ यह पुरस्कार उन्हें यूरोप दौरे के समय प्राप्त हुआ था। डॉ.टेसला जब यूरोप पहुँचे, तब उन्हें ‘बेलग्रेड’ शहर के प्रशासन की ओर से आमंत्रित किया गया। बेलग्रेड यह सर्बिया की राजधानी थी। वहॉं के नागरिकों की डॉ.टेसला के संशोधन की जानकारी प्राप्त हो, इसके लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था।
१जून १८९२ के दिन डॉ.टेसला रात्रि के ११बजे बेलग्रेड के रेल्वे स्टेशन पर उतरे। उनके स्वागत के लिए हजारों की तादात में लोग वहॉं पर उपस्थित थे। ये सारे लोग डॉ.टेसला से मिलने के लिए वहाँ आये थे। इन सभी लोगों को डॉ.टेसला के इस असामान्य कारीगरी के प्रति बेहद अभिमान हो रहा था। अपने सर्बिया देश के इस महान सपूत ने जो कार्य किया है इसके प्रति अपने देश का नाम रोशन हुआ, इस प्रकार के उद्गार वहाँ पर उपस्थित लोग प्रकट कर रहे थे। इसीलिए उन लोगों ने वहाँ पर उपस्थित रहकर डॉ.टेसला का जोरदार स्वागत किया!
इस सुअवसर पर डॉ.टेसला को पुष्पगुच्छ एवं उपहार देकर बहुत सारे लोगों ने उनके प्रति आदर व्यक्त किया। डॉ.टेसला ने इन सभी लोगों के अभिवादन का स्वीकार किया। वे उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उस समुदाय से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। ‘तुम सर्बिया के महान सपूत हो’ इस प्रकार का उद्गार वहॉं पर प्रस्तुत भीड़ का हर व्यक्ति प्रस्तुत कर रहा था। इनके इस विशेष सम्मान के लिए एक खास घोड़ेवाली बग्गी भी तैयार की गई थी। अपने देशवासियों द्वारा किया जानेवाला यह मान-सम्मान देख वे भावविभोर हो चुके थे। इस सुअवसर पर डॉ.टेसला ने अपने से मिलनेवालों को प्यार भरा अभिवादन किया।
इस स्वागत के प्रति डॉ.टेसला ने उपस्थित लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और यह भी कहा कि, ‘अब तक मुझे अपनी कुछ संकल्पनाओं को प्रत्यक्ष में उतारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन अभी मेरे उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हुई हैं। मेरे ये ध्येय अभी काफी दूर हैं। जिस दिन मेरी सारी संकल्पनाओं को मैं प्रत्यक्ष में उतार पाऊँगा और उससे संपूर्ण मानव जाति का कल्याण होगा तभी असल में मैं अपने आपकों सर्बिया का सपूत मानकर, मेरा जीवन धन्य हुआ ऐसा समझूँगा’ ऐसे उद्गार उन्होंने विनम्ररूप में व्यक्त किया।
दूसरे ही दिन डॉ.टेसला की मुलाकात सर्बिया के युवा राजा अलेक्झेंडर ऑब्रेनॉव्हिक से हुई। बेलग्रड शहर को बिजली की आवश्यकता है यह बात डॉ.टेसला ने वहाँ के राजा को बताई। डॉ.टेसला के विचार तथा उनके द्वारा वहाँ के नागरिकों के सन्मुख प्रस्तुत लिए जानेवाले प्रात्यक्षिक आदि देखकर राजा ऑब्रेनॉव्हिक बिलकुल आश्चर्यचकित रह गए। यही कारण था कि वहाँ के राजाने स्वयं आगे बढ़कर डॉ.टेसला के मार्गदर्शनानुसार बेलग्रेड शहर में केवल एक साल में बिजली लाकर दिखा दिया। बेलग्रेड शहर में बिजली का आना वहाँ के शहर के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटना साबित हुई। वहाँ की जनता ने बिजली का स्वागत बहुत ही जोरदार तरीके से किया। सर्बिया के राजा ऑब्रेनॉव्हिक ने डॉ.टेसला को ‘मेडल ऑफ सेंट सावा’ इस सम्मान से सम्मानित किया। विज्ञान के तथा उसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में अतुलनीय कारीगीरि करनेवालों को सम्मानित करने के लिए इसी प्रकार का मेडल दिया जाता है।
१८९२ में युरोप से न्यूयॉर्क वापस आने पर डॉ.निकोल टेसला को ए.आय.ई.ई.(AIEE) - अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स के उपाध्यक्षपद से विभूषित किया गया। ‘एआयईई’ यह संस्था १८८४ में स्थापित की गई थी। वायर कम्युनिकेशन, लाईट एवं पॉवर सिस्टम अर्थात बिजली का उपयोग करके ध्वनि एवं प्रकाश को दूर तक पहुँचाने के लिए संशोधन करना यही इस संस्था का ध्येय था। इस कार्य हेतु कुछ मशहूर इंजीनियरों की यह अत्यन्त प्रतिष्ठित एवं अग्रगण्य संस्था मानी जाती थी।
आज भी यह संस्था एक भिन्न नाम से कार्यरत है तथा इस संस्था को आज भी उतना ही सम्मान दिया जाता है। १९६२ में ‘एआयईई’ तथा ‘इन्स्टिट्यूट ऑफ रेडियो इंजिनिअर्स’ एवं नये सिरे से स्थापित होनेवाले इलेक्ट्रॉनिक्स इंजिनियरिंग की शाखाओं ने एकजूट होकर ‘आयईईई’(IEEE)' (इन्स्टिट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल ऍण्ड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजिनिअर्स) अथवा ‘आय ट्रिपल ई’ इस प्रकार का नाम धारण किया। डॉ.टेसला १८९२ से १८९४ तक ‘एआयईई’ के उपाध्यक्ष पद की शोभा बढ़ाई।
इस मानसम्मान को प्राप्त करते समय डॉ.टेसला के ‘अल्टरनेटिंग करंट’ एवं ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ के संशोधन को मान्यता प्राप्त होने लगी। उसी प्रकार अल्टरनेटिंग करंट का धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रुप में उपयोग भी शुरु हो गया था।
१८९३ में ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पो’ का दुनियाभर में सबसे भव्य प्रदर्शन किया जानेवाला था। इसके एक वर्ष पूर्व ही इस एक्स्पो के ‘इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रॅक्ट’ का लिलाम शुरु हो गया। थॉमस अल्वा एडिसन के जनरल इलेक्ट्रिक इस कंपनी ने इस ‘एक्स्पो’ के विविध प्रकार के प्रदर्शन के लिए विद्युतभारसंवाहन करने के लिए सूचना दी थी। इस सूचना में विद्युतभार संवाहन के लिए १८ लाख डॉलर्स का खर्च ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ ने आलेखित कर रखा था। परन्तु जॉर्ज वेस्टिंग हाऊस के ‘वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिक कंपनी’ ने मात्र अपनी सूचना में इसके लिए बिलकुल ४ लाख डॉलर्स आलेखित कर रखा था। जनरल इलेक्ट्रिक एवं वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिक कंपनी की ओर से आलेखित किए जानेवाले खर्च में इतनी अधिक तफावत थी, इसका कारण था कि ‘वेस्टिंग हाऊस कंपनी’ डॉ.निकोल टेसला के अल्टरनेटिंग करंट का उपयोग कर रही थी।
अपनी अपेक्षा बहुत ही कम रकम आलेखित करने से यह प्रोजेक्ट ‘वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिक’ को मिल जायेगा और इससे अल्टर नेटिंग करंट और भी अधिक लोकप्रिय हो जायेगा, इस डर से ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ ने अपनी सूचना में डाली गई रकम ७०% प्रतिशत से कम करके ५.५ लाख डॉलर्स पर लाकर रख दी। परन्तु जनरल इलेक्ट्रिक का यह डाव-पेच भी अयशस्वी साबित हुआ। ‘वेस्टिंग हाऊस इलेक्ट्रिक कंपनी’ को ही ‘वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पो’ को विद्युतभार संवाहन का प्रोजेक्ट दिया गया।
जनरल इलेक्ट्रिक तथा वेस्टिंगहाऊस कंपनी जिस वर्ल्ड कोलंबियन एक्स्पो के प्रोजेक्ट को पाने के लिए दौड़-धूप कर रही थी, वह एक्स्पो अर्थात हकीकत में क्या था? उस इतना अधिक महत्त्व क्यों दिया जा रहा था? इस बात की जानकारी हासिल करने के लिए शिकागो में लगने वाले एक्स्पो की जानकारी हमें व्यवस्थित रुप में लेनी चाहिए। यही एस्पो डॉ.टेसला के संशोधन का सर्वोच्च प्रदर्शन का व्यासपीठ बन गया। इसी कारण १८९३ का ‘वर्ल्ड कोलंबियन एस्क्पो’ अमरीका के इतिहास की अत्यन्त संस्मरणीय घटना साबित हुई थी। इसके बारे में विस्तृत जानकारी हम इस लेखमाला के अगले भाग में देखेंगे।
