डॉ.निकोल टेसला का 1892 का यह अत्यन्त दुर्लभ ङ्गोटोग्राङ्ग। इसमें डॉ.टेसला अपने विशाल प्रयोग शाला में टेसला कॉईल के सामने बैठे हैं। उसी समय टेसला कॉईल में से ‘सङ्गेदद-नीले’ रंग के स्ङ्गुल्लिंग (स्पार्क)बाहर निकल रहे हैं। उसका वर्षाव हो रहा था और डॉ.टेसला मात्र अपने स्वभावनुसार शांतिपूर्वक पढ़ने में मग्न हैं।
‘इपल्स’ के वैज्ञानिक तत्व डॉ.निकोल टेसला को अपने संशोधन से कैसे प्राप्त हुए, इस बात की जानकारी हमने पिछले लेख में देखी। ‘हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी अल्टरनेटिंग करंट’ में उसका उपयोग करने पर करंट हवा के माध्यम से प्रवास करता है, इस बात की जानकारी डॉक्टर टेसला को संशोधन द्वारा ज्ञात हो चुकी थी।
इस बात की भी जानकारी हमने हासिल की। ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ की दृष्टि से टेसला द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था। इसके पश्चात् आनेवाले समय में यह वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी अर्थात बिना वायर के माध्यम से विद्युतभार संवाहन की संकल्पना डॉ.टेसला ने किस तरह विकसित की इस बात की जानकारी हम इस लेखमाला के माध्यम से हासिल करनेवाले हैं। इसके लिए डॉ.टेसला ने अपनी प्रयोगशाला में जो प्रयोग किये थे उनकी जानकारी हम विस्तारपूर्वक हासिल करेंगे।
इंपल्स के तत्वानुसार करंट हवा के साथ प्रवास करता है ये देखने के पश्चात् डॉ.टेसला ने इस पर भिन्न-भिन्न प्रयोग शुरु किए। सर्किट में बदलाव लाकर डॉ.टेसला ने उसमें रोटरी स्विच डाल दिया। इसके खुलने-बंद होने की गति मिनटों में 6 हजार जितनी थी और टेसलाद्वारा इस प्रयोग में उपयोग किया गया विद्युतप्रवाह 15 हजार व्होल्ट जितना था। पहलेवाले प्रयोग में टेसला को अपने शरीर में असंख्य सुइयों के चुभन होने का अनुभव हुआ था। यह हमने देखा था। इस भिन्न प्रकार के प्रयोग में रोटरी स्विच के कारण उस अनुभव की तीव्रता और भी अधिक बढ़ गई थी।
इसी कारण अधिक इंपल्सेस की निर्मिती हुई तथा व्होलेटेज और भी अधिक प्रमाण में बढ़ गए। इंपल्सेस बढ़ते रहने के कारण ही व्होलटेज का प्रमाण बढ़ता है, यह बात डॉ.टेसला ने जाना। यह प्रयोग चल रहा था उस समय ही सङ्गेद-नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग(स्पार्कस्) बाहर आ रहे थे। इस प्रयोग के दरमियान डॉ.टेसला के शरीर में असंख्य सुईयों की चुभन होने का अनुभव आ ही रहा था। परन्तु इस महान संशोधक ने ये सारी वेदनायें, शारीरिक कष्ट हँसते हुए स्वीकार किया। कारण उनकी अपने संशोधन एवं परमेश्वर पर अटल श्रद्धा थी। यह संशोधन यदि यशस्वी हो जाता तो संपूर्ण मानव जाति को ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ का वरदान प्राप्प्त हो चुका होता। इसके लिए डॉ.टेसला कितनी भी तकलीङ्गें उठाने के लिए तैयार थे। और इस प्रयोग के लिए उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया। इस प्रयोग के लिए उन्होंने अपने स्वयं के जान तक की परवाह नहीं की। डॉ.टेसला की सहायता के लिए उनके असिस्टंट भी थे, ही परन्तु डॉ.टेसला ने यह प्रयोग स्वयं ही किया, इस बात पर हमें ध्यान देना चाहिए।
इस प्रयोग में अधिकाअधिक सुधार करते-करते डॉ.टेसला ने इसके लिए स्वयं ही मेकनिकल रोटरी स्विच् बनाई। उसकी क्षमता एक सेकंड में दस हजार रोटेशन जितनी थी। इससे एक सेकंड में दस हजार इंपल्सेस की निर्मिती होती थी। उसमें से लगभग एक लाख व्होल्ट जितनी विद्युत निर्मिती होने लगी। इस प्रयोग से उन्हें एक अनोखे प्रकार के खोज की प्राप्ति हुई। उसे डॉ.टेसला ने ‘इलेक्ट्रिक सोना इङ्गेक्ट’ नाम प्रदान किया। इसी खोज के द्वारा आगे चलकर ‘इलेक्ट्रो थेरेपी’ का जन्म हुआ।
