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हरि ॐ। यह ब्लाग हमें सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू (डा. अनिरुद्ध जोशी) के बारें में हिंदी में जानकारी प्रदान करता है।

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युरोप का आघात

    ‘टेसला कॉईल’ के संशोधन का प्रमुख आधार ‘इंपल्स’ ही थी। इसके बारे में डॉ.टेसला अधिकाअधिक विचार करने लगे। विद्युतप्रवाह बगैर वायर के सहारे प्रवास कर सकता है तो केवल इंपल्स के कारण ही इस बात का विश्‍वास उन्हें हो चुका था। उस समय एक और महत्त्वपूर्ण बात डॉ.टेसला के ध्यान में आई। इस इंपल्स के कारण विद्युतप्रवाह हवा द्वारा लहरों के समान (व्हेव्हज्) प्रवास न करके बल्कि किरणों की तरह रेज् सीधी रेखा में प्रवास कर रही थीं । इस संशोधन के कारण डॉ.टेसला को आगे चलकर अनेक महत्त्वपूर्ण शोध करने की युक्ती प्राप्त हुई। इसके बारे में अधिक जानकारी आगे चलकर हम प्राप्त करेंगे।

    निसर्ग के बारे में (प्रकृति)विस्तृत  निरीक्षण, अध्ययन एवं चिंतन यह डॉ.टेसला की विशेष पसंद थी। इसके बारे में हमने जानकारी हासिल कर ली है ‘मदर नेचर’ इस प्रकार से प्रकृति का उल्लेख करनेवाले इस महान अनुसंधान कर्ता को इस बात का भी एहसास हुआ कि निसर्ग का कार्य भी ‘इंपल्स’ द्वारा ही चलता रहता है। आसमान में चमकनेवाली बिजली, अचानक मस्तिष्क़ में उठनेवाले विचार, नयी-नयी कल्पनाओं का सूझना, नैसर्गिक चढ़ाव-उतार, ये सब कुछ उस निसर्ग देवता के इंपल्स का ही हिस्सा है। ऐसा विचार डॉ.टेसला करने लगे। सृष्टि के सजीव-निर्जीव होनेवाले तत्त्वों का संबंध परमेश्‍वर के साथ इंपल्सद्वारा ही जुड़ा रहता है। संपूर्ण विश्‍व में इंपल्स तत्त्व ही व्याप्त रहकर अध्यात्म में भी यह  व्याप्त है इस बात का अहसास भी डॉ.टेसला को हुआ।

     संशोधन पर अथक प्रयास करने के पश्‍चात् प्राप्त ज्ञान की जानकारी का लाभ हर कोई बेझिझक खुले आम उठा सके। इसके बारे में डॉ.टेसला बिलकुल खुलकर चर्चा करते थे। अपने नये संशोधन की जानकारी वे विविध जर्नल्स एवं परिषदों में घोषित करते थे। इसीलिए डॉ.टेसला के संशोधन की, प्रयोग की जानकारी विज्ञान-तंत्रज्ञान प्रसारित किये गए लगभग हर एक नियतकालिका द्वारा आने लगे यही कारण था कि डॉ.टेसला का नाम वैज्ञानिक क्षेत्र में धीरे-धीरे ङ्गैलने लगा। भविष्यकाल की उड़ान भरने वाली डॉ.टेसला की वैज्ञानिक दृष्टि को देखकर वैज्ञानिक-तंत्रज्ञान के क्षेत्र के लोग प्रङ्गुल्लित हो उठते थे। 30 जुलाई 1891 के दिन अमेरिकन सरकार ने डॉ.निकोल टेसला को अमरीका का नागरिकत्व प्रदान किया। सात साल पहले टेसला कुल चार सेंट के सिक्के लेकर इस देश में आये थे। इस देश ने बिलकुल सात वर्षों में ही डॉ.टेसला को नागरिकत्व प्रदान किया । इस बात को ध्यान में रखना चाहिए। अपने मित्रों से बात करते समय डॉ.टेसला कहते थे कि मुझे इस देश का नागरिकत्व मिलना बहुत बड़ी बात है ऐसा वे मानते थे।

Dr. Nikola Tesla’s Journey to Europe!
    उनके इस कार्यक्षेत के दौरान, विख्यात शास्त्रज्ञ लॉर्ड केल्विन ने डॉ.टेसला को ‘रॉयल सोसायटी ऑङ्ग लंडन’ में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। ‘रॉयल सोसायटी’ के सभी सदस्यों को डॉ.टेसला एवं उनके द्वारा किए जाने वाले संशोधनों के प्रति जानकारी हासिल करने की अपार उत्सुकता थी। अल्टर नेटिंग करंट एवं वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी इन दोनों के प्रचार के लिए यह एक बहुत सुंदर अवसर सामने से मिला है, ऐसा डॉ.टेसला को प्रतीत हो रहा था। इसी दृष्टिकोन से डॉ.टेसला ने अपने व्याख्यान की तैयारी शुरु की। टेसला ने अपने साथ इस प्रात्यक्षिक के लिए ज़रूरी लगनेवाले सभी चीज़े ले ली कारण ‘रॉयल सोसायटी’ के ये प्रात्यक्षिक उनकी दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थे।