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‘टेसला कॉईल’ के संशोधन का प्रमुख आधार ‘इंपल्स’ ही थी। इसके बारे में डॉ.टेसला अधिकाअधिक विचार करने लगे। विद्युतप्रवाह बगैर वायर के सहारे प्रवास कर सकता है तो केवल इंपल्स के कारण ही इस बात का विश्वास उन्हें हो चुका था। उस समय एक और महत्त्वपूर्ण बात डॉ.टेसला के ध्यान में आई। इस इंपल्स के कारण विद्युतप्रवाह हवा द्वारा लहरों के समान (व्हेव्हज्) प्रवास न करके बल्कि किरणों की तरह रेज् सीधी रेखा में प्रवास कर रही थीं । इस संशोधन के कारण डॉ.टेसला को आगे चलकर अनेक महत्त्वपूर्ण शोध करने की युक्ती प्राप्त हुई। इसके बारे में अधिक जानकारी आगे चलकर हम प्राप्त करेंगे।
निसर्ग के बारे में (प्रकृति)विस्तृत निरीक्षण, अध्ययन एवं चिंतन यह डॉ.टेसला की विशेष पसंद थी। इसके बारे में हमने जानकारी हासिल कर ली है ‘मदर नेचर’ इस प्रकार से प्रकृति का उल्लेख करनेवाले इस महान अनुसंधान कर्ता को इस बात का भी एहसास हुआ कि निसर्ग का कार्य भी ‘इंपल्स’ द्वारा ही चलता रहता है। आसमान में चमकनेवाली बिजली, अचानक मस्तिष्क़ में उठनेवाले विचार, नयी-नयी कल्पनाओं का सूझना, नैसर्गिक चढ़ाव-उतार, ये सब कुछ उस निसर्ग देवता के इंपल्स का ही हिस्सा है। ऐसा विचार डॉ.टेसला करने लगे। सृष्टि के सजीव-निर्जीव होनेवाले तत्त्वों का संबंध परमेश्वर के साथ इंपल्सद्वारा ही जुड़ा रहता है। संपूर्ण विश्व में इंपल्स तत्त्व ही व्याप्त रहकर अध्यात्म में भी यह व्याप्त है इस बात का अहसास भी डॉ.टेसला को हुआ।
संशोधन पर अथक प्रयास करने के पश्चात् प्राप्त ज्ञान की जानकारी का लाभ हर कोई बेझिझक खुले आम उठा सके। इसके बारे में डॉ.टेसला बिलकुल खुलकर चर्चा करते थे। अपने नये संशोधन की जानकारी वे विविध जर्नल्स एवं परिषदों में घोषित करते थे। इसीलिए डॉ.टेसला के संशोधन की, प्रयोग की जानकारी विज्ञान-तंत्रज्ञान प्रसारित किये गए लगभग हर एक नियतकालिका द्वारा आने लगे यही कारण था कि डॉ.टेसला का नाम वैज्ञानिक क्षेत्र में धीरे-धीरे ङ्गैलने लगा। भविष्यकाल की उड़ान भरने वाली डॉ.टेसला की वैज्ञानिक दृष्टि को देखकर वैज्ञानिक-तंत्रज्ञान के क्षेत्र के लोग प्रङ्गुल्लित हो उठते थे। 30 जुलाई 1891 के दिन अमेरिकन सरकार ने डॉ.निकोल टेसला को अमरीका का नागरिकत्व प्रदान किया। सात साल पहले टेसला कुल चार सेंट के सिक्के लेकर इस देश में आये थे। इस देश ने बिलकुल सात वर्षों में ही डॉ.टेसला को नागरिकत्व प्रदान किया । इस बात को ध्यान में रखना चाहिए। अपने मित्रों से बात करते समय डॉ.टेसला कहते थे कि मुझे इस देश का नागरिकत्व मिलना बहुत बड़ी बात है ऐसा वे मानते थे।
उनके इस कार्यक्षेत के दौरान, विख्यात शास्त्रज्ञ लॉर्ड केल्विन ने डॉ.टेसला को ‘रॉयल सोसायटी ऑङ्ग लंडन’ में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। ‘रॉयल सोसायटी’ के सभी सदस्यों को डॉ.टेसला एवं उनके द्वारा किए जाने वाले संशोधनों के प्रति जानकारी हासिल करने की अपार उत्सुकता थी। अल्टर नेटिंग करंट एवं वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी इन दोनों के प्रचार के लिए यह एक बहुत सुंदर अवसर सामने से मिला है, ऐसा डॉ.टेसला को प्रतीत हो रहा था। इसी दृष्टिकोन से डॉ.टेसला ने अपने व्याख्यान की तैयारी शुरु की। टेसला ने अपने साथ इस प्रात्यक्षिक के लिए ज़रूरी लगनेवाले सभी चीज़े ले ली कारण ‘रॉयल सोसायटी’ के ये प्रात्यक्षिक उनकी दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थे।
‘रॉयल सोसायटी’ में प्रत्यक्ष व्याख्यान देते समय, डॉ.टेसला ने आरंभ ‘अल्टरनेटिंगकरंट सिस्टम’ के बारे में बिलकुल प्राथमिक धरातल पर जानकारी दी। इसके पश्चात उन्होंने ‘हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी’ एवं ‘हाय व्होल्टेज् अल्टरनेटिंग करंट’ के बारे में जानकारी देकर उससे होने वाले लाभ का वर्णन किया। इसके पश्चात् टेसला ने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी के बारे में लिए हुए संशोधन एवं उसके प्रात्यक्षिक को प्रदर्शित किया। फ्लोरसन्ट बल्ब एवं ट्युब्ज अपने हाथ में लेकर बिना वायर के ही उसे जलाकर दिखलाया कुछ ङ्गूट की दूरी पर होनेवाली छोटी मोटर्स भी डॉ.टेसला ने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी द्वारा चलाकर दिखाया। इसके प्रति होने वाली आधारभूत वैज्ञानिक तत्त्वों की जानकारी डॉ.टेसला ने स्वतंत्र रुप में इस बार सभी के सामने प्रस्तुत की।
डॉ. टेसला बड़े ही उत्साह के साथये सारी जानकारी ‘रॉयल सोसायटी’ के सदस्यों के दे रहे थे। सभागृह के सभी लोग उनके प्रात्यक्षिक एवं उनके द्वारा दी जानेवाली जानकारी देखकर आश्चर्यचकित हो गए। डॉ.टेसला के आविष्कार को देखकर सारे सदस्य मंत्रमुग्ध हो गए। उस समय वहाँ पर उपस्थित अँग्रेजी भाषी इंजीनियर्स ने इसके प्रति होने वाली शास्त्रीय प्रक्रिया के बारे में प्रश्न पुछे। इस पर डॉ.टेसला ने बिना कुछ छिपाये अपने संशोधन से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक उन्हें दी। परन्तु उनका यह संशोधन से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक उन्हें दी। परन्तु उनका यह संशोधन इतना उच्चस्तरीय था कि उनके द्वारा विस्तृत जानकारी देने के बावज़ूद भी डॉ.टेसला के संशोधन की तरह परिणाम बहुत ही कम लोग साध्य कट सके। इस व्याख्यान के बाद भी कुछ महीनों तक डॉ.टेसला यूरोप में ही रहे। इस समय में उन्होंने अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम के बारे में जानकारी प्रस्तुत करनेवाले व्याख्यान दिए। उसी प्रकार वे यूरोप में रहनेवाले अनेक शास्त्रज्ञों से भी मिले। इन शास्त्रज्ञों से उन्होंने उनके संशोधन के बारे में भी जानकारी हासिल की और उसके बारे में चर्चा की।
उनके संशोधन को अपार यश मिलने के बावज़ूद भी डॉ.टेसला के मन में दूसरे संशोधकों के प्रति अपार आदर था। दूसरे संशोधकों द्वारा किए गए संशोधन की जानकारी वे बड़े ही उत्सुकताअ से लेते थे। इससे यह बात सिद्ध होती है, कि डॉ.टेसला उदार हृदय के व्यक्ति थे। उनके मन में किसी भी कार्य के प्रति छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था। दूसरे अन्य शास्त्रज्ञों का वे उतना ही आदर करते थे।
जब वे पॅरिस में थे तब एक दिन रात्रि के समय उन्हें एक टेलीग्राम मिला। जिसमें उनके माँ के बहुत अधिक बीमार होने की खबर थी। अपना दौरा आधे पर ही छोड़कर वे तुरंत पॅरिस से अपने जन्मस्थान स्मिलियान में आ पहुँचे। और आते ही अपनी माँ से मिले जो उस समय अपने जीवन भी अंतिम साँसे गिन रही थीं। अपने बेटे टेसला का देख वे बहुत खुश हुईं। अपनी माँ से वे मिले उनसे बात चीत की रातभर वे सो ना सके। जैसे ही कुछ पल के लिए उनकी आँख लगी । उन्हें स्वप्न में कुछ देवदूत दिखाई दिए उनमें से एक उनके माँ के समान प्रतीत हो रही थी। हड़बड़ाकर वे उठ बैठे और कुछ ही पल में उनकी माँ इस दुनिया से चल बसी। 1 जून 1892 में उनकी माता ड्युका टेसला का निधन हुआ।
अपनी माँ से वे बहुत प्यार करते थे। 1879 में उनके पिता का देहान्त हुआ था। उस समय टेसला 23 वर्ष के थे। बचपन से ही वे अपनी कल्पनाओं के बारे में अपने परिवार एवं मित्रों आदि बातचीत करते थे। टेसला की बातें सुन सब उनका मज़ाक उड़ाते थे परन्तु उनकी माँ हमेशा से उन्हें प्रोत्साहित करती रहीं। टेसला के लिए माँ का ही बहुत बड़ा सहारा था। उनके अन्त्येष्ठि के बाद के सप्ताह भर अपने गाँव में ही रहे। वह समय उनके लिए बहुत ही दुखदायी था। इसके पश्चात् वे स्वयं भी दो-तीन सप्ताह तक अस्वस्थ रहे।
