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जर्मनी का सोना ’खोया’!

जग में सर्वाधिक सोने के भंडारवाले देशों में जर्मनी का स्थान दूसरे क्रंमांक पर है। इस देश के पास 3,390 टन सोने का भंडार है। पर इसमें से 70 प्रतिशत से अधिक सोने का भंडार जर्मनी से बाहर है। जर्मनी का 1536 टन सोना अमेरीका के फेडरल रिजर्व के पास है, तो 450 टन ब्रिटन तथा तकरीबन 374 टन फ्रान्स के बैंक में है। दूसरे महायुद्ध के दौरान जर्मनी ने यह सोना इन देशों में सुरक्षित रखने हेतु दिया था। पर जर्मनी के राजनीतिज्ञों का मत है कि अब इस सोने को दूसरे देशों में सुरक्षित रखने की जरुरत नहीं है। इसलिए अब इसमें से कुछ टन सोना वापस लाने की कोशिशें जारी हैं। इस में फ्रान्स से 374 टन और अमेरीका में रखे हुए सोने के भंडार से 300 टन सोना वापस लाने की योजना आंकी गई है।

सन 2020 में यह सोना जर्मनी में वापस लाया जाएगा ऐसी आशा जर्मन बैंक एवं सत्ताधारियों ने जताई थी। फ्रान्स ने यह सोना लौटाने की बात भले ही मानी हो, मगर अमेरीका के फेडरल रिजर्व ने यह सोना दिखाने या उसका अंशमात्र भी लौटाने से इन्कार कर दिया है। इसका स्पष्टीकरण देते हुए ’सुरक्षा का मुद्दा’ और ’सोना देखने आनेवालों के लिए जगह नहीं है’ ऐसे कारण बताए गए।
मगर जर्मनी अपना सोना देखने की बात पर अटल है, ऐसी घोषणा करती रही। तत्पश्चात जब जर्मन प्रतिनिधि न्यूयॉर्क गए तब सोने की पांच-छे ईंटें दिखाकर ’यह आपके सोने के भंडार में से है’, यह कहकर उन्हें बिदा किया गया। पर इसके बाद फिर से जर्मनी ने अपने प्रतिनिधियों को अमेरीका भेजने का निर्णय लिया।
जर्मन प्रतिनिधियों की दूसरी भेंट में उन्हें न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व के सोने के वॉल्ट तक प्रवेश दिया गया। मगर इस बार फिर से फेडरल रिजर्व ने चालाकी से उन्हें नौं कमरों में से केवल एक ही कमरा खोलकर दिखाया। कमरा खोलने के बाद भी सोना केवल देखा जा सकता है, उसे छूआ नहीं जा सकता, ऐसी ताकीद भी दी गई। अमेरीका द्वारा किए गए इस व्यवहार के बाद जर्मन प्रतिनिधि हाथ मलते हुए लौट आए। 

अमेरीका के फेडरल रिजर्व द्वारा जर्मनी के साथ किया हुआ यह बर्ताव और सोने के भंडार के संदर्भ में अपनाई हुई भूमिका अंतरराष्ट्रिय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है, तथा इससे एक नई बात सामने आई है, वह यह कि वास्तव में फेडरल रिजर्व के पास अधिक सोना नहीं बचा है।

और इस संदेह को पुष्टि मिली है अमेरीका के एक निजी निवेश निधि (हेज फंड) के व्यवस्थापन परिचालक विल्यम केय के विवादास्पद विधान से कि, ’जर्मनी को उसका सोना कभी भी दिखाया नहीं जाएगा। अमेरीका के फेडरल रिजर्व जैसे केंद्रीय बैंकों ने यह सोना देश स्थित जे.पी. मॉर्गन तथा गोल्डमन सॅच जैसे निजि बैंकों को दिया है। बाजार में सोने की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है। इसके बदले में फेड को सिक्यूरिटीज दी गई हैं। जर्मनी को अपना सोना कभी भी दिखाई नहीं देगा, क्योंकि वह मेरे तथा मुझ जैसे निवेशकों के खातों में सुरक्षित रखा गया है।’   

जुलाई 2013 में केय द्वारा किया गया यह विधान जर्मनी का सोना वापस लाने की सभी आशाओं पर पानी फेरनेवाला साबित हुआ। केय ने खुद कई साल गोल्डमन सॅच में कार्य किया होने के कारण उनका यह विधान गैरजिम्मेदार या निरर्थक नहीं माना जा सकता। 
इस विवादास्पद विधान से जर्मनी की केंद्रीय बैंक अर्थात ‘बुंडेस बैंक’ खासी घिर गई है। एक तरफ सोना वापस लाने के लिए बढता हुआ दबाव और दूसरी तरफ फेडरल रिजर्व द्वारा बेरुखी, ऐसे दोहरे संकट से इस बैंक को जूझना पड रहा है। इससे सामयिक समाधा हेतु बैंक ने एक निवेदन प्रसिद्ध किया है कि, केय द्वारा की गई विवेचना पर हम कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते।

इसी के साथ निवेदन में यह भी दर्ज किया गया है कि, अमेरीका के फेडरल रिजर्व द्वारा दी गई पारदर्शक जानकारी पर हमारा विश्वास है, तत्पश्चात परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। परंतु जर्मनी के नागरिक इस बात पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। बल्कि जर्मनी के विभिन्न क्षेत्र के दिग्गजों ने मिलकर स्वतंत्र मुहीम चलाई है जिसका नाम है, ’रिपैट्रिएट अवर गोल्ड’ अर्थात हमारा सोना लौटा दो। इस मुहीम के नेताओं ने आरोप लगाया है कि सन 2020 तक अमेरीका से 300 टन तथा फ्रान्स में रखा हुआ सोना वापस लाने हेतु दिए गए आश्वासन अधूरे हैं और टालमटोल करने के तरीके हैं।

