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हरि ॐ। यह ब्लाग हमें सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू (डा. अनिरुद्ध जोशी) के बारें में हिंदी में जानकारी प्रदान करता है।

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मॆनेजमेंट का नया मंत्र "जुगाड”

ज्यादातर समय हम अपनें रोज के काममें इतने व्यस्त होते है की अपनें  त्रमें और अपने आजू-बाजू कीं परिस्थिती में क्या बदलाव आ रहे है, उसकी भनक उसका एहसास करने की, दखल लेनें की भी फुर्सत हमें नही है। हम अगर हमारे आजूबाजू की परिस्थिती से भलेही सजग न हो, तो भी बापू उनके श्रद्धावान दोस्तो के लिए हमेशा वास्तव का ध्यान रखकर सजग रहते है। इसी सजगता सें बापू ने जुलै २०१२ में खुद दो सेमीनार कंडक्ट किए। जिसके पिछे थें उनके बहोत-बहोत परिश्रम और अभ्यास।


इस सहस्त्रककें पहलें बारा सालों में अनेक छेत्रों में अनेक बदलाव आए। शाश्वत मानवी मूल्यों का सँभालते समय, हुए हुए बदालवें से और बदलाव की गती के साथ हम खुद को जुडा नही पाए। आनेवाले समय में शायद हमारा टिकना संभव नही हो पाएगा, हम कही-पर गल जाएँगे, और इसीलिए बदलते समय की पदचिन्हों को पहचानकर बापूने गिने चुने सिर्फ सत्तरा लोगों का सेमीनार लिया। तीस घंटो के इस सेमीनार मे बापूने अनेकोंनेक विषयों की पहचान कराकें दी। अटेंशन इकॉनॉमी "जुगाड” क्लाऊड कॉम्प्युटिंग जैसे अनेक  विषयोंसे अनभिज्ञ  थे। "जुगाड’ के बारे मे बोलते समय बापू ने कहा "आगे आनेवाले समयमें सहीसलामत बचकें निकलना है तो "जुगाड’ स्ट्रेटजी यह एकमेव ही उपाय होगा। "जुगाड” स्ट्रेटजी ही जीवन का हर एक अंग छाकर रहेगी।


"राममेहरसिंग” की पोल्ट्रीफार्म पर इलेक्ट्रीसीटी तो उपलब्ध थी, लेकीन हमेशा की गारंटी  नही थी। लोडशेडींग बहुत ही डरावना होता जा रहा था। घंटो-घंटो तक बिजली न होने के कारण पोल्ट्रीफार्म चलाना मुश्किल बनता जा रहा था। एक बाजू में यह प्रश्न, और दुसरे बाजूमें जनरेटरके डीजल का बढता हुआ खर्च। बिजली का बिल महिना लगभग ४५,०००/- और साथ में डीजल का खर्चा महिना १,२०,०००/- रु.


सवाल तो कठीन था। लेकिन पहले जमाने के सैनिक राममेहरसिंग अपने सामने खडे इस कठिण प्रश्न से डगमगाए नही, बिथर नही गए। हरियाना के झज्जल गावके राममेहरसिंगने बहोत ही शांतीसे, पूर्ण विचारों के बाद उनके मन को जो भाया हुआ, सीधा और आसान, लेकीन मेहनतका ऐसा कुछ उपाय ढूँढा की आगे जाकर सबको वह मार्गदर्शक बन गया। यह उपाय करने के बाद राममेहरसिंग का डिझेल खर्च अब है, सिर्फ रु. ६०,०००/- और अब उन्होने दक्षिण हरियाना बिजली वितरण निगमसे बिजली लेना भी बंद कर दिया। आज वह कम से कम महिना रु १,००,०००/- की बचत कर रहे है। लेकिन यह उन्होने कैसा मुमकीन किया?


राममेहर सिंग उनके फार्म पर बडी मात्रा में उपलब्ध रहने वाला पोल्ट्री वेस्ट का उपयोग करके बायोगॆस पावर प्लांट लगाने के बाद, उनके पास खुद इस पद्धती का उपयोग करके खुद ही निर्माण की गयी बिजली का प्रमाण इतना है, की दिनमें किसी भी प्रकार के लोडशेडिंग के बावजूद, कमसे कम १४ घंटो तक बिजली का वह इस्तमाल कर रहे है। उसके साथ ही पोल्ट्री वेस्ट के उपयोग से पावर प्लांट से निकलने वाली स्लरी (मैला) जो अत्यंत पुष्टिकर होने की वजह से "रवाद” के तौर पर खेतों मे इस्तमाल हो रहा है। इस "रवाद” मे नायट्रोजन, पोटॆशिअम और फॊस्फरस जैसे पुश्टिकर द्रव्य बडी मात्रा में उपलब्ध होते है, यह इस प्रयोग के बाद प्रमाणित किया गया है।ऐसी है यह पोल्ट्री वेस्ट से इलेक्ट्रीकल पावर जनरेशन की (बिजली निर्माण की) राममेहरसिंग की अनोखी संकल्पना।