जन्मदात्री माँ का आधार खोने के बाद उन्हें केवल परमात्मा का ही आधार था और माता मेरी का। परन्तु उनके इस दैवी माता-पिताने उन्हें सदैव आधार दिया। कठिन से कठिन घड़ियों में भी लगातार संघर्ष करने के लिए लगने वाला सामर्थ्य उन्हें अपने दैवी माता-पिता से मिलता रहा।
इसके पश्चात् वे पुन: न्यूयॉर्क के अपने प्रयोगशाला में वापस लौट आये और अपने संशोधन कार्य में पूरी तरह से अपने आप को झोंक दिया।
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डॉ.निकोल टेसला का 1892 का यह अत्यन्त दुर्लभ ङ्गोटोग्राङ्ग। इसमें डॉ.टेसला अपने विशाल प्रयोग शाला में टेसला कॉईल के सामने बैठे हैं। उसी समय टेसला कॉईल में से ‘सङ्गेदद-नीले’ रंग के स्ङ्गुल्लिंग (स्पार्क)बाहर निकल रहे हैं। उसका वर्षाव हो रहा था और डॉ.टेसला मात्र अपने स्वभावनुसार शांतिपूर्वक पढ़ने में मग्न हैं।
‘इपल्स’ के वैज्ञानिक तत्व डॉ.निकोल टेसला को अपने संशोधन से कैसे प्राप्त हुए, इस बात की जानकारी हमने पिछले लेख में देखी। ‘हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी अल्टरनेटिंग करंट’ में उसका उपयोग करने पर करंट हवा के माध्यम से प्रवास करता है, इस बात की जानकारी डॉक्टर टेसला को संशोधन द्वारा ज्ञात हो चुकी थी।
इस बात की भी जानकारी हमने हासिल की। ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ की दृष्टि से टेसला द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था। इसके पश्चात् आनेवाले समय में यह वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी अर्थात बिना वायर के माध्यम से विद्युतभार संवाहन की संकल्पना डॉ.टेसला ने किस तरह विकसित की इस बात की जानकारी हम इस लेखमाला के माध्यम से हासिल करनेवाले हैं। इसके लिए डॉ.टेसला ने अपनी प्रयोगशाला में जो प्रयोग किये थे उनकी जानकारी हम विस्तारपूर्वक हासिल करेंगे।
इंपल्स के तत्वानुसार करंट हवा के साथ प्रवास करता है ये देखने के पश्चात् डॉ.टेसला ने इस पर भिन्न-भिन्न प्रयोग शुरु किए। सर्किट में बदलाव लाकर डॉ.टेसला ने उसमें रोटरी स्विच डाल दिया। इसके खुलने-बंद होने की गति मिनटों में 6 हजार जितनी थी और टेसलाद्वारा इस प्रयोग में उपयोग किया गया विद्युतप्रवाह 15 हजार व्होल्ट जितना था। पहलेवाले प्रयोग में टेसला को अपने शरीर में असंख्य सुइयों के चुभन होने का अनुभव हुआ था। यह हमने देखा था। इस भिन्न प्रकार के प्रयोग में रोटरी स्विच के कारण उस अनुभव की तीव्रता और भी अधिक बढ़ गई थी।
इसी कारण अधिक इंपल्सेस की निर्मिती हुई तथा व्होलेटेज और भी अधिक प्रमाण में बढ़ गए। इंपल्सेस बढ़ते रहने के कारण ही व्होलटेज का प्रमाण बढ़ता है, यह बात डॉ.टेसला ने जाना। यह प्रयोग चल रहा था उस समय ही सङ्गेद-नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग(स्पार्कस्) बाहर आ रहे थे। इस प्रयोग के दरमियान डॉ.टेसला के शरीर में असंख्य सुईयों की चुभन होने का अनुभव आ ही रहा था। परन्तु इस महान संशोधक ने ये सारी वेदनायें, शारीरिक कष्ट हँसते हुए स्वीकार किया। कारण उनकी अपने संशोधन एवं परमेश्वर पर अटल श्रद्धा थी। यह संशोधन यदि यशस्वी हो जाता तो संपूर्ण मानव जाति को ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ का वरदान प्राप्प्त हो चुका होता। इसके लिए डॉ.टेसला कितनी भी तकलीङ्गें उठाने के लिए तैयार थे। और इस प्रयोग के लिए उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया। इस प्रयोग के लिए उन्होंने अपने स्वयं के जान तक की परवाह नहीं की। डॉ.टेसला की सहायता के लिए उनके असिस्टंट भी थे, ही परन्तु डॉ.टेसला ने यह प्रयोग स्वयं ही किया, इस बात पर हमें ध्यान देना चाहिए।
इस प्रयोग में अधिकाअधिक सुधार करते-करते डॉ.टेसला ने इसके लिए स्वयं ही मेकनिकल रोटरी स्विच् बनाई। उसकी क्षमता एक सेकंड में दस हजार रोटेशन जितनी थी। इससे एक सेकंड में दस हजार इंपल्सेस की निर्मिती होती थी। उसमें से लगभग एक लाख व्होल्ट जितनी विद्युत निर्मिती होने लगी। इस प्रयोग से उन्हें एक अनोखे प्रकार के खोज की प्राप्ति हुई। उसे डॉ.टेसला ने ‘इलेक्ट्रिक सोना इङ्गेक्ट’ नाम प्रदान किया। इसी खोज के द्वारा आगे चलकर ‘इलेक्ट्रो थेरेपी’ का जन्म हुआ।
इस प्रयोग में डॉ.टेसला ने ‘मॅग्नेटिक अर्क गॅप’का उपयोग किया। ‘प्रायमरी’ एवं ‘सेकंडरी कॉईल’ की रचना की। अब इस प्रयोग द्वारा तैयार होनेवाले विद्युत का प्रमाण दस लाख व्होल्ट्स के भी आगे निकल गया। बगैर वायर विद्युतभार संवाहन अधिक दूर तक किया जा सकता है, यह बात डॉ.टेसला के प्रयोगद्वारा निदर्शित हुई।
इस प्रयोग के दरमियान सङ्गेद, नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग बहुत बड़े पैमाने पर बाहर निकल रहे थे। परन्तु ये स्ङ्गुल्लिंग सभी वस्तुओं में से प्रवास कर रहा था। आश्चर्य की बात तो यह हैं कि ये स्ङ्गुल्लिंग देखने में तो चिन्गारी की तरह दिखाई दे रहे थे, ङ्गिर भी उसका मानवी शरीर पर अथवा वस्तुओं पर किसी भी प्रकार का विघातक परिणाम नहीं हो रहा था। उलटे ये स्ङ्गुल्लिंग शरीर से होकर गुजरते थे तब, शरीर को हलका सा ठंड लगने का अनुभव हो रहा था।
इस प्रयोग के आरंभ में कम ङ्ग्रिक्वेन्सी पर डॉ.टेसला के शरीर पर सुईयों के चुभन का अनुभव हो रहा था, वहीं हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी पर बिलकुल भी पता नहीं चल रहा था। इसके बजाय यह ‘कुलिंग इङ्गेक्ट’ हाय ङ्ग्रिक्वेन्न्सी पर प्रयोग करते समय डॉ.टेसला को इसका अनुभव हुआ।
कुछ विशिष्ष्ठ ङ्ग्रिक्वेन्सी में यह सङ्गेद, नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग हमारे कक्ष में आनेवाले कुछ प्रकार के बल्ब एवं ट्युब्ज वायरलेस विद्युतप्रवाह द्वारा जलाकर दिखाते थे।
इस संशोधन को और भी अधिक आगे ले जाते समय, जिस कॉईल में से अधिक से अधिक स्ङ्गुल्लिंग बाहर निकलता था, उस कॉईल पर डॉ.टेसला ने ताँबे का गोला जोड़ दिया। इस ताँबे के गोले में से ये स्ङ्गुल्लिंग एकत्रित होकर बाहर निकलने लगे। आसमान में जिस तरह बिजली कड़कड़ाती है, उसी प्रकार की ध्वनी उत्पन्न करते हुए ये सङ्गेद-नीले रंग के स्ङ्गुल्लिंग केवल इस ताँबे के गोले से बाहर निकलने लगे। पहलेवाले प्रयोग में वे कहीं से भी बाहर निकल पड़ते थे। ताँबे के गोले का प्रयोग करने पर मात्र वे उसमें से ही बाहर निकलने लगे।
इस ताँबे के गोले का उपयोग करने के कारण और भी एक बात निदर्शन में आई। कम से कम विद्युत का उपयोग करने पर अधिकअधिक उर्जा, इस रचना के कारण निर्माण होने लगी। इसी रचना को आज हम टेसला कॉईल के नाम से जानते हैं। इस टेसला कॉईल के कारण डॉ.टेसला ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ का प्रयोग यशस्वी रुप में करके दिखा सके। उसी समय यह वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी ‘मानवों’ के लिए अत्यन्त सुरक्षित हो गयी। कुछ विशिष्ट सर्किट का उपयोग करके हर अंतर पर से इस वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग किया जा सकता है। इस तरह से डॉ.टेसला ने इलेक्ट्रिसिटी की संकल्पना को प्रत्यक्ष में उतारा।
आजकल के अधिकतर अॅनिमेशन ङ्गिल्मों में और कुछ कम्प्युटर गेम्स् में टेसला कॉईल बहुत ही घातक-अस्त्र होने का चित्रांकित किया जाता हैं। टेसला कॉईल में से निकलने वाला स्ङ्गुल्लिंग (स्पार्क) जिस वस्तु पर गिरता है, उस वस्तु को जलकर खाक होते दिखाया जाता था। परन्तु टेसला ने इन लोगों को अपने प्रयोग द्वारा यह साबित करके दिखा दिया था कि टेसला कॉईल घातक न होकर अतिशय उपयुक्त है।
मात्र टेसला कॉईल के बारे में कोई भी प्रयोग उसके संपूर्णज्ञान एवं विशेतज्ञों के मार्गदर्शन बिना नहीं करना चाहिए।
