गुरुवार,दिनांक 07-11-2013 के प्रवचन में सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। जनवरी 2014 में ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव मनाया जायेगा। ‘श्रीश्वासम्’ का मानवी जीवन में रहनेवाला महत्त्व भी बापु ने प्रवचन में बताया। सर्वप्रथम “उत्साह” के संदर्भ में बापु ने कहा, “मानव के प्रत्येक कार्य की, ध्येय की पूर्तता के लिए उत्साह का होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। उत्साह मनुष्य के जीवन को गति देते रहता है। किसीके पास यदि संपत्ति हो लेकिन उत्साह न हो, तो वह संपत्ति भला किस काम की! मगर यह उत्साह लाये कहाँ से? आज हम देखते हैं कि सब जगह अशक्तता दिखायी देती है। शरीर की ९०% अशक्तता का कारण मानसिक होता है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं से यह पूछे कि क्या वास्तव में मैं इतना दुर्बल हूँ? मेरी ऐसी हालत क्यों होती है? मैंने अपने जीवन का क्या विकास किया? क्या मैंने प्रयत्नपूर्वक मुझ में रहनेवाले किसी एक अच्छे गुण का विकास करने के लिए, उसे बढाने के लिए अपरंपार परिश्रम किया है? यह हुई एक बात। दूसरी बात है- मैंने बचपन में जो सपने देखे थे, उनमें से कम से कम एक को पूरा करने के लिए क्या मैंने कोई योजना बनायी? तीसरी बात है- क्या मैंने किसी व्यक्ति की, जो मेरा रिश्तेदार या दोस्त नहीं है ऐसे किसी व्यक्ति की केवल इन्सानियत की खातिर सहायता की है? जो मेरा रिश्तेदार या दोस्त नहीं है ऐसे किसी व्यक्ति के लिए क्या मैंने परिश्रम किया है? और सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि जिस भगवान ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, उस भगवान के लिए मैंने क्या कभी कुछ किया? फ़िर कोई कहेगा कि वह ईश्वर ही हमारे लिए सब कुछ करता रहता है, वही सब कुछ देता रहता है, उसके लिए भला हम क्या करेंगे? लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि ईश्वर तुमसे ये ही तीन बातें चाहता है। इस चण्डिकापुत्र को तुमसे इन्हीं तीन बातों की अपेक्षा रहती है।”
बापु ने आगे कहा, “ये तीन बातें करने के लिए आवश्यक रहनेवाली ऊर्जा, उत्साह ही हमारे पास नहीं रहता। उसमें भी कई मुसीबतें, मोह आते ही रहते हैं। कभी हम गलती करते हैं, तो कभी दूसरे गलती करते हैं। जिसे काम करना होता है, उसे कोई रुकावट नहीं आती। जिसे करना नहीं होता, उसके सामने सौ अडचनें खडी होती रहती हैं। जिसे काम करना होता है, वह रुकावटों को मात देकर काम करता ही है। लेकिन मन में, प्राण में उत्साह न हो तो शरीर में कैसे आयेगा? यह उत्साह लाये कहाँ से?
उत्साह के लिए संस्कृत शब्द है- मन्यु. मन्यु यानी जीवित, रसभीना, स्निग्ध उत्साह। शरीर के प्राणों की क्रिया को मन और बुद्धि का उचित साथ दिलाकर कार्य संपन्न करनेवाली शक्ति है उत्साह। चण्डिकाकुल से, श्रीगुरुक्षेत्रम् मन्त्र से यह उत्साह मिलता है। भगवान पर रहनेवाले विश्वास से यह उत्साह मिलता है। ‘मानव का भगवान पर जितना विश्वास, उससे सौ गुना उसके लिए उसका भगवान बड़ा’ ऐसा मानव के मामले में होता है। और विश्वास एवं उत्साह उत्साह की पूर्ति करनेवाली बात है- ‘श्रीश्वासम्’! यूँ तो मानव अनेक कारणों के लिए प्रार्थना करता है, लेकिन यह विश्वास बढने के लिए प्रार्थना करना ज़रूरी होता है। भगवान पर का विश्वास बढानेवाली और प्रत्येक पवित्र कार्य के लिए उत्साह की पूर्ति करनेवाली बात है- ‘श्रीश्वासम्’!
श्रीश्वासम् उत्सव के बारे में बताते हुए बापु ने कहा, “जनवरी 2014 में श्रीश्वासम् उत्सव बडे उत्साह के साथ मनाया जायेगा। उसके बाद प्रत्येक गुरुवार को श्रद्धावान ‘श्रीहरिगुरुग्राम’ में श्रीस्वस्तिक्षेम संवाद के बाद श्रीश्वासम् कर सकेंगे। श्रीश्वासम् उत्सव की तैयारी के लिए कल से (यानी 08-11-2013 से) मैं स्वयं उपासना करनेवाला हूँ।
इस ‘श्रीश्वासम्’ के लिए मैं एक व्रत का स्वीकार कर रहा हूँ, जिससे कि जो भी यह श्रीश्वासम् चाहता है, वह उस प्रत्येक को मिल सके। इस व्रतकाल में मैं हर गुरुवार आने ही वाला हूँ। श्रीश्वासम् के लिए मुझे अपनी तैयारी करनी है। मुझे प्रत्येक के लिए ऐसा चॅनल open करना है, जिससे कि प्रत्येक श्रद्धावान अपनी क्षमता एवं स्थिति के अनुसार उसे उपयोग में ला सके। यह मेरी साधना है, उपासना है। श्रीश्वासम् में शामिल होना चाहनेवाला प्रत्येक श्रद्धावान पहले दिन से ही इसका पूरी तरह लाभ उठा सके, इसके लिए की गयी तैयारी ही मेरी यह उपासना होगी। प्रत्येक श्रद्धावान श्रीश्वासम् से मिलनेवाली ऊर्जा ग्रहण कर सके, इसके लिए चॅनल्स खोलने का कार्य करनेवाली यह उपासना होगी।
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