राममेहरसिंग की यह नई संकल्पना सिर्फ प्रतिकुल परिस्थिती का मौका उठाते हुए "वेस्ट” को ही महत्त्वपूर्ण साधनसंपत्ती मे रुपांतरीत किया। उन्होने खुद की समस्या पर एक सस्ता और विश्र्वास पैदा करनेवाला उपाय, निकाला ही, लेकीन हरियाना कें सभी पोल्ट्रीफार्म के मालिकों को एक अनोखा मार्ग दिखाया। राममेहरसिंग के अनोखी खोज पर हरियाना सरकार ने भी उचित ध्यान दिया। और इस प्रकार से बिजली निर्माण करने की जिनकी इच्छा थी, ऐसे पोल्ट्रीफार्म के मालिकों को आर्थिक सहायता की सुविधा उपलब्ध की।


आज की भाषा में अगर प्रचलित शब्द का उपयोग करना हो तो ऐसा पूछना पडेगा की, राममेहरसिंग ने किस तरह से ये "जुगाड’ किया?


"जुगाड’ हम भारतीय "जुगाड’ इस शब्द का उपयोग बहोत ही सहजता पूर्वक रोज के जीवन में इस्तमाल करते है। कोई काम या कुच करनेवाली चीजें अगर सहजतासें होती नही या उसका तालमेल नही हो पाता तो हम लोग झट से, हमे जो शब्द अभिप्रेत है "कैसे भी करके ये काम निपटना है।’ उसके लिए किस मार्ग का अनुसरण किया जाए, बहोत बार अनेक लोगो को ऐसा करने में कोई भी मार्ग फिर "निषिद्ध’ (इस्तमाल नही करना) नही होता, और इस रायज अर्थ के कारण, बहोत से लोग इसका गलत ही इस्तमाल करते है। 


... और फिर इधरही प्रश्न उपस्थित होता है की जुगाड’ याने की क्या? आजके मॅनेजमेंट गुरुओंको और कंपनीयों के C.E.O.'s को इस शब्द का किसी भी हालत में यही अर्थ रायज है क्या? उनकी भी संकल्पना ऐसीही है क्या? बिलकुल नही। क्योंकी अगर आजकी जानलेवा स्पर्धा के युग में अगर आपको टिके रहना है तो अपने लिमीट से कुछ जादा देना चाहिए। क्योंकी अगर आजकी जानलेवा स्पर्धा के युग मे अगर आपको टिके रहना है, तो अपने लिमिट से कुछ जादा देना चाहिए। और इसका पुरा विश्वास यकीन में बदल सकता इसकी गॆरेन्टी आज के मेनेजमेंट जगत का "जुगाड’यह एक स्वयंसिद्ध मंत्र बन गया है। जो एक शास्त्रीय तंत्र है। साथ में एक कला भी है। जिसका पुरी तरह से विश्वास आजके मेनेजमेंट जगत को हो रहा है।


"जुगाड’ इस मेनेजमेंट मंत्र की या तंत्र की आसान और समझनेवाली व्याख्या अगर करनी हो तो ऐसा कह सकते है, की "जुगाड’ याने की मानवकें सूझबूझ से और हुशारीकी सहाय्यतासे, उपलब्ध साधनोसे प्रतिकूल परिस्थितीपर मात देकर, सबके लिए फायदेमंद साबित होनेवाला आसान, समझनेवाला और किफायती उपाय या समझोता निकालने की एक योजनाबद्ध तत्त्वप्रणाली।"जुगाड के लिए सवार होकर चॅलेंज स्वीकारने की मनकी धारणा होनी चाहिए। साथी ही जरुरी होता है हमेशा उपयोग में आनेवाली वस्तू आ नए वस्तू की तरह इस्तमाल करना, हुशारी और तुरन्त निर्णय लेनेकी क्षमता, कल्पकता, कठीन परिस्थिती में भी मन को शांर रखने की ताकद और साथही परिस्थिती के अनुसार बदल करने के विचारपूर्वक कृती करके किफायतीशिर मार्गसे अपेक्षित या अपेक्षासे जादा फलप्राप्ती या फलनिश्पत्ती कर सकते है। शायद यह फलनिष्पती कभी "कम खर्चा और जादा फायदा" इस स्वरूप मे होगी, या कभी "कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम स्वरूप में हो सकती है। इन दो विभिन्न प्रसंगो मे वस्तू का या सेव का दर्जा या गुणवत्ता किसी भी प्रकारसे गिरती नही या, उसको गिराया जाता भी नही। ऐसी अनोखी मॅनेजमेंट तंत्र का उगम भारत में हुआ है यह सुनकर अनेक लोगोंकी भौं उंची हो सकती है। लेकीन आज उसके उपयोग का विशिष्ठ ऐसा एक शास्त्र विकसित किया गया है, यह पक्का है।