इसके बारे में गहराई तक अध्ययन करके उसका योग्य तरह से उपयोग करने पर टेसला कॉईल द्वारा बगैर वायर के विद्युतभार संवाहन किया जा सकता है, उसी प्रकार बगैर वायर के कुछ विशिष्ट प्रकार के बल्बज् प्रकाशमान किये जा सकते हैं।
21 वी सदी में विज्ञान तंत्रज्ञान का ध्रुतगती के साथ प्रगति होते समय भी डॉ.टेसला ने लोगों की सोच से परे इस तरह के विस्मयकारक प्रयोग यशस्वी कर दिखाए। इसके बारे में अधिक जानकारी हम अगले लेख में देखेंगे।
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यह दृश्य देख इस प्रेस कॉन्ङ्गरन्स में उपस्थित लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। एडिसन ने ‘एसी करंट सिस्टम’ के दुष्परिणाम दिखाने के लिए जानवरों को शॉक देकर मारा था। मात्र यहाँ पर डॉ.टेसला ने स्वयं के शरीर का उपयोग करके इतने प्रचंड भारवाले विद्युतप्रवाह का प्रदर्शन करके दिखलाया था। आश्चर्य की बात तो यह थी कि इस बात का बुरा असर उनके शरीर पर तिलमात्र भी नहीं हुआ था। यह देख वहाँ पर उपस्थित शास्त्रज्ञों का भी समावेश था। परन्तु यह पत्रकार परिषद में किया गया प्रयोग केवल यहाँ तक ही मर्यादित नहीं रहा।
डॉ.निकोल टेसला द्वारा प्रस्तुत की गई ‘अल्टरनेटिंग करंट’ की संकल्पना क्रान्तिकारी साबित हुई। परन्तु इसे मान्यता प्राप्त करवाने के लिए इन्हें काङ्गी संघर्ष करना पड़ा। कारण उस समय जिसे सबसे बड़ा प्रसिद्ध वैज्ञानिक माना जाता था, वहीं थॉमस अल्वा एडिसन ‘अल्टरनेटिंग करंट’ अर्थात ‘एसी’ का सबसे बड़ा विरोधक था, एसी सिस्टम के विद्युत भारसंवाहन के विरोध में वे बिलकुल गिरी हुई हरकतें करने से भी पीछे नहीं हटे। प्राणियों एवं मृत्युदंडवाले अपराधियों को बिजली के करंट देकर लोगों के मन में एसी सिस्टम के प्रति गलत धारणाएँ निर्माण की। उनकी इस तरह की हरकतों को देखकर नम्र एवं भावुक प्रवृत्तिवाले डॉ.टेसला का मन व्यथित हो उठा।
मानवीय जीवन को और भी अधिक सुखद बनाने के विचार धारणा रखनेवाले एवं उसी के लिए निरंतर प्रयासरत रहनेवाले डॉ.टेसलाने अपने ‘एसी सिस्टम’ के प्रति होनेवाले गलत प्रचारों को रोकने का ङ्गैसला किया। इसके लिए उन्होंने एडिसन के ही भाषा में उत्तर देने के बजाय उन्होंने जार्ज वेस्टिंग हाऊस की सहायता से एक ‘प्रेस कॉन्ङ्गरन्स’ का आयोजन किया। इस में उन्होंने जाने-माने शास्त्रज्ञों एवं उद्योगपतियों को आमंत्रित किया। इस प्रयोगशाला में डॉ.टेसला ने ‘एसी करंट’ द्वारा कुछ एक लाख व्होल्ट जितनी बिजली की निर्मिती करनेवाले जनरेटर्स बिठाये थे। यदि योग्य प्रकार से नियंत्रित करके इसका उपयोग किया जाये तो ‘एसी सिस्टम’ का विद्युतभारसंवाहन मानवजाति के लिए बिलकुल भी धोखादायक नहीं हो सकता है। यही डॉ.टेसला इस प्रयोगद्वारा साबित करना चाहते थे। इसीलिए वे उस जनरेटर के पास कुर्सी रखकर बैठ गए। इस बात को वे अन्य प्रकार से भी सिद्ध कर सकते थे परन्तु अपनी जान की परवाह न करते हुए वे स्वयं ही उस स्थान पर बैठ गए। मानवजाति की भलाई के लिए अपनी जात को भी खतरें में डाल देनेवाले डॉ.टेसला के इस व्यक्तित्व की महानता का अहसास हमें इस बात से ही हो जाता है।
एक तरङ्ग एसी सिस्टम के दुष्परिणाम को सिद्ध करने के लिए दूसरों के जान को खतरे में डालनेवाले एडिसन तो दूसरी ओर दूसरों की भलाई के लिए स्वयं के जीवन को ही खतरे में डालनेवाले डॉ.टेसला जिन्होंने इतना बड़ा धोखादायक विद्युत प्रयोग अपने शरीर पर करके दिखलाया। यह देख वहाँ पर उपस्थित सम्मानित लोग स्तब्ध रह गए। इन में माननीय शास्त्रज्ञों का भी समावेश था। परन्तु यह पत्रकार परिषद का प्रयोग यही तक सीमित नहीं रहा।
यहीं पर पहली बार डॉ.टेसला ने ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ अर्थात बिना वायर के ही विद्युतसंवहन के प्रात्यक्षिक भी दिखाये। इसके लिए इन्होंने दो ‘फ्ल्युरोसंट बल्ब’ एवं ट्युब स्वयं अपने हाथों में पकड़कर जलाकर दिखलाया। उन्होंने यह कैसे साध्य किया इसके लिए हमें उनके न्यूयॉर्क के प्रयोगशाला में उनके द्वारा किए गए संशोधन की जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी।
न्यूयॉर्क में इस लैब की स्थापना डॉ.टेसला ने जॉर्ज वेस्टिंग हाऊस द्वारा प्राप्त निधि से की थी। न्यूयॉर्क के इस लॅब में बहुस्तरीय संशोधन एवं उप्तादन हेतु अनेक बातों का ध्यान रखा गया था। इस लैब में अनेक विभागों का समावेश था जहाँ पर वे सखोल एवं सूक्ष्म धरातल पर अपना संशोधन किया करते थे। इसी स्थान पर प्रयोग के दरमियान अनेक निरीक्षण उनके सामने आये। इन सबसे संतुष्ट न हो वे और भी अधिक खोजे करते हुए अनेक पेटंट संपादन किए। ‘एसी सिस्टम’ भी उन्होंने इसी प्रकार तैयार किया और उसको अधिकाअधिक सुधार करते रहे। उन्होंने ‘एसी जनरेटर्स’ की ङ्ग्रिक्वेन्सी बढ़ाई और उसे 30,000 हर्टस् तक ले जाकर उसका परिक्षण किया। इसी में से ‘हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी अल्टरनेटिंग करंट’ का जन्म हुआ। संपूर्ण विश्व में विद्युतभार संवहन करने हेतु उन्होंने इसी प्रणाली का विचार किया था। इसी प्रणाली का उपयोग करके उन्होंने विविध प्रकार के जनरेटर्स बनाये थे। उसके पेटंट आज भी टेसला के नाम से जाने जाते हैं। ये एसी करंट यदि हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी के हैंङ्गिर भी उनका मानव शरीर पर कोई बुरा भी असर नहीं होता। किसी भी प्रकार का विघातक परिणाम नहीं होता। आकस्मिक तौर पर यदि करंट बिना किसी प्रकार की चोट पहुँचाये अपने आप बाहर निकल जाता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे ‘स्किन इङ्गेक्ट’ कहते हैं। इस प्रयोग के आधार पर डॉ.टेसला ने यह सिद्ध कर दिया था कि ‘एसी सिस्टम’ मानवीय जीवन के लिए किसी भी प्रकार से धोखादायक नही है।
इसीलिए वे इस प्रकर के वैज्ञानिक कसौटी पर सही एवं सत्य साबित होनेवाला निर्दोष ‘एसी सिस्टम’ विकसित कर सके।
ऐसा ही एक प्रयोग करते समय उन्होंने एक बिलकुल अनोखे प्रकार का वैज्ञानिक चत्मकार का अनुभव किया इस प्रयोग में उन्होंने एक धातु की झीनी तार ली और उसी के द्वारा उच्च दबाववाला ‘एसी करंट’ छोड़ दिया और तुरंत ही सर्किट बंद कर दिया। इससे वह वायर जल गई। उन्होंने पुन: ‘व्होल्टेज’ बढ़ाया इस समय उन्हें अपने ही शरीर में करंट का अहसास हुआ। उन्होंने सोचा शायद उस जली हुई वायर के टुकड़े चुभ रहे होंगे, परन्तु ऐसा कुक्छ भी न था। वैज्ञानिक कसौटी पर जाँच करके देखने पर उन्हें कहीं भी चोट नहीं आई थी। इस प्रभाव को रोकने के लिए उन्होंने पुन: प्रयोग किया इस समय उन्होंने अपने एवं उस सर्किट के बीच एक काँच की टाइल्स रखी और उससे इस ङ्गूट दूर रहकर निरीक्षण किया। इस प्रयोग का परिणाम भी वही निकला। अब उन्होंने अनेक प्रयोग किये परन्तु परिणाम वही निकला। इन सारे प्रकारों को उन्होंने ‘इंपल्स’ शीर्षक दिया। यहीं से डॉ.टेसला के वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी संकल्पना की निर्मिती हुई।
सर्किट एकदम बंद करने से ये ‘इंपल्स’ उत्पन्न हुए और इस ‘इंपल्स’ ने वायरलेस अर्थात बिना वायर के आधार ही प्रवास किया। इनमें से ही एक महत्त्वपूर्ण कार्य का उदय हुआ। अर्थात डॉ.टेसला ने इसके पश्चात् अपने सारे संशोधन एवं खोज कार्य ‘इंपल्सेस ङ्ग्रिक्वेन्सी’ ‘रेझोनान्स’ के आधार पर ही किया। इसके बारे में हम आगे चलकर जानकारी प्राप्त करेंगे।