इस प्रयोग में डॉ.टेसला ने ‘मॅग्नेटिक अर्क गॅप’का उपयोग किया। ‘प्रायमरी’ एवं ‘सेकंडरी कॉईल’ की रचना की। अब इस प्रयोग द्वारा तैयार होनेवाले विद्युत का प्रमाण दस लाख व्होल्ट्स के भी आगे निकल गया। बगैर वायर विद्युतभार संवाहन अधिक दूर तक किया जा सकता है, यह बात डॉ.टेसला के प्रयोगद्वारा निदर्शित हुई।
इस प्रयोग के दरमियान सङ्गेद, नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग बहुत बड़े पैमाने पर बाहर निकल रहे थे। परन्तु ये स्ङ्गुल्लिंग सभी वस्तुओं में से प्रवास कर रहा था। आश्चर्य की बात तो यह हैं कि ये स्ङ्गुल्लिंग देखने में तो चिन्गारी की तरह दिखाई दे रहे थे, ङ्गिर भी उसका मानवी शरीर पर अथवा वस्तुओं पर किसी भी प्रकार का विघातक परिणाम नहीं हो रहा था। उलटे ये स्ङ्गुल्लिंग शरीर से होकर गुजरते थे तब, शरीर को हलका सा ठंड लगने का अनुभव हो रहा था।
इस प्रयोग के आरंभ में कम ङ्ग्रिक्वेन्सी पर डॉ.टेसला के शरीर पर सुईयों के चुभन का अनुभव हो रहा था, वहीं हाय ङ्ग्रिक्वेन्सी पर बिलकुल भी पता नहीं चल रहा था। इसके बजाय यह ‘कुलिंग इङ्गेक्ट’ हाय ङ्ग्रिक्वेन्न्सी पर प्रयोग करते समय डॉ.टेसला को इसका अनुभव हुआ।
कुछ विशिष्ष्ठ ङ्ग्रिक्वेन्सी में यह सङ्गेद, नीले रंगों के स्ङ्गुल्लिंग हमारे कक्ष में आनेवाले कुछ प्रकार के बल्ब एवं ट्युब्ज वायरलेस विद्युतप्रवाह द्वारा जलाकर दिखाते थे।
इस संशोधन को और भी अधिक आगे ले जाते समय, जिस कॉईल में से अधिक से अधिक स्ङ्गुल्लिंग बाहर निकलता था, उस कॉईल पर डॉ.टेसला ने ताँबे का गोला जोड़ दिया। इस ताँबे के गोले में से ये स्ङ्गुल्लिंग एकत्रित होकर बाहर निकलने लगे। आसमान में जिस तरह बिजली कड़कड़ाती है, उसी प्रकार की ध्वनी उत्पन्न करते हुए ये सङ्गेद-नीले रंग के स्ङ्गुल्लिंग केवल इस ताँबे के गोले से बाहर निकलने लगे। पहलेवाले प्रयोग में वे कहीं से भी बाहर निकल पड़ते थे। ताँबे के गोले का प्रयोग करने पर मात्र वे उसमें से ही बाहर निकलने लगे।
इस ताँबे के गोले का उपयोग करने के कारण और भी एक बात निदर्शन में आई। कम से कम विद्युत का उपयोग करने पर अधिकअधिक उर्जा, इस रचना के कारण निर्माण होने लगी। इसी रचना को आज हम टेसला कॉईल के नाम से जानते हैं। इस टेसला कॉईल के कारण डॉ.टेसला ‘वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी’ का प्रयोग यशस्वी रुप में करके दिखा सके। उसी समय यह वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी ‘मानवों’ के लिए अत्यन्त सुरक्षित हो गयी। कुछ विशिष्ट सर्किट का उपयोग करके हर अंतर पर से इस वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग किया जा सकता है। इस तरह से डॉ.टेसला ने इलेक्ट्रिसिटी की संकल्पना को प्रत्यक्ष में उतारा।
आजकल के अधिकतर अॅनिमेशन ङ्गिल्मों में और कुछ कम्प्युटर गेम्स् में टेसला कॉईल बहुत ही घातक-अस्त्र होने का चित्रांकित किया जाता हैं। टेसला कॉईल में से निकलने वाला स्ङ्गुल्लिंग (स्पार्क) जिस वस्तु पर गिरता है, उस वस्तु को जलकर खाक होते दिखाया जाता था। परन्तु टेसला ने इन लोगों को अपने प्रयोग द्वारा यह साबित करके दिखा दिया था कि टेसला कॉईल घातक न होकर अतिशय उपयुक्त है।
मात्र टेसला कॉईल के बारे में कोई भी प्रयोग उसके संपूर्णज्ञान एवं विशेतज्ञों के मार्गदर्शन बिना नहीं करना चाहिए।
इसके बारे में गहराई तक अध्ययन करके उसका योग्य तरह से उपयोग करने पर टेसला कॉईल द्वारा बगैर वायर के विद्युतभार संवाहन किया जा सकता है, उसी प्रकार बगैर वायर के कुछ विशिष्ट प्रकार के बल्बज् प्रकाशमान किये जा सकते हैं।
21 वी सदी में विज्ञान तंत्रज्ञान का ध्रुतगती के साथ प्रगति होते समय भी डॉ.टेसला ने लोगों की सोच से परे इस तरह के विस्मयकारक प्रयोग यशस्वी कर दिखाए। इसके बारे में अधिक जानकारी हम अगले लेख में देखेंगे।
http://www.aniruddhafriend-samirsinh.com/wireless-electricity-part-2/
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