’जुगाड’ यह शब्द  ’जुग्गड’ इस हिंदी / पंजाबी भाषा से आया है । पंजाब के ग्रामीण एरिया मे परिवहन का मार्ग रहनेवाला, अलग अलग पार्ट जोडकर बनाया गया, लोकप्रिय और कम खर्चाऊ वाहन याने की ’जूग्गड’ । यह वाहन प्रवासी (यात्रा करनेवाले) और सामान ले जा करनेके लिये समानरूपसे इस्तमाल किया जाता है । इसका आगेका भाग रहता है सायकल जैसा ; और पिछवाडा रहता है सायकल रिक्षा सरेखा या फ़िर जीप के पिछेका हिस्सा होता है वैसा । कम से कम लगभग ६० लोग एक ही समय इसमे यात्रा कर सकते है । कभी कभी तो इससे ज्यादा भी लोग यात्रा करते है । लेकिन बहुत कम समय यह वाहन जिस डिजल इंजिन पर चलता है, वह देखा जाए तो खेत मे इरिगेशन पंप चलाने के लिये इस्तमाल करते थे । इस वाहनों की आरटीओ की मान्यता प्राप्त नही है, तो  भी आज भारत के ग्रामीण क्षेत्र मे बडी मात्रा मे इस वाहन का उपयोग किया जाता है। आज पुराने डिजल इंजिन की जगह मोटर सायकल के इंजिन ने ली है । 


उपलब्ध साधनोंका उचित उपयोग करके कल्पकता से और अच्छी या जिसमे कुछ नया हो ऐसी चीज बनाना याने की ’जुगाड’ ; जो करना आवश्यक है वह कम समय कम पैसे मे करना याने की ’जुगाड’ । ’सर्व्हायव्हल ऒफ़ द फ़िटेस्ट’ याने की जो सक्षम है | उसका की काल ने चक्र में निभाव लगता है, वही टिकता है। और इसे प्रत्यक्ष रुप में लाना याने की "जुगाड’"। 


इस सहस्त्रककें पहिले बारा सालोमेंही हमने अनेक क्षेत्रो में अनेक स्तरोपर प्रचंड बदल होते हुए देखे है। इन बदलोंका स्पीड भी वैसे ही प्रचंड है, और यह स्पीड पकडते-पकडते बहोतोकी तो जान निकलती है। लेकीन शाश्वत मानवी मूल्योंका अगर हमने जतन नही किया तो कालचक्र की गतीमें हम टिक नही सकेंगे। हम बिखर सकते है, हमारा नाश हो सकता और इसिलिए कालचक्र गती, चरण, पहचानकर प्रत्यक्षके कार्यकारी संपादक डॉ.अनिरुद्ध जोशी इन्होने कुछ गिनेचुने सिर्फ सतरा लोगोंका सेमिनार लिया। जुलै कें लगभग दो हप्ते। हरएक व्यक्ति अलग-अलग क्षेत्रसे निगडीत थी। कोई डॉक्टर, कोई इंजिनिअर, तो कोई वकील, कोई बिझनेसमन तो कोई कॉर्पोरेट सेक्टर में उच्चपदस्थ स्वरूप मे काम करनेवाले मॅनेजमेंट एक्सपर्ट थे। तो कोई प्रायव्हेट कंपनीमें काम करनेवाले तो कुछ सेवाभावी संस्थासे जुडे हुए। इस तीस (३०) घंटो की सेमीनारमे डॉ.अनिरुद्धजीने अनेकविध विषयोके बारे में पहचान करा दी। अर्टेशन इकॉनॉमी, जुगाड, क्लाऊड कॉम्युटिंग जैसे अनेक विषयोंसे बहोतसे अनजाने थे। जुगाड के बारे में बोलते समय डॉ. अनिरुद्धजीने कहा, आनेवाले काल में यशस्वी होना है, तैरके जाना है, तो जुगाड स्ट्रेटजी याने की "जुगाड व्युहतंत्र"  यह एकमेव उपायही होगा और यही जुगाड व्यूहतंत्र या व्यूहरचना जीवनके हर एक अंग को छा लेगी; साथही हर एक के जीवन का महत्वपूर्ण भाग बनकर उसे सक्षम बनाएगी।