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1891 में डॉ.टेसला को अमरीका का नागरिकत्त्व प्राप्त हुआ। डॉ.टेसला के लिए यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसी साल डॉ.टेसला ने न्यूयॉर्क में एक और प्रयोगशाला स्थापित की। इस प्रयोगशाला में एवं मॅनहाटन के प्रयोगशाला में उन्होंने बिजली के बल्ब बगैर वायर को जलाकर दिखाने का वैज्ञानिक चमत्कार किया था। बगैर वायर के विद्युतभार वहन करने का तंत्रज्ञान डॉ.टेसला ने लगभग सवा सौ वर्ष पहले ही विकसित किया था। यह यांत्रिक ज्ञान ‘टेसला इङ्गेक्ट’ के नाम से जाना जाता है।
डॉ.निकोल टेसला एवं थॉमस एल्वा एडिसन इनके बीच होने वाले ‘वॉर ऑङ्ग करंटस्’ के बारे में हमने जानकारी हासिल की दुनिया वालों ने आज तक जिनका एक असामान्य संशोधक के रुप में बेइम्तिहा गुणगान किया उसी एडिसन ने डॉ. टेसला के विरुद्ध बिलकुल गिरे हुए स्तर पर कारवाईयाँ की। जितना हो सका हर प्रकार से उन्हें गिराने की कोशिशें की परन्तु परमेश्वर पर अटल श्रद्धा रखने वाले टेसला शांतिपूर्वक अपना संशोधन करते रहे और अपने संशोधन कार्य के प्रति आने वाले आक्षेपों का उत्तर विधायक मार्ग से दिया।
एडिसन के कंपनी से नौकरी छोड़ने के बाद डॉ.टेसला ने न्यू जर्सी में ‘टेसला इलेक्ट्रिक लाईट अँण्ड मॅन्युङ्गॅक्चरिंग’ नामक कंपनी शुरु की यहाँ से इन्होंने ‘आर्क लाईट’ अर्थात रास्ते पर लगाये जानेवाली लाईट बनाई इनकी डिजाइन एवं कार्यक्षमता उच्च स्तर की थी। उस समय इसी कारण न्यूयॉर्क के रास्ते जगमगा उठे थे। ङ्गिर भी उनके कंपनी में निवेश करनेवाले निवेशकों के कारण अपेक्षानुसार लाभ वे नहीं उठा सके थे। इन्होंने ‘डायनॅमो इलेक्ट्रिक मशीन’ का पेटंट भी प्राप्त कर लिया था।
डॉ.टेसला इलेक्ट्रिक लाईट अँण्ड मॅन्युङ्गेक्चरिंग’ द्वारा अल्टरनेटिंग करंट’ विद्युत भार वहन पर आधारित मशीनों का उप्तादन करने की योजना डॉ.टेसला ने बना रखी थी। परन्तु इस योजना को मान्यता न देते हुए उनके निवेशकों ने उनके ही कंपनी से धोखा करके उन्हें निकल जाने पर मज़बूर कर दिया पर डॉ.टेसला ने हिम्मत नहीं हारी।
इस महान व्यक्तित्व के धनी डॉ.टेसला के हाथों कुछ न आने पर भी मेहनत मज़दूरी करके इन्हों ने अपना उदर निर्वाह किया।
कहते है ‘तूङ्गनों से डरकर नैया पार नहीं होती मेहनत करनेवालों की कभी हार नहीं होती।
1886 अप्रैल में डॉ.टेसला ने पुन: ‘टेसला इलेक्ट्रिक कंपनी’ शुरु की यहाँ पर उनका साथ नून्यॉर्क के वकील ‘चार्ल्स पीक’ तथा ‘वेस्टर्न यूनियन’ के डायरेक्टर ‘अल्ङ्ग्रेड ब्राडन’ ने आर्थिक रुप में दिया। ‘अल्टरनेटिंग करंट सिस्टिम’ को पुरस्कृत करके सर्वोत्तम प्रकार के उत्पादन तैयार करना यही उनका ध्येय था, जो वे इस कंपनी के माध्यम से साध्य करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने न्यूयॉर्क के मॅनहटन मे प्रयोगशाला शुरु की। एक वर्ष में ही इन्होंने ‘ब्रशलेस अल्टरनेटिंग़ करंट इंडक्शन मोटर’ तैयार करके उसका पेटंट भी प्राप्त कर लिया। ये मशीन ‘रोटेटिंग मॅग्नेटिक ङ्गिल्ड’ के तत्त्वों पर आधारित थी।
1888 में डॉ. के मित्र तथा ‘इलेक्ट्रिक वर्ल्ड मॅक्झिन’ के संपादक थॉमस मार्टिन ने डॉ.टेसला को ‘अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम’ को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करवाया। ‘अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑङ्ग इलेक्ट्रिक इंजीनियर्स(एआयईई) के समक्ष अपनी इस कला का प्रदर्शन करने का अवसर उनके लिए बहुत ही लाभदायक साबित हुआ। आज यह संस्था ‘आयईईई’ अथवा ‘आय ट्रिपल ई’ के नाम से जानी जाती है। यह संस्था संपूर्ण विश्व में इलेक्ट्रिकल उत्पादन का दर्जा निश्चित करती है। उस समय में भी यह संस्था अपनी एक विशेष पहचान रखती थी।
डॉ.टेसला के प्रात्यक्षिक के समय उस क्षेत्र के सभी सम्मानित लोग एवं जाने-माने संशोधक, इंजीनियर्स, उद्योगपती एवं प्रसारन क्षेत्र के प्रतिनिधी आदि भी उनके सराहना हेतु वहाँ पर बहुत बड़े पैमाने पर उपस्थित थे। उनके समक्ष डॉ.टेसला ने ‘एसी करंट सिस्टिम’ का प्रदर्शन किया एवं उसके व्यावहारिक उपयोग को सिद्ध किया। डीसी सिस्टम की अपेक्षा एसी सिस्टिम कितना अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है यह भी स्पष्ट कर दिया। इस पद्धति से बिजली की बचत होती है तथा विद्युतभार संवाहन में भी काङ्गी सहायता मिलती है इस बात को भी डॉ.टेसलाने सप्रमाण सिद्ध कर दिया। उनके इस प्रदर्शन से वहाँ पर उपस्थित लोग स्तब्ध रह गए।
डॉ.टेसला के एसी सिस्टिम के कारण केवल घर ही नहीं बल्कि कल-कारखानों में यातायात के साधनों में भी आदि विद्युतभार संवाहन करना संभव हो गया है यह देखा। वहाँ उपस्थित लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा डॅा.टेसला के इस कला-कौशल से प्रसन्न होकर वहाँ पर उपस्थित एक बहुत बड़े उद्योगपति ने उन्हें अपने यहाँ ‘डिनर’ के लिए निमंत्रित किया और वहाँ पर जार्ज वेस्टिंग हाऊस ने उनके सामने एक आकर्षक प्रस्ताव रखा। जिसमें डॉ.टेसला के पेटंट खरीदने के लिए उन्होंने डॉ.टेसला को दस लाख डॉलर्स देने की तैयारी दिखलाई साथ ही उनके तंत्रज्ञान का उपयोग कर तैयार होनेवाले हर एक ‘हॉर्सपावर इलेक्ट्रिसिटी’ के पीछे एक डॉलर देने का वादा भी किया। इस व्यवहार में बात सिर्ङ्ग पैसों के लेन देन तक ही सीमित न होकर वे अपने संशोधन का उपयोग जहाँ चाहे, जैसे चाहे कर सकते हैं इस बात का संपूर्ण अधिकार भी वेस्टिंग हाऊस ने डॉ.टेसला को दे रखा था। इस करार के संपन्न होते ही वेस्टिंगहाऊस ने डॉ.टेसला को अपने पीट्सबर्ग वाले प्रयोगशाला में कंसल्टन्ट के रुप में नियुक्त कर लिया और यहीं पर डॉ.टेसला ने इलेक्ट्रिक कार के लिए ‘एसी’ सिस्टिम तैयार किया। आज ‘इलेक्ट्रिक कार’ का उपयोग कुछ देशों में किया जाता है। परन्तु उसकी प्रगति अभी तक अपेक्षानुसार नहीं हुई है। आगे भी हम डॉ.टेसला के महत्त्व के बारे में जान सकेंगे। 1888 में टेसला ने ‘इलेक्ट्रिक कार’ के लिए ‘एसी करंट सिस्टिम’ तैयार की थी। 1891 में डॉ.टेसला का अमरीका नागरिकत्व प्राप्त हुआ!
अब तक हमने डॉ.टेसला के बिलकुल सामान्य धरातल पर होनेवाले संशोधनों के प्रति जानकारी हासिल की। परन्तु सच्चाई तो यह है कि ये सामान्य धरातल पर होने वाले संशोधन बिलकुल चौका देनेवाले थे। आगे चलकर डॉ.टेसला ने जो भी संशोधन किये वे मानवीय मर्यादा से परे थे तब भी उसी समय वे पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संबंधित है क्योंकि डॉ.टेसला के संशोधन का आधार अध्यात्मिक ही था।
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पहली मुलाकात में ही थॉमस अल्वा एडिसन को निकोल टेसला के योग्यता का अंदाजा लग चुका था। टेसला के ‘अल्टरनेटिंग सिस्टम’ अर्थात ‘एसी’ को मान्यता मिल जायेगी तो अपना औद्योगिक साम्राज्य दहल उठेगा, इस विचार से एडिसन बौखला उठे। इसीलिए, ऊपरी तोर पर उन्होंने डॉ.टेसला के ‘एसी’ सिस्टम का मजाक उड़ाया उनके संशोधन को हँसी का कारण बनाने के बावजूद भी टेसला के कार्यक्षमता का अपनी कंपनी में लाभ उठाने के लिए योजना भी एडिसन ने बना ली। और बिलकुल कम वेतन में उन्हें अपने सहायक के रुप में काम पर रखना चाहा । वे अपने कंपनी के कर्मचारियों को बहुत कम तनख्वाह देते थे, इसीलिए एडिसन इतने प्रसिद्ध होने के बाद भी वे कंजूस नाम से जाने जाते।