‘रॉयल सोसायटी’ में प्रत्यक्ष व्याख्यान देते समय, डॉ.टेसला ने आरंभ ‘अल्टरनेटिंगकरंट सिस्टम’ के बारे में बिलकुल प्राथमिक धरातल पर जानकारी दी। इसके पश्‍चात उन्होंने ‘हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी’ एवं ‘हाय व्होल्टेज् अल्टरनेटिंग करंट’ के बारे में जानकारी देकर उससे होने वाले लाभ का वर्णन किया। इसके पश्‍चात् टेसला ने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी के बारे में लिए हुए संशोधन एवं उसके प्रात्यक्षिक को प्रदर्शित किया। फ्लोरसन्ट बल्ब एवं ट्युब्ज अपने हाथ में लेकर बिना वायर के ही उसे जलाकर दिखलाया कुछ ङ्गूट की दूरी पर होनेवाली छोटी मोटर्स भी डॉ.टेसला ने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी द्वारा चलाकर दिखाया। इसके प्रति होने वाली आधारभूत वैज्ञानिक तत्त्वों की जानकारी डॉ.टेसला ने स्वतंत्र रुप में इस बार सभी के सामने प्रस्तुत की।

    डॉ. टेसला बड़े ही उत्साह के साथये सारी जानकारी ‘रॉयल सोसायटी’ के सदस्यों के दे रहे थे। सभागृह के सभी लोग उनके प्रात्यक्षिक एवं उनके द्वारा दी जानेवाली जानकारी देखकर आश्‍चर्यचकित हो गए। डॉ.टेसला के आविष्कार को देखकर सारे सदस्य मंत्रमुग्ध हो गए। उस समय वहाँ पर उपस्थित अँग्रेजी भाषी इंजीनियर्स ने इसके प्रति होने वाली शास्त्रीय प्रक्रिया के बारे में प्रश्‍न पुछे। इस पर डॉ.टेसला ने बिना कुछ छिपाये अपने संशोधन से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक उन्हें दी। परन्तु उनका यह संशोधन से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक उन्हें दी। परन्तु उनका यह संशोधन इतना उच्चस्तरीय था कि उनके द्वारा विस्तृत जानकारी देने के बावज़ूद भी डॉ.टेसला के संशोधन की तरह परिणाम बहुत ही कम लोग साध्य कट सके। इस व्याख्यान के बाद भी कुछ महीनों तक डॉ.टेसला यूरोप में ही रहे। इस समय में उन्होंने अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम के बारे में जानकारी प्रस्तुत करनेवाले व्याख्यान दिए। उसी प्रकार वे यूरोप में रहनेवाले अनेक शास्त्रज्ञों से भी मिले। इन शास्त्रज्ञों से उन्होंने उनके संशोधन के बारे में भी जानकारी हासिल की और उसके बारे में चर्चा की।

उनके संशोधन को अपार यश मिलने के बावज़ूद भी डॉ.टेसला के मन में दूसरे संशोधकों के प्रति अपार आदर था। दूसरे संशोधकों द्वारा किए गए संशोधन की जानकारी वे बड़े ही उत्सुकताअ से लेते थे। इससे यह बात सिद्ध होती है, कि डॉ.टेसला उदार हृदय के व्यक्ति थे। उनके मन में किसी भी कार्य के प्रति छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था। दूसरे अन्य शास्त्रज्ञों का वे उतना ही आदर करते थे।

Dr. Nikola Tesla’s Journey to Europe!
     जब वे पॅरिस में थे तब एक दिन रात्रि के समय उन्हें एक टेलीग्राम मिला। जिसमें उनके माँ के बहुत अधिक बीमार होने की खबर थी। अपना दौरा आधे पर ही छोड़कर वे तुरंत पॅरिस से अपने जन्मस्थान स्मिलियान में आ पहुँचे। और आते  ही अपनी माँ से मिले जो उस समय अपने जीवन भी अंतिम साँसे गिन रही थीं। अपने बेटे टेसला का देख वे बहुत खुश हुईं। अपनी माँ से वे मिले उनसे बात चीत की रातभर वे सो ना सके। जैसे ही कुछ पल के लिए उनकी आँख लगी । उन्हें स्वप्न में कुछ देवदूत दिखाई दिए उनमें से एक उनके माँ के समान प्रतीत हो रही थी। हड़बड़ाकर वे उठ बैठे और कुछ ही पल में उनकी माँ इस दुनिया से चल बसी। 1 जून 1892 में उनकी माता ड्युका टेसला का निधन हुआ।

     अपनी माँ से वे बहुत प्यार करते थे। 1879 में उनके पिता का देहान्त हुआ था। उस समय टेसला 23 वर्ष के थे। बचपन से ही वे अपनी कल्पनाओं के बारे में अपने परिवार एवं मित्रों आदि बातचीत करते थे। टेसला की बातें सुन सब उनका मज़ाक उड़ाते थे परन्तु उनकी माँ हमेशा से उन्हें प्रोत्साहित करती रहीं। टेसला के लिए माँ का ही बहुत बड़ा सहारा था। उनके अन्त्येष्ठि के बाद के सप्ताह भर अपने गाँव में ही रहे। वह समय उनके लिए बहुत ही दुखदायी था। इसके पश्‍चात् वे स्वयं भी दो-तीन सप्ताह तक अस्वस्थ रहे।

     जन्मदात्री माँ का आधार खोने के बाद उन्हें केवल परमात्मा का ही आधार था और माता मेरी का। परन्तु उनके इस दैवी माता-पिताने उन्हें सदैव आधार दिया। कठिन से कठिन घड़ियों में भी लगातार संघर्ष करने के लिए लगने वाला सामर्थ्य उन्हें अपने दैवी माता-पिता से मिलता रहा।

इसके पश्‍चात् वे पुन: न्यूयॉर्क के अपने प्रयोगशाला में वापस लौट आये और अपने संशोधन कार्य में पूरी तरह से अपने आप को झोंक दिया।

http://www.aniruddhafriend-samirsinh.com/dr-nikola-teslas-journey-to-europe/

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