और इसिलिए इस "जुगाड" की जरुरत आज कॉर्पोरेट जगत को भी प्रतीत हो रही है। 

 

आज जग में आर्थिक मंदी का माहोल है। बडी-बडी बहुराष्ट्रीय कंपनीभी अपना खर्चा कैसे कम हो सकता है इसपर लक्ष केंद्रीत कर रही है। अनेक कंपनीयो को उनका रिसर्च और डेव्हलपमेंटपर होनेवाला खर्चा अब भारी पड रहा है। आज की तारीख में प्रचलित "सिक्स सिग्मा’" पद्धती नई परिस्थितीसे निपटने के लिए कम पड रही है। साथ ही इस खर्चेसे नया कुछ हात मे आएगा इसकी कोई गॅरेंटी नही और आया तो भी कभी और कितने समय के बाद, यह भी प्रश्न उपस्थित होता है। मार्केट में तो जानलेवा स्पर्धा है। ऐसे समय में अनेक मॅनेजमेंटगुरुज और बहुराष्ट्रीय कंपनीयोके सीईओज अपना हमेशा का ढाँचा, उसका दृष्टिकोन बदलके भारत मे उद्ग्म पारा "जुगाड" तंत्रका उपयोग हमेशा के व्यवहार में करने लगे है और उसका उत्तम उदाहरण याने की जनरल इलेक्ट्रीक और प्रॉक्टर अॅंड गँबल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनीया!


जुगाड इनोव्हेशन इस किताब में किताब का यश प्रथित लेखक मँनेजमेंट तज्ञ नविराजाऊ, जयदीप प्रभू और सिमोनी आहूजा को जाता है। जिन्होनें "जुगाड’" की छ:(६) मूलभूत तत्व पेश किए है। जिस किसको अपने क्षेत्र में अगर यशस्वी होने की इच्छा आकांक्षा है, उस हर व्यक्तिको इस उत्कृष्ट, किताब कों पढना होगा। किताब में लिखे हुए कुछ तत्व इसप्रकार है;


१) संकट या प्रतिकूल परिस्थितीकोही चान्स मानना। 

२) कमसे कम साधानसंपत्तीका उपयोग करके जादासे जादा अपनी कार्यकक्षमता बढाना।

३) विचारप्रणाली और कृती की परिवर्तनियता याने की ढॉंचे मे बंद विचार प्रणाली छोडकर उदारतावादी होना, अर्थात नयापन स्वीकारने केलिए आवश्यक होनेवाली मन की आझादी।

४) प्रश्नों के उपाय या सिंपल साधा रास्ता जो आसान हो।

५) अनदेखे घटकोंका विचार करना- जिनका पुरी तरह से समावेश करना।

६) मन को भाता है वही करना ( अनेक-अनेक पर्यायों का विचार करने के बाद) 


इन सारे तत्वोका/मुद्दोका एकत्रित विचार करके खोजा गया उपाय मतलब "जुगाड"" तंत्र का उचित उपयोग। कोईभी एक तत्त्व अगर दुर्लक्षित हो गया, तो उसे "जुगाड" कहना मुश्किल होगा; वह "जुगाड" होही नही सकता; और इसिलिए "जुगाड" यह सायन्स (शास्त्र) और आर्ट (कला) का सुंदर संगम है।राममेहरसिंग के इस अभिनव प्रयोग को सब बाजूसे सोचने के बाद ऐसा उअकीन से कह सकते है की "जुगाड" की मूलभूत तत्त्वों को "जुगाड" के जडसे सभी नियमोंका परिपालन किया।