1884 में निकोल टेसला ने एडिसन के कंपनी में काम करने का ङ्गैसला कर लिया था। एक सामान्य इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रुप में टेसला ने अपना काम शुरु कर दिया। बहुत कम समय में ही एडिसन की कंपनी की जटिल समस्याओं को सुलझाने का काम टेसला को सौंप दिया गया। एडिसन की कंपनी में उपयोग में लाये जानेवाले ‘डायरेक्ट करंट’ अर्थात ‘डीसी’ के प्रति टेसला का पूरा विरोध था। क्योंकि उसके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण था। वास्तविक रुप में एडिसन विद्युतप्रवाह के पुरस्कर्ता थे ङ्गिर भी ‘डीसी’ पद्धति एडिसन ने नहीं बनाई थी। परन्तु लोगों में एडिसन के बारे में गलत धारणाएँ थी। परन्तु ‘डीसी’ के संशोधन कर्ता दरअसल ‘मायकल ङ्गॅरेडे’ थे। प्रथम इलेक्ट्रिक मोटर इन्होंने ने ही बनाई थी।
ङ्गॅरेडेद्वारा संशोधित इस पद्धति का सर्वाधिक उपयोग एडिसन ने किया और विद्युतसंवाहन गति को ग्राहकों तक पहुँचाया परन्तु इसका उपयोग करने के बहुत पहले से ही ‘डीसी’ पद्धति से विद्युतसंवाहन किया जाता था। ‘डायरेक्ट करंट’ नाम न देकर इसी पद्धति द्वारा ङ्गॅरेडे विद्युत प्रवाह का उपयोग करते थे। जिस समय टेसला एडिसन के कंपनी में काम करते थे उस समय एडिसन ने ‘बल्ब’ बनाकर दुनिया को दिखाया। बल्ब के लिए ‘डीसी’ पद्धति से विद्युतसंवाहन का कार्य किया जाता था। जिसमें काङ्गी दोष था। इन में से अनेक दोषों को टेसला ने दूर किया था। उदाहरण के तौर पर एडिसन द्वारा आविष्कृत ‘डायरेक्ट करंट जनरेटर्स’ को हम से सकते हैं।
इस ‘डायरेक्ट करंट जनरेटर्स’ के डिझाईन को बदलकर दिखाने की चुनौती एडिसन ने डॉ.टेसला को दी थी। यह चुनौती तो जैसे-तैसे पूरी हुई। इसके पश्चात एडिसन ने डॉ.टेसला को पचास हजार डॉलर्स देने का वादा किया। टेसला ने दो महीने के परिश्रम के पश्चात ‘डायरेक्ट करंट जनरेटर्स’ की डिझाईन बनाकर दिखायी। इस डिझाईन से एडिसन के कंपनी को काङ्गी लाभ होनेवाला था, आज की तारीख में देखा जाये तो अरबों डॉलर्स इतना लाभ था। एडिसन के ‘डीसी सिस्टम’ में सुधार कर के उसे अधिक प्रभावकारी बनाने का श्रेय भी डॉ.टेसला को ही जाता है।
पहले किए गए चर्चानुसार टेसला का ‘डीसी’ सिस्टम के प्रति पहले से ही विरोध था। इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण थे। मात्र ‘डीसी सिस्टम’ का भी उन्होंने अभ्यास किया था। इस पद्धति की अच्छाइयों का अभ्यास उन्होंने किया था। परन्तु उसकी बराबरी में ‘एसी’ पद्धति का उपयोग और भी अधिक उपयोगी, व्यवहारी एवं नैसर्गिक है इस बात का उन्हें पूरा विश्वास था।
‘डायरेक्ट करंट जनरेटर’ की डिझाईन को बदलने के बाद टेसला ने एडिसन को उनके वचन की याद दिलाई। देखा जाए तो एडिसन को उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा कर उनके बडकपन को मानते हुए उन्हें 50 हजार डॉलर्स देने चाहिए थे। परन्तु एडिसन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि टेसला का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘तुम सर्बियन लोगों को अमरीकन हँसी-मजाक समझ में ही नहीं आता’ इस प्रकार के उद्गार एडिसनने व्यक्त किया। इतना बड़ा अपमान और धोका होने पर टेसला ने यह नौकरी छोड़ने का ङ्गैसला कर लिया।
इस नौकरी को छोड़ने के पश्चात एडिसन ने टेसला के खिलाफ विघातक युद्ध शुरु किया। इस युद्ध में एडिसन ने बिलकुल गिरी हुई हरकते करते हुए टेसला के ‘एसी’ सिस्टम को बिलकुल ङ्गालतू करार कर दिया। ऐसी हरकतें करने के लिए एडिसन किसी भी हद तक गिर सकता था। उनके इस युद्ध को ‘वॉर ऑङ्ग करंटस्’ के नाम से जाना जाता है।
एडिसन की कंपनी छोड़ने के बाद टेसला ने अपनी खुद की कंपनी ‘टेसला इलेक्ट्रिक लाईट अॅण्ड मैन्युङ्गॅक्चरिंग’ इस नाम से शुरु की। इसे बंद करने के पश्चात् उन्होंने ‘टेसला इलेक्ट्रिक कंपनी’ शुरु की। इन दोनों कंपनियों के बारे में हम आगे चलकर देखेंगे। परन्तु आगे चलकर टेसला ने जार्ज वेस्टींग हाऊस के ‘वेस्टींग हाऊस इलेक्ट्रिक अॅण्ड मॅन्युङ्गॅक्चरिंग’ कंपनी में काम करना शुरु कर दिया। यह कंपनी उस समय बिजली के क्षेत्र में अग्रगण्य स्थान रखती थी।
इस कंपनी के ‘डीसी सिस्टम’ से ‘एसी सिस्टम’ की ओर होनेवाला प्रवास डॉ.टेसला के नेतृत्त्व में हुआ; इस बात से बौखलाकर एडिसन ने ‘एसी सिस्टम’ के विरोध में ऐसे प्रचार करने शुरु कर दिए जिससे लोग घबराकर उसका उपयोग ही न करें ऐसी स्थिति निर्माण कर दी। एडिसन ने अपने राजनैतिक पहचानों और पैसे की ताकद से अमरीका के अनेक राज्योंकी विधान-सभाओ मे भी एसी करंट के खिलाफ मोहिम खोली।
एडिसन का विरोध यहाँ तक ही नहीं रहा बल्कि ‘एसी’ विद्युतप्रवाह बिलकुल धोखादायक हैं इस बात को सिद्ध करने के लिए एडिसन ने प्राणियों को बिजली का करंट देकर मारकर जनता के मन में दहशत पैदा कर दी। इन प्राणियों में कुत्ते, बिल्ली, घोड़े आदि जानवरों की बली एडिसन ने चढ़ा दी। बिजली के झटके से हाथी समान महाकाय प्राणि भी मर सकता है, यह साबित करने के लिए 4 जनवरी 1903 के दिन हाथी को बिजली का करंट देकर एडिसनने उसका बली लेे लिया और उसका चित्रीकरण करके ‘इलेक्ट्राक्युटींग अॅन एलिङ्गंट’ नामक चित्रपट तैयार किया। हाथी समान पशु जब ‘एसी’ सिस्टम से मर सकता है, तब यह तुम्हारे बच्चों के लिए कितना धोखादायक हो सकता है, यह लोगों को दिखाने के लिए उनके सारे प्रयत्न शुरु थे। लोगों के दिल को दहला देनेवाले प्रयत्न उनके चलते ही रहे। और कुछ अंश तक उन्हें सङ्गलता भी मिली।
इस कार्य के लिए एडिसन ने दो इंजीनियर्स की भी नियुक्ति की थी। एक का नाम था ‘हेरॉल्ड ब्राऊन’। इन्होंने ही अपराधियों को मृत्युदंड देनेवाले इलेक्ट्रिकल चेअर की खोज की थी। अपने पास काम करनेवाले कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले संशोधन को भी एडिसन अपना नाम देते थे। इस इलेक्ट्रिक चेअर का उपयोग अमरीका के न्यूयॉर्क राज्य के अपराधियों को मृत्युदंड की सजा देने के लिए किया जानेवाला था। इसका श्रेय भी एडिसन ने ही लिया। इस सिस्टम के लिए एडिसन ने ब्राऊन को ‘एसी सिस्टम’ का उपयोग करने की सूचना की ताकि उसकी और भी अधिक बदनामी हो। मृत्युदंड की शिक्षा सुनाई जानेवाले ‘विल्यम केमलर’ नामक अपराधी को इसी सिस्टम से शिक्षा दी जानेवाली थी। परन्तु इस ऐसी पद्धती के अनुसार पहली बार शॉक देने पर उसकी मृत्यु नहीं हुई उन्हें तीन बार शॉक देना पड़ा था। इस अमानवीय हरकत पर माध्यमों के प्रतिनिधियों द्वारा उनकी जोरदार आलोचान की गई थी।
इतनी गिरी हुई हरकत करने पर भी एडिसन को अपने कार्य में सङ्गलता नहीं मिली। आज भी संपूर्ण विश्व में जिस विद्युत भारसंवाहन पद्धती का उपयोग किया जाता है वह डॉ.टेसला द्वारा संशोधित किए गए ‘अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम’ पद्धति द्वारा ही। बिजली आज मानवी जीवन प्रमुख आधार बन चुकी है। बिजली के बिना मानो मानव जीवन अधूरा रह जाता है। और इस अधूरेपन को सुंदर एवं सुरक्षित तरह पूर्ण करने का काम किया टेसला पद्धति ने ही अर्थात ‘एसी सिस्टम’ ने ही। आखिरकार ‘वॉर ऑङ्ग करंटस्’ में विजय प्राप्त हुई तो वह डॉ.निकोल टेसला को ही।
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डॉ.निकोल टेसला की नजरों में विज्ञान एवं अध्यात्म ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू थे। नैसर्गिक तौर पर होनेवाली हर एक घटना परमेश्वर का ही आविष्कार होती है ऐसी उनकी धारणा थी। उनके इस अध्यात्मिक विचारधारा के प्रति उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का आधार था। इनका जन्म ही परमेश्वर पर अविचल श्रद्धा रखनेवाले कैथलिक परिवार में हुआ था। डॉ.निकोल टेसला के पिता मिल्युटिन टेसला ख्रिस्ती धर्मोपदेशक थे। तथा टेसला के नाना भी धर्मोपदेशक ही थे। डॉ.टेसला की माँ डुका टेसला एक सामान्य गृहिणी थी। उनकी शिक्षा योग्य प्रकार से नहीं हुई थी। परन्तु इस माँ ने सर्वप्रथम निकोल टेसला को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही सोचना सीखाया।
