दत्तगुरुकृपा से मैं सर्वसमर्थ तत्पर ।
श्रद्धावान को दूँगा सदैव आधार ॥
श्रद्धावान को दूँगा सदैव आधार ॥
मैं तुम्हारी सहायता करूँगा निश्चित ।
परन्तु मेरे मार्ग त्रि-नाथों को ही है ज्ञात ॥
परन्तु मेरे मार्ग त्रि-नाथों को ही है ज्ञात ॥
मत करना इस विषय में संदेह बिलकुल भी ।
न होने दूँगा घात तुम्हारा मैं कभी भी ॥
न होने दूँगा घात तुम्हारा मैं कभी भी ॥
प्रेमल भक्त के जीवन में ।
नहीं ढूँढ़ने बैठता हूँ पाप मैं ॥
नहीं ढूँढ़ने बैठता हूँ पाप मैं ॥
हो जाते ही मेरा एक दृष्टिपात ।
भक्त बन जायेगा पापरहित ॥
भक्त बन जायेगा पापरहित ॥
मुझपर जिसका पूर्ण विश्वास ।
उसकी ग़लतियों को दुरुस्त करूँगा खास ॥
उसकी ग़लतियों को दुरुस्त करूँगा खास ॥
साथ ही, सतायेगा जो मेरे भक्तों को ।
सज़ा अवश्य ही मैं दूँगा उसको ॥
सज़ा अवश्य ही मैं दूँगा उसको ॥
मेरे भक्तों का कोई भी प्रारब्ध ।
बदल दूँगा, तोड़ दूँगा या बनाऊँगा बाँध॥
बदल दूँगा, तोड़ दूँगा या बनाऊँगा बाँध॥
न आने देते हुए जगदंबा के नियम को बाध ।
दुख से निकालकर बाहर, मार्ग दिखाऊँगा अगाध ॥
दुख से निकालकर बाहर, मार्ग दिखाऊँगा अगाध ॥
सदैव मैं तुम्हारा उगता देव ।
नहीं ढल जाऊँगा, सौम्य कर दूँगा दैव ॥ १० ॥
नहीं ढल जाऊँगा, सौम्य कर दूँगा दैव ॥ १० ॥
पूर्ण श्रद्धा से मानो मन्नत, बहाओ पसीना, करो भक्ति परम ।
प्रसन्न होता हूँ तुम्हारी श्रद्धा से, तुम्हारे लिए मैं सर्वकाल सुखधाम ॥
प्रसन्न होता हूँ तुम्हारी श्रद्धा से, तुम्हारे लिए मैं सर्वकाल सुखधाम ॥
सभी मार्गों में, मुझे है प्रिय भक्ति ।
जन्म-जीवन-मृत्यु तुम्हारा न व्यर्थ होगा कुछ भी ॥
जन्म-जीवन-मृत्यु तुम्हारा न व्यर्थ होगा कुछ भी ॥
शरणागत होकर करेगा जो गजर ।
उसके जीवन में सुख अपरंपार ॥
उसके जीवन में सुख अपरंपार ॥
मेरी भक्ति करने से, तुम्हें कौन रोकेगा?
कामक्रोध यदि होंगे भरकर, मेरा नाम मेरे भक्त को तारेगा ॥
कामक्रोध यदि होंगे भरकर, मेरा नाम मेरे भक्त को तारेगा ॥
प्रेम से जो लेगा मेरा नाम, उसकी सभी कामनाएँ पूरी करूँगा ।
समृद्ध कर दूँगा उसका धाम, शान्ति सन्तोष भर दूँगा ॥
समृद्ध कर दूँगा उसका धाम, शान्ति सन्तोष भर दूँगा ॥
मेरे चरणों का नि:संदेह ध्यान करने पर ।
सहस्रकोटि संकट भाग जायेंगे डरकर ॥
सहस्रकोटि संकट भाग जायेंगे डरकर ॥
सच्चा भक्त रहता है, दो चरणों में मेरे ।
तीसरा कदम मेरा कुचल देगा संकटों को तुम्हारे ॥
तीसरा कदम मेरा कुचल देगा संकटों को तुम्हारे ॥
जहाँ पर है भक्ति पूर्ण श्रद्धा और प्रेम ।
वहाँ पर कर्तार मैं त्रिविक्रम ॥ १८ ॥
वहाँ पर कर्तार मैं त्रिविक्रम ॥ १८ ॥
अभंगलेखक – डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll
॥ नाथसंविध् ॥
॥ नाथसंविध् ॥
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