जडसे सभी नियमोंका पालन करने से, आज से कभी न सोचा हुआ उपाय अपने आप सामने आ सकता है। आसाम के मोरीगाव में रहनेवाले कनकदासने सहजतासें इन सारे तत्त्वोंका सुंदर उपयोग करके अपने प्रश्नों का सहज सुंदर उपाय ढूंढा। कामपर जानेके लिए कनकदासजीको हमेशा सायकल से यात्रा करनी पडती और वहाभी गड्डों भरे रास्तोसें। रास्ते ठिकठाक करना यह उनका काम नही था और होता तो भी उनकी कुवत से बाहर था। और ऐसा विचार करना भी निरर्थक था। पिठ कें दर्द से कनकदासजी परेशान थे। लेकीन उन्होने हार न मानी। इस गड्डोभदे, पथ्तरोंसी भरी राहकाही  का मैं किस तरह उपयोग कर सकता हू इन विचारोनें उन्हे घेर लिया। और इसमेसे ही खोज हुई एक अनोखे सायकल की। कनकदासजीनें अपनें सायकल में कुछ बदलाव किए उसके बाद जब सायकल गड्डोंसे जाती है, तब उसके अगले पैह्हीये के "शॉक एब्सॉर्बर्स” उर्जा उत्सर्जित करते है, जिसकी वजह से यह उर्जा पिछले पहियें को गती देनेके लिए इस्तमाल की जाती है। याने की सायकल जितनी बार खड्डोंसे जाकर धक्के खाएगी, उतने ही प्रमाण में वह सायकल सहजतासें जादा स्पीड पकडेगी और चला नेवाले कें परिश्रम कम हो जाएगें, और चलानेवाले को चलाते समय गड्डोंकी तकलीफ शॉक एब्सॉर्बर्स की वजह से कम हो जाएगी! यहापर कनकदासजीने संकटकोही मौका माना। कमसें कम उपकरण इस्तमाल करके वह भी किफायतशीर। उन्होनें खोजा हुआ उपाय सर्वसामान्य आदमी इस्तमाल कर सकता था और यह सब करतें समय उनके विचारोंमें और कृतीमे लचीकता थी। ढाँचे के अंदर विचार करने की प्रणाली को उन्होने ठुकराया; और आखिर में ऐसा कह सकते है की अनेक पर्यायोंका विचार करके आखिर में उनके मन को जो भाया वही उन्होंने कीया।


एसी यह अभिनव सायकल “इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेंट” अहमदाबाद
कें प्रोफेसर श्री. गुप्ताजी के नजरोंमे आई। और उन्होने कनकदासजीको इस खोज का पेटंट दिलाने मे मे मदत की। आज एम.आय.टी के विद्यार्थी भी इस खोज का इस्तमाल स्वयंचलित वाहन मे किस प्रकार कर सकते है इसका शास्त्रके आधारपर अभ्यास कर रहे है। जिसकी वजह से बडे पैमाने पर इंधन की बचत होकर प्रदूषण का स्तर भी कम हो।
लेकीन कनकदासजी यह एक ही स्टॅंड अलोन’ (एकमेव) उदाहरण नही है; भारत मे ऐसे अनेक उदाहरण मिल सकते है। चेंगलपट्टू(तामिलनाडू) के बालरोगतज्ञ डॉ. सत्या जगन्नथ को ग्रामीण क्षेत्र में आवश्यक इन्क्यूबेटर्स का प्रश्न सता रहा था। उस समय सब जगह उपलब्ध होनेवाली इन्क्यूबेटर्स की किमत एक लाख के आसपास थी। ग्रामीन क्षेत्र कें सर्वसामान्य जरुरत मंदों को इसकी सेवा पुसाना मुमकीन नही था। और यह ग्रामीण क्षेत्र में बालमृत्यू होने का एक प्रमुख कारण था। डॉ. सत्या जगन्नाथनकी जिज्ञासा उन्हे शांती से बैठने दे नही रही थी। गरीब जरुरत मंदोकी आत्मीयता, अपनेपनसे, डॉ. सत्या जगन्नाथनने उपयोग में सिंप्पल और "लो-कॉस्ट’ (एकदम सस्ता) "इन्फन्ट वॉर्मर ढूंढ निकाला। उसमेंही फेरफार करके उन्होने एक अनोखे इन्क्यूबेटर की निर्मिती की। जिसकी किमत १५,०००/- तक थी। इस खोज की वजह से आज भारत के ग्रामीण क्षेत्र को सतानेवाला, परेशानकरनेवाला बहोत बडा प्रश्न डॉ. सत्या जगनाथनने हल किया। उसके लिए उन्होने पुरी तरह से अपरंपारिक (अनकन्व्हेन्श्नल) मार्ग का उपयोग किया। लीक के बाहर जाकर खुले मनसे विचार करने की क्षमता उनमे थी।