डुका टेसला का हर कार्य एक नये तरीके से करने का प्रभाव टेसला के जीवन पर पड़ा। उपाधिप्राप्त शिक्षा न कर पाने वाली माँ ने अंडे को मिक्स करनेवाला यंत्र - ‘एग बीटर’ बनाया था। इससे ही हम उनके ऊपर होनेवाले बाल्या अवस्था के संस्कार आदि की कल्पना कर सकते हैं। वे अपनी माँ से अत्याधिक प्रेम करते थे। उनके इस प्रकार के प्रयोगशीलता से टेसला को प्रेरणा मिलती थी। इस प्रकार के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक संस्कार करनेवाले परिवार में टेसला के आविष्कारी, तर्कयुक्त (शुद्ध) एवं निर्भयता आदि सद्गुणों का विकास होता है तो इस में कोई हैरानी नहीं।
निकोल टेसला की मिल्का, अॅजेलिना एवमं मॅरिका नाम की तीन बहनें थीं और उनके बड़े भाई का नाम डेन था। बद्किस्मती से डेन घुडसवारी करते समय एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे। आगे चलकर डॉ.निकोल टेसला को उनके संशोधन में मिलनेवाले अपार यश से बिथर उठनेवाले उनके विरोधकों ने डेन के मृत्यु का जिम्मेदार टेसला को ठहराया। तथा अनेक प्रकार से उनके मानसिकता को ठेस पहुँचाने की कोशिशें उनके विरोधकों ने की परन्तु वे सङ्गल न हो सके। ऐसी गिरी हुई हरकतें करने के बावजूद भी उनके विरोध में डॉ.टेसला ने कुछ भी नहीं कहा।
अपने जन्मस्थान स्मिलियान प्रांत के स्कूल में उन्होंने जर्मनी भाषा गणित एवं धर्मशास्त्र की शिक्षा हासिल की। इसके पश्चात उनका परिवार गॉस्पिक में स्थलांतरित हो गया। इनके पिता वहीं के चर्च में पास्टर के रूप में कार्य करते थे। अपनी अग्रीम शिक्षा इन्होंने यहीं पर पूरी की। 1870 में टेसला परिवार कार्व्होलाक में आकर बस गया। यहीं पर निकोल टेसला ने अपनी अगली पढ़ाई पूरी की।
शिक्षकों को हमेशा अपने बुद्धिमान एवं परिश्रमी विद्यार्थी के प्रति गर्व होता हैऔर उससे वे बहुत सारी उम्मीदें भी रखते हैं। कुछ कर दिखानेवाले होशियार बच्चों की प्रशंसा शिक्षक करते ही है, परन्तु निकोल टेसला के मामले में पहले-पहले ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टे शिक्षक अपने इस छात्र की ओर संदेहभरी दृष्टी से देखते थे। इसका कारण बिलकुल भिन्न था कारण टेसला शिक्षकों द्वारा दिए जाने वाले घिसे-पीटे कॅल्क्युलस के गणित पर सिर पीटने की बजाय मन ही मन वे उसका हल निकालकर उसका उत्तर लिख देते थे। इसके लिए उन्हें समय भी बर्बाद नहीं करना पड़ता था। निश्चित ही उत्तर अचूक होता था। परन्तु इससे शिक्षक संतुष्ट नहीं होते थे।
यह विद्यार्थी इतनी आसानी से हल कैसे निकाल लेता है वे कैसे जान पाता हैं? उनकी नजरों में यह लड़का हमें ङ्गँसाता है ऐसी उनकी सोच हुआ करती थी। आखिरकार टेसला ने स्वयं ही उनके इस संदेह को दूर किया। यह कह कर कि हम दिमागी तौर पर सोचकर भी सही हल निकाल सकते हैं। यह उसने कर दिखलाया यह देख उसके शिक्षक भी हैरान रह गए। जिस ग्रॅज्युएशन के लिए अन्य विद्यार्थियों को चार वर्ष लगते थे, वहीं टेसला ने उसी अभ्यासक्रम को केवल तीन वर्षों में ही पूर्ण कर लिया। 1873 में टेसला ग्रॅज्युएट हो गए। उसी वर्ष वे स्मिलियान अपनी जन्मभूमि (मातृभूमि) में वापस आ गए। यहाँ आने पर उन्हें जानलेवा कॉलरा की बीमारी होगई। परन्तु वे इस बीमारी से अच्छे हो गए।
1874 में टेसला प्रकृति के सान्निध्य में गए। वे पर्वतीय कंदराओं में मुक्त होकर घुमते-ङ्गिरते थे। परमेश्वर द्वारा निर्माण किये गए इस दुनिया एवं प्रकृति का अध्ययन करना यही टेसला के चिंतन और अध्ययन का विषय था। इस समय में किया गया निरीक्षण उनके आगे चलकर किये जानेवाले संशोधन के लिए उपयुक्त साबित हुआ। यह अध्ययन उन्हें मानसिक एवं शारीरिक दृष्टिसे सक्षम बनाने में भी उपयोगी साबित हुआ।
1875 में टेसला ने ऑस्ट्रिया के ग्राम में होनेवाले ‘पॉलिटेक्निक कॉलेज’ में स्कॉलरशीप प्राप्त कर प्रवेश किया। इस कॉलेज में टेसला कें ज्ञान की भूख सतत बढ़ती ही रही। इस कॉलेज के एक भी लेक्चर को वे छोड़ते नहीं थे। इस कॉलेज में नौ परीक्षा देनेवालों में सर्वाधिक अंकों के विक्रम की नोंद उन्होंने यहाँ पर की। ये परीक्षा आवश्यकता से दुगुनी थीं ऐसा कहा जाता है। यहाँ पर उन्होंने ‘सर्बियन कल्चर क्लब’ की स्थापना की थी।
इस पॉलिटेक्निक कॉलेज के डीन ने इस असामान्य विद्यार्थी को ‘स्टार ऑङ्ग द ङ्गस्ट रैंक’ के पुरस्कार से सम्मानित किया। इस प्रकार का बहुमान प्राप्त करते हुए, टेसला कितना समय अपनी पढ़ाई में व्यतीत करते थे, इस बात की जानकारी हमें हासिल करनी ही चाहिए। मध्य रात्रि के तीन बजे से लेकर दूसरे दिन के रात्रि के ग्यारह बजे तक टेसला लगातार अध्ययन करते रहते थे। दिन के कुल 20 घंटे तक काम करनेवाला यह विद्यार्थी सप्ताह के अंत में भी बिना छुट्टी लिए पढ़ाई में मग्न रहते थे।
1878 में टेसला ग्राझ से पुन: गॉस्पिक में आ गए। यहाँ पर आकर उन्होंने अध्यापन का कार्य स्वीकार किया। 1980 में टेसला बुुड़ापेस्ट आ गए। वहाँ पर टेलिङ्गोन एक्सचेंज की नींव डाली जा रही थी। उसके सेंट्रल टेलिग्राङ्ग ऑङ्गिस में टेसला ने ‘ड्राफ्टस्मैन’ का कार्य सँभाला। जब वह टेलिङ्गोन एक्सचेंज कार्यरत हो गया, तब वहाँ पर टेसला को चीङ्ग इलेक्ट्रिशियन के रुप में नियुक्त किया गया। इसी समय टेसला ने सेंट्रल स्टेशन की प्रणाली में बहुत बड़ा बदलाव लाया।
.......और यहीं पर उनका प्रथम संशोधन हुआ। टेलिङ्गोन ‘रिपीटर’ तथा ‘अँप्लिङ्गायर’ उन्होंने बनाया। परन्तु जनकल्याण, अपने जीवन का उद्देश्य है यह मानकर चलनेवाले संशोधक ने अपने इस प्रथम संशोधन का पेटंट प्राप्त नहीं किया।
आगे चलकर डॉ.टेसला ङ्ग्रांस की राजधानी पॅरिस में रहनेवाले थॉमस अल्वा एडिसन के कंपनी में काम करने लगे। इस कंपनी की ओर से तैयार किए जाने वाले इलेक्ट्रिकल उपकरणों के ‘डिझाईन’ में सुधार लाने का काम एक इंजीनियर होने के नाते निकोल टेसला कर रहे थे। यहाँ पर उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को आश्चर्य चकित कर देने वाले काम किए। चार्ल्स बैचलर टेसला के वरिष्ठ अधिकारी थे वे टेसला से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने टेसला को एक शिङ्गारस करनेवाला पत्र देकर, सीधे एडिसन से मिलने अमरीका भेज दिया। इस पत्र में बॅचलर ने एडिसन को टेसला की जानकारी बिलकुल गिने-चुने शब्दों में दी।
‘मुझे दो ही महान व्यक्तित्व के लोगों के बारे में जानकारी है। एक आप हो और दूसरा यह नौजवान हैं’ इस प्रकार बॅचलर ने टेसला की प्रशंसा की थी। इससे प्रभावित होकर स्वयं टेसला भी एडिसन से मिलने के लिए उत्सुक थे। क्योंकि वे उन्हें अपना आदर्श मानते थे। इस प्रकार जेब में केवल चार सेंट्स एवं बॅचलर द्वारा दिया गया पत्र लेकर निकोल टेसला अमरीका जा पहुँचे। उस समय के जाने-माने प्रसिद्ध यंत्रज्ञ एडिसन के प्रति टेसला के मन में बहुत आदर था। ऐसे में उनसे मिलने के लिए उत्सुक होना टेसला के लिए स्वाभाविक था। परन्तु आगे चलकर आनेवाले समय में एडिशन टेसला की नजरों में आदर्श नहीं रहें इस बारे में अधिक जानकारी हम प्राप्त करेंगे ही। मात्र अमरीक के भूमि पर पैर रखनेवाला यह नौजवान निकोल टेसला अग्रीम छ: दशकों तक इस देश में ही अपनी अभूतपूर्व विज्ञान-कौशल दर्शानेवाला था। उसके सारे संशोधन और उनका लोगों को अचम्भे में डाल देनेवाला प्रदर्शन आनेवाले समय में अमरीका को आश्चर्यचकित कर देनेवाला था।
(क्रमश........)
