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Aniruddha Bapu |
मानव के मन में विचारों की
शृंखला चलती रहती है। मानव के अवास्तविक विचारों के कारण उसके मन में ‘झूठा
अहं’ बढता रहता है। प्रशंसा और निन्दा से भी यह झूठा अहं बढता है। यह झूठा
अहं ही मानव के जीवन में पीडा और भय उत्पन्न करता है। इस झूठे अहं की
घातकता के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १८
सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैं ll
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बापु के अनेक श्रद्धावान मित्र दैनिक प्रत्यक्ष के अग्रलेखों से संबंधित विषयों से जुडी वेबसाईट्स् का इंटरनेट पर अध्ययन कर रहे हैं । यह अध्ययन करते समय कुछ श्रद्धावानों के मन में कौन सा स्कन्दचिन्ह उचित और कौन सी स्कन्दचिन्हसदृश आकृति अनुचित, यह प्रश्न उठ रहा था। इसलिए सभी श्रद्धावान मित्रों की जानकारी के लिए उचित और अनुचित आकृति नीचे दे रहा हूं ।
उचित स्कन्दचिन्ह (दो अलग अलग रंगों के त्रिकोण एक पर एक रखे हुए)
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अनुचित स्कन्दचिन्ह सदृश आकृति (दो अलग अलग रंगों के त्रिकोण एकदूसरे में फंसे हुए / अटके हुए)
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञll
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जब तक मानव का हनुमानजी
के साथ कनेक्शन नहीं जुडता, तब तक उसका विकास नहीं हो सकता और हनुमानजी के
साथ मानव का कनेक्शन जुडने के आडे मानव का झूठा मैं आता है। इस झूठे मैं को
खत्म करने के लिए मानव को भक्तिमय प्रयास करना चाहिए। झूठे मैं से छुटकारा
कैसे पाया जा सकता है इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू
ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-to-get-rid-of-false-self-2/
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मानव के भीतर रहने वाला
‘झूठा मैं’ उस मानव के मन में भय और भ्रम उत्पन्न करता है । मन को
बीमारियों का उद्भवस्थान कहा जाता है । भय के कारण ही पहले मन में और
परिणामस्वरूप देह में रोग उत्पन्न होते हैं । संतश्रेष्ठ श्री तुलसीदासजी
द्वारा विरचित श्रीहनुमानचलिसा की ‘नासै रोग हरै सब पीरा’ इस पंक्ति में
छिपे भावार्थ के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने
११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक-http://aniruddhafriend-samirsinh.com/naasai-rog-harai-sab-peera/
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मन, प्राण और प्रज्ञा ये
मानव के भीतर रहने वाले तीन लोक हैं । मानव के भीतर के इन तीनों लोकों का
उजागर होना मानव का विकास होने के लिए आवश्यक होता है । इन तीनों लोकों को
उजागर करने के हनुमानजी के कार्य के बारे में सद्गुरुपरम पूज्य सद्गुरु
श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में बताया, जो आप इस
व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/jai-kapees-tihun-lok-ujaagar-2/
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सन्तश्रेष्ठ
श्रीतुलसीदासजी श्रीहनुमानचलिसा स्तोत्र में हनुमानजी को ‘कपिश’ कहकर
संबोधित करते हैं । ‘कपिश’ यह संबोधन ‘कपि’ और ‘ईश’ इन दो शब्दों का अर्थ
अपने ११ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी
ने बताया । जिसे आप इस इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/jai-kapish-tihu-lok-ujagar/
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सन्तश्रेष्ठ
श्रीतुलसीदासजी हनुमानजी को हमेशा ही बडे प्यार से संबोधित करते हैं ।
श्रीहनुमानचलिसा स्तोत्र के प्रारंभ में वे ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर’
कहकर हनुमानजी की जयजयकार करते हैं । महाप्राण श्रीहनुमानजी के
ज्ञानगुनसागर स्वरूप के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने
अपने ११ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख
सकते हैंl
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अपने ‘झूठे मैं’ के कारण
मानव स्वयं के बारे में गलत कल्पनाएँ ही करता रहता है । मानव जब कुछ भी
नहीं करता, तब भी उसका मन विचार करते रहता है और विचार यह भी एक कर्म होने
के कारण कर्मफल के रूप में इन विचारों का परिणाम अवश्य ही मानव पर होता
रहता है । ‘झूठे मैं’ से प्रेरित विचारों की घातकता के बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने ११ सितंबर २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन
किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/false-self-generated-thoughts-are-harmful/
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मानव यदि स्वयं अपनी
विवेकबुद्धि का उपयोग नहीं करता, तो उसका सही मैं दुर्बल बनता जाता है ।
दुर्बल मन पर भय आसानी से कब्जा कर लेता है और भय के कारण बार बार गलत
विचार आते रहते हैं । गलत विचारों की शृंखला से झूठा मैं ताकतवर होता है,
पनपता है । भय से ‘झूठा मैं’ किस तरह बढता है इस बारे में परम पूज्य
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन
किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/fear-makes-false-self-more-stronger/
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मानव के मन में विचारचक्र लगातार चलता रहता है । मानव किसी भी बात के बारे में डर की भावना से सोचता है । इस अनुचित विचारशृंखला से उसका सही मैं दबकर झूठा मैं उसपर हावी हो जाता है । ‘झूठे मैं’ की उत्पत्ति के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-the-false-self-gets-created/
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मानव के जीवन में लोग जो उसके बारे में कहते हैं उसके आधार पर वह मानव अपनी एक झूठी प्रतिमा बना लेता है और वही उसका सही मैं है यह वह मान लेता है । इस भ्रम कारण से ही उसके जीवन में रण चलता रहता है । भगवान की शरण में जाकर इस ‘ झूठे मैं ’ के रण से मुक्ति पायी जा सकती है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धसिंह ने अपने २१ अगस्त २०१४ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
विडियो लिंक -http://aniruddhafriend-samirsinh.com/how-to-get-rid-of-false-self/