आज भारतीय कॉर्पोरेट विश्वने भी इस जुगाड तंत्र का उपयोग किया है और उसी का मूर्तिमान उदाहरण याने की "टाटा नॅनो” कार|


आज की घडी मे टाटा नॅनो यह दुनिया की सबसे सस्ती कार है। मोटारसायकल या स्कूओटर से जानेवाली चार लोगों की पुरी फॅमिली, यह भारत में सभी शहरों मे हमेशा दिखनेवाला चित्र था। ऐसे फॅमिलीज को पुसाना ऐसी आरामदेनेवाली, सुरक्षित, साथ में दो पैसो को अर्लटरनेट ऑप्शन साबित होनेवाली कार सबको मिले ऐसी इच्छा उस समय टाटा ग्रुप के चेअरमन रतन टाटा की थी। "जुगाड" तंत्र का उपयोग करके टाटा मोटर्स ने ही यह सच न होनेवाली चिज प्रत्यक्षस्वरूप में लाई। टाटा मोटर्सने "फ्रूगल इंजिनिअरिंग याने की काटछाट कृती और अभियांत्रिकी का बहोतही अच्छा मेल, संगम बनाकर उनका उद्दिष्ट सफल किया और यही कित्ता आगे टाटा मोटर्स के एम.डी. रविकांत ने चलाया। जब पश्चिम बंगाल के सिंगूर में सामाजिक और राजकिय कारणोंके कारण खडा करकें उत्पादन चालू करना मुमकीन न हुआ, तब श्री. रविकांतने सभी पर्यायोंका एकत्रित विचार करके खुद के अंतर्मन का आवाज सुनकर फँक्टरी खडी करके उत्पादन चालू होने के लिए लगनेवाला अठ्ठाईस महिनोंका समय श्री. रविकांतने चौदा महिनोंपर लाया। श्री. रविकांतने "जुगाड’’ के सारे तत्व जैसे के तैसे एक सही तरी के से इस्तमाल में लाए थे|


भारत के कॉर्पोरेट विश्र्व के ऐसे एक नही अनेक किस्से हम देख सकते है।
क्योंकी "जुगाड” के लिए आवश्यक रहनेवाले सारे गुण विचारों की बैठक ही आजूबाजूकें प्रतिकूल परिस्थितीकीं वजहसें भारतीय जनमानसकें मनोवृत्तीमें ही है। सिर्फ उसे एक विशिष्ठ पद्धतीसे इस्तमाल करने की जरुरत है। भारत के सभी शहरों में दिखनेवाली "शेअर रिक्षाकी” पद्धत "जुगाड” नही तो क्या है? बैठनेवाले सभीयो का फायदा, उनकों चाहिए वैसी टॅक्सी और रिक्षाचालकों को भी और ज्यादा उत्पादन ! इंधन की बचत, जिससें कम होनेवाला प्रदूषण और साथही परिवहनपर पडनेवाला तनाव भी कम। अब इस शेअरींग पद्धतीकों शासकीय यंत्रणाकी भी मान्यता प्राप्त होने लगी है। बहुराष्ट्रीय कंपनीयों का उदाहरण दिया जाए तो जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) इस कंपनीका दे सकते है। "जीई” का हमेशा इस्तमाल में आनेवाला महँगा और वजन में भी भारी ईसीजी मशीन भारत मॆं इस्तेमाल में इतना सही नही था। वह ईसीजी मशीन उसके ज्यादा वजनके कारण दुसरी जगह ले जाना मुमकीन न था; क्योंकी उसे वहा से ले जाना
जादा कष्ट निर्माण करनेवाला था । साथही भारत जैसे देश में अनेक जगहों पर लोडशेडिंग (बीजली का भारनियमन) की वजह से ऐसा बिजली पर चलने वाला मशीन किसी काम का न था । ऐसे समय मे जीई (इंडीया) के इंजिनियर्सने यह चॅलेंज स्विकारकर कामयाब होकर एक नए इसीजी मशीन की रचना की । हमेशा के उपयोग मे चलने वाली मशीन की तुलना मे इस ’मॅक ४०’ मशीन का वजन एक पंचमांश था और किंमत एक दशांश थी । वजन से हलका होने के कारण उसे कही भी लेकर जाना डॉक्टरों के लिये बहुत आसान हो गया । और साथही बॅटरी पर चलने के कारण याने की बिजली की जरूरत न होने के कारण, गाँव गाँव में यह मशीन इस्तमाल करना बहुत ही आसान हो रहा था । जीई हेल्थ केअर (इंडीया) के प्रेसिडेंट और सीईओ टेरी ब्रेसनहॅम इनके मत के अनुसार "तुम्हारी खोज यह सिर्फ़ नए तंत्रज्ञान पर डिपेंड न रहकर, यह खोज एक व्यावसायिक आदर्श बननी चाहिए, जिसकी वजहसे नए विकसित तंत्रज्ञान जादा से जादा लोगों फ़सानेमे आ सके और उनतक पहुँचाने वाले हो। और इस नये इसीजी मशीन ने ठीक यही करके दिखाया ।