जर्मनी के इस प्रसंग के बाद और एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दा उपस्थित हुआ है और वह यह कि क्या फेडरल रिजर्व के पास वास्तव में सोने का भंडार है? फेडरल रिजर्व के दावे के अनुसार अमेरीका के पास तकरीबन 8,133 टन इतने बडी मात्रा में सोने का भंडार है। यह सोना न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व, डेनेवर, अमेरीकी सेना ‘फोर्ट नॉक्स’ तल जैसे स्थानों पर रखा गया है।

परंतु विवाद की बात यह है कि 1953 के बाद इनमें से किसी भी स्थान पर सोने का ’ऑडिट’ नहीं किया गया है। इसलिए यह प्रश्न निर्माण हुआ है कि, अमेरीका के फेडरल रिजर्व के दावे पर विश्वास कैसे किया जाए? जर्मनी को इस बात का खेद हुआ होगा कि उसके अधिकारियों से उचित व्यवहार नहीं किया गया, मगर अचरज की बात तो यह है कि अमेरीकी सांसदों को भी सन 1970 के बाद देश में सोने के भंडार का दर्शन नहीं कराया गया है। अमेरीका के चंद प्रसार माध्यमों ने तथा विश्लेषकों ने यह मुद्दा बार बार उठाया है। पर इसका उत्तर देते समय फेडरल रिजर्व हम पर विश्वास करें (’ट्रस्ट अस’) कहकर बात को टाला है। अमेरीका के वरिष्ठ सांसद रॉन पॉल ने सन 2011 में सोने के ऑडिट के संदर्भ में प्रस्ताव लाने का प्रयास किया, परंतु इस पर भी कोई कारवाई नहीं की गई है।

इसलिए अमेरीका जितना सोना उसके पास होने का दावा कर रही है उसके अस्तित्व पर ही संदेह निर्माण हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में दूसरे देशों में रखे गए सोने का क्या हुआ होगा इसका अंदाजा ही लगा सकते हैं। आनेवाले समय में अमेरीका द्वारा जर्मनी के साथ गोपनीय करार करके या सोने की कीमत अदा करके इस प्रसंग को मिटाने की संभावना अधिक है। यदि ऐसा भी नहीं हुआ तो जर्मनी को ’हमारा सोना खो गया; किसी ने न देखा’ ऐसा चीखने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहेगा।

जर्मनी को सोना दिखाने या सोने का परिक्षण कराने के लिए अमेरीका सरकार भले ही नहीं मानती हो फिर भी यह सोना है, और इस पर जग विश्वास करे, इस बारे में वह आग्रही है। देखा जाए तो चलन और सोने का संबंध अमेरीका ने ही सन 1971 में तोड दिया था। इसलिए यह समझ में नहीं आ रहा है कि सोना उसके पास है अथवा इस संदर्भ में विश्वास रखा जाए ऐसा दावा अमेरीका क्यों कर रही है। मगर सोने का भंडार, अपनी अर्थव्यवस्था और चलन के बारे में अंतरराष्ट्रिय समुदाय और निवेशकों को विश्वास दिलाता है। अमेरीका के अर्थ विशेषज्ञों ने सोने के इतने भंडार रखने के प्रति विभिन्न कारण दिए हैं। फेडरल रिजर्व के भूतपूर्व गवर्नर ऍलन ग्रीनस्पॅन ने कहा था कि, जरुरत पडने पर इस्तेमाल करने हेतु सोने का भंडार रखा है। तो विद्यमान गवर्नर बेन बर्नांके ने उत्तर दिया कि सोने का भंडार जतन करना यह दीर्घकालीन परंपरा है। 

मुडीज् ऍनालिटिक्स में प्रमुख अर्थ विशेषज्ञ के रूप में जाने जानेवाले मार्क जैंडी ने इन शब्दों में सफाई देने की कोशिश की कि, हमारे पास सोने का बडा भंडार होने की वजह से निवेशकों को कुछ हद तक विश्वास होता है।

भारत जैसे देश ने सन 1991 में आर्थिक संकट के दौरान सोना गिरवी रखकर पैसे जुटाए थे और अर्थव्यवस्था को संभाला था। गिरवी रखने के लिए सोना था इसलिए उस दौर में अर्थव्यवस्था पर निवेशकों का विश्वास गंवाने पर भी भारत को निधि प्राप्त हुई।

अब अमेरीकी प्रतिनिधी भी ऐसी टीका करने लगे हैं कि, अर्थव्यवस्था कितनी भी सुदृढ क्यों न हो फिर भी उसका आधार सोना ही होना चाहिए, प्रिंटिंग प्रेस में संपत्ती बनाई नहीं जा सकती। 

इसीलिए फेडरल रिजर्व के पास रखे हुए जर्मनी के सोने का क्या हुआ, यह प्रश्न केवल अमेरीका और जर्मनी तक ही सीमित नहीं रह सकता। इसकी वजह से अमेरीका तथा विश्व की अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं। वास्तव में जर्मनी को अभी ही अपना सोना फेडरल रिजर्व से वापस लेने की क्यों सूझी, यह बात सोचने योग्य है। 

अमेरीकन अर्थव्यवस्था कर्ज के बोझ तले कुचली जाते समय केवल जर्मनी में ही नहीं बल्कि विश्वभर में अविश्वास, अनिश्चितता का वातावरण निर्माण हो गया है। विश्व अर्थव्यवस्था पर इसके विपरीत परिणाम होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। इसीलिए जर्मनी के स्वामित्व की सोने की ईंटें उन्हीं को पुन: प्राप्त हों, यही हम सबकी मंगल कामना है। 
॥ हरी ॐ॥

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