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इस शीलवान संशोधक ने अपने पर आनेवाले संकटों से तनिक भी विचलित न होते हुए धैर्यपूर्वक उसका सामना किया। अपने संशोधन को और भी अधिक अच्छी तरह से आगे बढ़ाया। संशोधन के लिए लगनेवाले साधनसंपत्ति की कमी, विरोधकों के कपटकारस्थान, ये सबकुछ डॉ. टेसला के अविचल निर्धार एवं पूर्ण श्रद्धा के आगे कोई मायने नहीं रखता था।
यही कारण है कि आज भी डॉ. टेसला का संशोधन हमारे जीवन का एक अविभाज्य घटक बन चुका है। मानवी जीवन को अधिक सुलभ, सुशिक्षित, समृद्ध तथा ऐश्वर्यशाली बनाना यही तो डॉ.टेसला के संशोधन के प्रति होनेवाली मूल प्रेरणा थी। जिनका नाम भी हमने कभी सुना नहीं होता है, ऐसे अनेक महानुभव महात्मा मानव जाति पर अनेक प्रकार से उपकार करते रहते हैं। मानवीय जीवन उत्तम तरीके से प्रस्थापित करते रहते हैं। डॉ.निकोल टेसला भी ऐसे ही महानुभवों में से एक हैं। इनके बारे में जानकारी हासिल करना अर्थात हकीकत में वैज्ञानिक दृष्टि से दुनिया की ओर देखना अथवा उसका निरिक्षण करने की सीख एवं मानवीय सद्गुणों के हिमालय की विशालता का अनुभव करना।
............और
इस ‘हिमालय का’ पर्यटन करवानेवाली लेखमाला आज से ई-साप्ताहीक अंबज्ञ प्रत्यक्ष में हम शुरू कर रहे हैं।
विशालता का परमोच्च दृश्य स्वरूप अर्थात हिमालय। हममें से बहुतों ने प्रत्यक्षरूप में हिमालय को नहीं देखा होगा। परन्तु उसकी ऊँचाई, भव्यता का अहसास तो हमें होता ही है। परन्तु इस नगाधिराज हिमालय के बारे में कुछ भी न जाननेवाला यदि हमसे मिलता है तो हमें हैरानी होगी। इसीलिए मानवीय करतबगारी ही हिमालय साबित हो, इस प्रकार के व्यक्तित्व की भव्यता रखनेवाले डॉ. निकोल टेसला के बारे में अब तक हम कुछ भी नहीं जानते थे। इस बात का आश्चर्य एवं खेद बहुत से लोग प्रकट कर रहे हैं। अनिरुद्ध बापूजी ने हमें प्रवचन में डॉ. निकोलटेसला के बारे बताया था कि इनके समान बड़ा शास्त्रज्ञ न हुआ है और ना ही होगा। और आज तक इतने सर्वश्रेष्ठ संशोधक के बारे में हमें जानकारी नहीं थी। इस में उनका नहीं बल्कि हमारा ही दुर्भाग्य है। ऐसा बापूजी ने प्रवचन में कहा था।
डॉ. निकोल टेसला के बारे में जानकारी हासिल करना अर्थात हिमालय दर्शन करने के समान है। हमने इस महान शास्त्रज्ञ का नाम नहीं सुना होगा परन्तु उनके द्वारा किया गया संशोधन आज के मानवीय जीवन का एक अविभाज्य घटक बन चुका है। मानवीय जीवन की स्थिति गति इस असामान्य संशोधक ने बदल डाली है। इस बात की कितनी सारी गवाही दी जा सकती है। आज भी डॉ. टेसला के नाम पर 700 से ज्यादा पेटंट हैं, इस विश्वविक्रम को हम नही जानते। ‘अल्टरनेटींग करंट’, ‘पीस रे’, ह्युमनॉईड रोबोट, टेलिव्हिजन, रिमोट कंट्रोल, एक्सरेज्, वायरलेस पॉवर ट्रान्समिशन, इंडक्शन मोटर, रेडिओ, रोटेटिंग मॅग्नेटिक ङ्गिल्ड प्रिन्सिपल, वायरलेस कम्युनिकेशन, टेलिङ्गोन रिपिटर, टेसला कॉईल ट्रान्सङ्गॉर्मर, टेलेपोर्टेशन, स्पेसटाई बेंडिंग टाईम ट्रॅव्हल अर्थात कालांतर में प्रवास और ऐसे हजारो संशोधन डॉ. टेसलाने किये है। इनके संशोधन से होनेवाली प्रगति का ङ्गायदा हम सभी अपने दैनिक जीवन में उठा रहे हैं।
अर्थात डॉ. टेसला का जन्म आज के युग में ही हुआ है? ऐसी हमारी सोच हो सकती है। परन्तु ऐसा बिलकुल भी नहीं। जिस समय में डॉ.टेसला ने ये संशोधन किया उस समय में ये बातें विज्ञान की सहायता से कोई कर सकता है, ये बात कोई मान भी नहीं सकता था। अथवा ऐसी कल्पना करनेवालों की गणना दिवानों में हो गई होती। इसीलिए पहले कोई हुआ नहीं और इसके बाद कोई होगा भी नहीं ऐसे इस संशोधक के बारे में जो जानते हैं वे डॉ. निकोल टेसला को ‘विज्ञान की देवता’ की तरह मानते हैं। इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं। डॉ.टेसली का संशोधन मानवी जीवन के हर एक अंग को स्पर्श करनेवाला सर्वव्यापी है। उन्हें इनके लिए दी जानेवाली यह उपाधि गलत नहीं है। यह बात इस ‘मानवीय करतबगारी के हिमालय’ को पा लेनेवाला हर कोई पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता है।
10 जुलाई 1856 के दिन टेसला का जन्म ‘ऑस्ट्रियन साम्राज्य’ में अर्थात आजके एशिया में हुआ था। निकोल टेसला का जन्म हुआ उस दिन मध्यरात्रि के समय आँखों को चकाचौंध कर देनेवाली बिजली की कडकडाहट शुरू थी। इनका जन्म होते ही इनका स्वागत आकाश में चमचमानेवाले बिजली ने किया। इस बात की पहचान उनकी अनुभवी दाई के आँखों से बच न सकी। उसने उसी समय कहा था कि यह बालक कोई साधारण बालक नही है, यह कोई महान कार्य ज़रूर करेगा। और उसकी इस बात को टेसला ने अपने जीवनकाल में शब्दश: सच कर दिखाया।
ऑस्ट्रिया के पॉलिटेक्निक स्कूल में टेसला की स्कूली शिक्षा पूरी हुई। उसके पश्चात प्राग के विश्वविद्यालय में वे दर्शनशास्त्र (Philosophy) का अध्ययन करने लगा। अमरीका के येल विश्वविद्यालय ने और कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘ऑनररी डॉक्टरेट’ से सम्मानित किया था। डॉ. टेसला 18 भाषाओं से अवगत थे। इनमें से 12 भाषाओं पर उनका प्रभुत्त्व था। इन में वे जिस क्षेत्र में जन्मे थे उस क्षेत्र के सर्बो-क्रोएशियन, लैटिन, इटालियन, ङ्ग्रेन्च, जर्मन तथा अंग्रेजी इन भाषाओं का समावेश है।
जीवन में डॉ. टेसला को अनेक सम्मानों से पुरस्कृत किया गया। इसकी सूची बहुत बड़ी है। परन्तु वैज्ञानिक क्षेत्र में उस समय सर्वश्रेष्ठ माने जानेवाले कुछ पुरस्कार उल्लेखनीय हैं। सर्बिया के राजा किंग मिलान प्रथम की ओर से डॉ. टेसला को 1883 में ‘आर्डर ऑङ्ग सेंट सावा’ इस उपाधि के साथ सम्मानित किया गया था। ङ्ग्रॅन्कलिन विश्व विद्यालय द्वारा दिया जानेवाला सर्वोच्च सम्मान ‘द इलियट क्रेसॉन मेडल’ डॉ. टेसला ने प्राप्त किया था। मानवीय जीवन के और भी अधिक सुदृढ़ कल्याणकारी एवं आनंददायी बनानेवालों के लिए उपलब्ध करवाया जानेवाला ‘द जॉन स्कॉट अवॉर्ड’ डॉ.टेसलाने प्राप्त किया था। ‘द ऑर्डर ऑङ्ग प्रिन्स डानिलो’ यह मॉन्टेनेग्रो के राजा किंग निकोल के हाथों डॉ. टेसला को प्राप्त हुआ था। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग जबरदस्त कामगिरी करनेवालों को अमरीका में दिया जानेवाला ‘एडिसन मेडल’ डॉ.टेसला को 1917 में प्रदान किया गया था।
जीते जी तो डॉ. टेसला अनेक पुरस्कारों से सम्मानित होते रहे, उसी तरह मृत्यु पश्चात् भी उन्हें उसी प्रकार सम्मान मिलता ही रहा। संशोधकों के ‘हॉल ऑङ्ग ङ्गेम’ के लिए
डॉ. टेसला की 1975 में नियुक्ति हुई थी। अमरीका के पोस्ट विभाग ने 1983 में टेसला के नाम से स्टैंप निकाला। इतना ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बड़ा कारनामा (उपाधि प्राप्त लोगों को/अच्छी मेहनत करनेवालों को) डॉ. टेसला के नाम से पुरस्कार प्रदान किया जाता है। ‘द निकोल टेसला अॅवॉर्ड’ अर्थात इस क्षेत्र का सर्वोत्तम सम्मान देनेवाला पुरस्कार माना जाता है।
अपने जीवनकाल में अनेक सम्मान एवं अभूतपूर्व यश संपादन करनेवाले इस अद्वितीय संशोधक की परमेश्वर के प्रति पूरी आस्था थी। सश्रद्धा कॅथलिक परिवार में टेसला का जन्म हुआ था। सृष्टि में होनेवाली हर एक घटना के पीछे परमेश्वर का है ही चमत्कार होता है ऐसी उनकी धारणा थी। विज्ञान एवं अध्यात्म ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, ऐसा उनका मानना था। और इन दोनों पहलुओं पर परमेश्वर का नियंत्रण होता है इस बात पर उनका पूरा विश्वास था।
इसी विश्वास से प्रेरित डॉ. टेसला ने लोगों को अचम्भे में डाल देनेवाली खोजें की। इतना ही नहीं तो असाधारण श्रेणी के संशोधकों के समक्ष उनके जीवन में आनेवाले संकट एवं चुनौतियाँभी उतनी ही संघर्षमय थी। परन्तु इस सत्वशील संशोधक ने अपने ऊपर आनेवाले संकटों से विचलित हुए बिना, धैर्यपूर्वक उनका सामना किया और अपना संशोधन कार्य और भी अधिक उत्तमरीति से आगे बढ़ाते रहे।
संशोधन के लिए लगनेवाली साधनसंपत्ति आदि की कमी, विरोधकों के कपटकारस्थान ये सारे डॉ. टेसला के अविचल इच्छा निर्धार एवं अटूट श्रद्धा के आगे कोई मायने नहीं रखते थे।
इसीलिए आज भी डॉ. टेसला का संशोधन हमारे जीवन का अविभाज्य अंग बना हुआ है।
इस लेखमाला में हम डॉ. टेसला के जीवन एवं उनके द्वारा किए जानेवाले संशोधन के प्रति जानकारी हासिल करेंगे कारण इस ‘हिमालय’ की जानकारी न होनेवाले दुर्भाग्य को हमें मिटा देना है, अपने आपको भाग्यवान बनाने के लिए!
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