एक बडे बहुराष्ट्रीय कंपनीने "जुगाड" की छ: की छ: तत्वों की सही तरीकेसे उपयोग में लाने के लिये "जीई" यह एक उत्तम, सही उदाहरण है ।  आज भारत में "जीई" का राजस्व, लगान कम से कम चौदा हजार पाचसौ करोड रुपये इतना है । इस पर हम अंदाजा लगा सकते है की "जीई" के सिर्फ़ भारत के व्यवसाय की व्याप्ति कितनी होगी ।


किसी भी कॉर्पोरेट कंपनी में ऐसा कौनसा भी नया उत्पादन अगर बनाना हो तो उसकी शुरुवात होती है अपना ग्राहक फ़िक्स करने से फ़िर उस ग्राहक की आवश्यकता और जरुरते देखी जाती है । यहॉं पर झटसे आँखोंके सामने आती है, ’नोकिया’ यह बहुराष्ट्रिय मोबाईल कंपनी का ’नोकिया ११०० ’ इस मोबाईल सेट का उदाहरण । जब उनके भारतके, आफ़्रिकाके और ब्राझील के "एथनोग्राफ़र्स" ने उस उस देश के संभाव्य ग्राहकक्षेत्र की जानकारी इकठठा की , तो मोबाईल जैसा नया उत्पादन बाजारमे लाने की तैयारी करने वाली किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए निराशा जनक ही थी । अस्वच्छतासे भरी झोपडपट्टी मे रहने वाले, अशिक्षितों का भरपूर प्रमाण होनेवाले बाजारमें उपलब्ध होनेवाला दुसरा कौनसा भी मोबाईल जेब को न परवडने वाला महँगा और उस मोबाईल की अतिप्रगत फ़ीचर्स समझने मे कठीन लगने वाली गरीब मेहनत करने वाले और मजदूर वर्ग के लोग । जो वहाँ पे रहते थे और काम करते थे  वहाँ पर धुल का जादा प्रमाण और बिजली की कमी होने के कारण उस समय जो सब जगह उपल्ब्ध मोबाईल्स थे , वो इस माहौल मे जादा समय टिक नही पाते । 


यह सब जानकारी हाथ में आते ही नोकियाके आविष्कार कर्ते और तंत्रज्ञ काम मे लग गये.... इस वर्ग को उनकी समस्याओं पर मात करनेवाला मोबाईल उपलब्ध करके देना ही हैयह चॅलेंज उन्होंने स्वीकार लिया ।


........ और साकार हुआ नोकिया का क्रांतीकारी ’नोकिया - ११००’ यह मोबाईल । धुँधले माहौल में भी भारी पडनेवाला मजबूत डिझाईन, जिसमे यह फ़ोन इस्तमाल करनेवाले को कोई कठिनाई न आए इसिलिए अतिप्रगत एक भी फ़िचर नही दिए गए थे.... सिर्फ़ कॉल लेना - करना, साथ ही एसएमएस की सुविधा... बस... ।  साथमे इस रिसर्च करनेवालों के यह भी ध्यान मे आया की बहुत बार इनकी बस्ती मे मोबाईल रखनेवाले लोग मोबाईल स्क्रीन का उपयोग अंधेरेमे उजाले के लिये करते है । तभी उन्होंने इन मोबाईल मे ही टॉर्च का फ़ीचर भी समाविष्ट किया और इस अनोखे डिझाईन की उनको पुश्ती भी मिल गई । यह फ़ोन ग्राहको मे इतनी भारी मात्रा मे लोकप्रिय हो गया की पुछो मत । सिर्फ़ इन गरीब मेहनती बस्तियों मे ही नही तो उपयोग मे आसान होने के कारण मध्यमवर्ग में भी यह अच्छी तरह से लोकप्रिय हो गया की पुछो मत । सिर्फ़ इन गरीब मेहनती बस्तीयोंमे ही नही, तो उपयोग मे आसान होने के कारण, मध्यमवर्गमे भी यह अच्छी तरह से लोकप्रिय हो गया । इसके सिवाय आकस्मिक वह और एक वर्ग में लोकप्रिय हो गया, जो थे आशिया खंड के ट्रक ड्रायव्हर्स ; जिन्हे अगर रात्री के समय ट्रक मे कुछ फ़ॉल्ट आ गया तो उसे दुरुस्त करने के लिये लाईट की जरुरत के कारण उन्होंने भी इस फ़ोन को उठा लिया । यह फ़ोन इतना लोकप्रिय साबित हुआ की पूरे जग मे कम से कम २५ करोड के उपर सेटस् बिक गये । यह आज तक के किसी भी मोबाईल मॉडेल के बिक्री के लिये उच्चांक था । 

