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हरि ॐ। यह ब्लाग हमें सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू (डा. अनिरुद्ध जोशी) के बारें में हिंदी में जानकारी प्रदान करता है।

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कारगिल की खेती

उस दिन जम्मू - कश्मिर के अखनूर जिले के एक ग्राम में एक समारोह का आयोजन किया गया था। भारतीय सेना की दसवी इन्फ्रैंट्री डिविजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल कुलप्रीत सिंह और जम्मू-कश्मिर के पुलिस उपनिरीक्षक सिमरनदीप सिंह इस समारोह में प्रमुख अतिथी के रूप में मौजूद थे। भारतीय सेना ने १९९९ साल में कारगिल युद्ध के दौरान इन किसानों की जमीन अपने अधिकार में ली थी । सोलह साल के बाद किसानोंको उनकी जमीन वापस लौटाई गयी । इस समारोह में करीब ३७ एकड़ कृषि-भूमि को स्थानीय किसानों के सुपुर्द कर दिया गया। उस वक्त हरेक किसान का चेहरा खिल उठा था (हरेक किसान के चेहरे पर समाधान झलक रहा था )।

१९९९ के फरवरी माह में पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मिर के नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास की चौकियाँ अपने कब्जे में कर लेने की शुरुवात की थी।  पाकिस्तानी सेना ने इस कारवाई की शुरुवात करते वक्त कानोकान खबर नही होने दे थी अत: भारतीय गुप्तचर विभाग (जासूसी विभाग) को पाकिस्तानी सेना की इस कारवाई का पता देरी से चला और उसके बाद जो हुआ उसे सारे लोग जानते ही है । 

भारतीय सेनाने ’‘ऑपरेशन विजय’ हाथ में लेकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को यहाँ से भगा दिया था । कारगिल पर कब्जा करके उसके बाद पूरे कश्मिर को हडप लेने का पाकिस्तानी सेना का मनसुबा पानी में तो बह ही गया था और उपर से पाकिस्तानी सेना की नाक कट गयी थी । भारत को आसानी से हरा देंगे ऐसी दहाड भरी तोंपे पाकिस्तानी सेना दाग रही थी । ६५ एवं ७१ साल के युध्द से वाकिफ न होनेवाली पाकिस्तानी युवाओं को अपनी सेना पर बहुत भरोसा था पर वो कितना बेबुनियादी था, यह कारगिल युध्द से स्पष्ट हुआ था ।

पाकिस्तानी सेना के खिलाफ जब भारतीय सेनाने जम्मू के नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास की किसानों की कृषी भूमी सुरक्षा के हेतु अपने अधिकार में ली थी । भारतीय सेना को पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकने के लिए जमीन में बारूदी सुरंग (माईन) बिछाने का काम करना था और उसी कारण से भारतीय सेना को वह कृषी -भूमी चाहिए थी । किसानों ने सुरक्षा के लिए तकरीबन ३० हजार एकड़ से अधिक मात्रा में अपनी कृषि-भूमि भारतीय सेना के हवाले कर (हाथों में सौंप) दी थी । भारतीय सेना के कई अधिकारी बतलाते हैं कि इस कारगिल युध्द में इस कृषि-भूमी पर बिछाए हुए बारूदी सुरंग ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभायी हैं । कारगिल युध्द में भारतीय सेनाने विजय हासिल कर ली थी किंतु किसानों की वह कृषि-भूमी उन्हें वापस लौटायी नहीं थी क्योंकि उस कृषि-भूमी में लगभग ८०० बारूदी सुरुंग (माईन) बिछा दिये थे और उन्हें नाकाम करने का काम कई सालों से शुरु था ।

२०१० साल में उस जमीन से बारूदी सुरंग हटाये जाने की सूचना जारी कर दी थी। उसके बाद कई किसानों को उनकी जमिनें लौटायी भी गयी थी किंतु अभी भी कई कृषि क्षेत्र में बारूदी-सुरंग बचे है ऐसी शिकायत किसानोंने दर्ज करने पर उस कृषि-भूमी में बारूदी-सुरंग ढूँढने की नयी कारवाई सेना को अपने हाथों में लेनी पडी थी । इस साल के मई मास में शुरु की हुई वह कारवाई अक्तूबर मास में खतम हुई । इस कृषि-क्षेत्र से बारूदी -सुरंग नाकाम (निकम्मा) करके बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना के २० जवान दिनरात इकठ्ठा कर रहे थे । 

अपनी कृषि-भूमी वापस पाकर यहां के किसान मानो खुशी से झूम रहे थे । उसके अलावा पाकिस्तान के हमले का धोखा भी करीबन नष्ट हो गया था ऐसे आसार दिख रहें थे क्यों कि भारतीय सेना उस जगह पर बहुत ही सावधानी से निगेबानी कर रही थी । उसी वजह से किसानों को उनकी हिफाजत और शांति सुनिश्चितता से प्राप्त भी हुई थी और उनको पेट पालने की समस्या का भी हल मिल गया था । 

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