आज की घडी मे पहले कभी न महसूस हुई इतनी ’जुगाड’ की आवश्यकता अब समझ मे आ रही है । नए सहस्त्रक के स्वागत समय जग की संख्या छ: सो करोड थी; वही आज इस सहस्त्रक के पहिलेल्ही तप मे सातसौ  करोड तक जा पहुँची है । जिसकी वजह से सची जगह खाना और धान साथही  नैसर्गिक साधन संपत्ती  की कमी बडे पैमाने पर महसूस हो रही है । जिसका परिणाम हर एक वस्तू की किमत पर हो रहा है । साथही किसी भी उत्पादन के समय लगनेवाला पानी और बिजली का प्रश्न भी डरावना रुप धारण कर रहा है। साथ में बाजार में होनेवाली स्पर्धा भी तीव्र होती जा रही है। ग्राहक भी अब चयनशील हो गया है, उसके पास भी खरीददारी के लिए अनेक पर्याय उपलब्ध है। जिसकी वजह से वस्तू की कॉलिटी बढाकर दाम कम रखनेकी जरुरत सबको महसूस हो रही है। .___ ऐसी परिस्थितीमे "जुगाड’" का मार्ग सबको अपनी और खीच रहा है। इशारा कर रहा है। आज के जगतकी तो यह जरुरत बन गई है। 

 

गाव का गरीब मजदूर हो या खेती के साथ पशुपालन करनेवाला छोटा किसान हो या, शहरके कार्पोरेट विश्वकी जिम्मेदारी संभालनेवाला उच्च पद का अधिकारी हो; छोटेसे गाव का छोटासा धंदा करनेवाला हो या फिर देश का बडा उद्योगसमूह हो; मल्टिनॅशनल (बहुराष्ट्रीय) उद्योगसमूह हो या फेसबुक-गुगल जैसी जानकारी तंत्रज्ञानसें जुडी आयटी कंपनीया हो; सरकारी या आधी सरकारी (निमसरकारी)संस्था हो; हर एक को आनेवाले समयमें सक्षमतासें (सभी अॅंगल से) टिके रहने के लिए "जुगाड" का उपयोग महत्त्वपूर्न बन गया है;बल्कि; वह उनकी बुनियादी जरुरत बन गयी है। "जुगाड" का दृष्टिकोन (एप्रोच) न रखनें की वजहसें या ना स्वीकारनें के कारण अनेक कंपनीयोंकी या युरोपीय देशोकी क्या हालत हुई है, इसके अनेक दाखले or उदाहरण दिए जा सकते है।


आजुबाजूकी परिस्थितीसे "जुगाड’" तत्व की सहजतासें परिचित भारतीय समाजने, "पहले ही वह सावधानता’ यह श्री. समर्थ रामदास स्वामी कें उक्तीनुसार आगे आनेवाले समय के लिए "जुगाड’" तंत्र का उपयोग व्यापक स्तरपर पुरी तरहसें करना उनके लिए आसान होगा जिसमे किसीका भी अलग मत होने का कारण नही। लेकीन उसकी जरुरत के लिए जो है, जैसा है उससेही शुरुआत करने की और जो पाया है, साध्य किया है, उसपर संतुष्ट न रहकर "जुगाड’" का उपयोग करके प्रयास करते रहने की; फीर यशस्वी होने के लिए यह देखनी नही पडेगी, यश ही आपके पिछे आएगा।.. १०८% कीसी भी शक के सिवा! 


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