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परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापुजी ने गुरूवार १६ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन में हमारे मन में रहनेवालीं, उत्पन्न होनेवालीं या बार बार उठनेवालीं गलत बातों, भावनाओं, विचारों आदि से मुक्त होने के लिए क्या करना चाहिए, यह प्रश्न मानव के मन में उठता है l 'बार बार ये बुरे विचार मन में क्यों आते हैं' इसी बात पर मानव अपना ध्यान केन्द्रित करता है और इससे उन बुरे विचारों की ताकत बढती है l इन बुरे विचारों की उपेक्षा करना ही उनसे मुक्ति पाने का मार्ग है, यह बात स्पष्ट की , जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l (How To Get Rid of Bad Thoughts- Aniruddha Bapu Hindi Discourse 16 Jan 2014)
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स्वयं को न पहचानना यह मानव की सबसे बडी गलती है l जीवन में किन बातों के कारण मुझे शान्ति मिलती है और किन बातों के कारण अशान्ति सताती है यह जानकर आचरण करना चाहिए l सद्गुरुतत्त्व की भक्ति से मानव स्वयं को पहचान सकता है l इसलिए साईनाथ से यह मन्नत मानना जरूरी है कि हे सद्गुरु, आपकी भक्ति से मैं स्वयं को पहचानकर स्वयं में उचित परिवर्तन कर सकूँ, यहपरम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. 8 मई 2014 के हिंदी के प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
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भगवान प्रत्येक मानव के जीवनविकास के लिए सर्वोत्तम योजना बनाते एवं कार्यान्वित करते हैं l मानव जो योजना बनाता है, वह भगवान के द्वारा निर्धारित की गयी योजना से मेल खाती हो, तो ही उसे जीवन में सफलता मिलती है l भगवान के साथ जो प्रेमभाव से जुडे रहने से आपके द्वारा भगवान की योजना के साथ मेल खानेवाली योजना अपने आप बनती रहती है और आपका जीवन बेहतर बनता है l श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान से प्रेम से जुडे रहना महत्त्वपूर्ण है, इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. 8 मई 2014 के हिंदी प्रवचन में महत्त्वपूर्ण विवेचन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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जहाँ प्रेम होता है वहाँ प्रेम से अपने आप जिम्मेदारी आ जाती है l जहाँ प्रेम होता है वहाँ जिम्मेदारी बोझ नहीं लगती, बल्कि उससे तृप्ति मिलती है l सांवेगिक बुद्धिमत्ता को पहचानकर मानव उससे प्रेम करने वाले व्यक्ति के प्रेम को प्रतिसाद यानी रिस्पाँड करे और प्रेम के साथ अपनी पारिवारिक एवं सभी प्रकार की जिम्मेदारियों को अचूकता से निभाये l प्रेम और जिम्मेदारी के बीच के रिश्ते के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. 8 मई 2014 के हिंदी प्रवचन में महत्त्वपूर्ण विवेचन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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मानव अपनी भावनाओं को पहचानने में गलती करता है और इसी वजह से सही दिशा में आगे नहीं बढ सकता l सांवेगिक बुद्धिमत्ता(Emotional Intelligence) का उचित उपयोग करके मानव को गृहस्थी और परमार्थ में उचित कदम उठाते हुए अपना विकास करना चाहिए l सांवेगिक बुद्धिमत्ता के महत्त्व के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. 8 मई 2014 के हिंदी प्रवचन मेंमहत्त्वपूर्ण विवेचन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं l
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मेरे जीवन में गृहस्थी एवं परमार्थ को एकसाथ सुफल संपूर्ण बनाने के लिए मुझे जिस जिस बात की आवश्यकता है, वह प्रत्येक बात सद्गुरुतत्त्व के पास भरपूर है और वह उचित समय पर मुझे वह हर एक बात देने ही वाला है l मुझे जो भी माँगना है, वह मैं सद्गुरु से ही माँगूंगा और सद्गुरु के अलावा किसी और से कुछ भी स्वीकार नहीं करूँगा यह निर्धार श्रद्धावान के मन में रहना चाहिए l दृढ विश्वास ही आवश्यक है इस बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. 8 मई 2014 के हिंदी प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
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ज्यादातर समय हम अपनें रोज के काममें इतने व्यस्त होते है की अपनें त्रमें और अपने आजू-बाजू कीं परिस्थिती में क्या बदलाव आ रहे है, उसकी भनक उसका एहसास करने की, दखल लेनें की भी फुर्सत हमें नही है। हम अगर हमारे आजूबाजू की परिस्थिती से भलेही सजग न हो, तो भी बापू उनके श्रद्धावान दोस्तो के लिए हमेशा वास्तव का ध्यान रखकर सजग रहते है। इसी सजगता सें बापू ने जुलै २०१२ में खुद दो सेमीनार कंडक्ट किए। जिसके पिछे थें उनके बहोत-बहोत परिश्रम और अभ्यास।
इस सहस्त्रककें पहलें बारा सालों में अनेक छेत्रों में अनेक बदलाव आए। शाश्वत मानवी मूल्यों का सँभालते समय, हुए हुए बदालवें से और बदलाव की गती के साथ हम खुद को जुडा नही पाए। आनेवाले समय में शायद हमारा टिकना संभव नही हो पाएगा, हम कही-पर गल जाएँगे, और इसीलिए बदलते समय की पदचिन्हों को पहचानकर बापूने गिने चुने सिर्फ सत्तरा लोगों का सेमीनार लिया। तीस घंटो के इस सेमीनार मे बापूने अनेकोंनेक विषयों की पहचान कराकें दी। अटेंशन इकॉनॉमी "जुगाड” क्लाऊड कॉम्प्युटिंग जैसे अनेक विषयोंसे अनभिज्ञ थे। "जुगाड’ के बारे मे बोलते समय बापू ने कहा "आगे आनेवाले समयमें सहीसलामत बचकें निकलना है तो "जुगाड’ स्ट्रेटजी यह एकमेव ही उपाय होगा। "जुगाड” स्ट्रेटजी ही जीवन का हर एक अंग छाकर रहेगी।
"राममेहरसिंग” की पोल्ट्रीफार्म पर इलेक्ट्रीसीटी तो उपलब्ध थी, लेकीन हमेशा की गारंटी नही थी। लोडशेडींग बहुत ही डरावना होता जा रहा था। घंटो-घंटो तक बिजली न होने के कारण पोल्ट्रीफार्म चलाना मुश्किल बनता जा रहा था। एक बाजू में यह प्रश्न, और दुसरे बाजूमें जनरेटरके डीजल का बढता हुआ खर्च। बिजली का बिल महिना लगभग ४५,०००/- और साथ में डीजल का खर्चा महिना १,२०,०००/- रु.
सवाल तो कठीन था। लेकिन पहले जमाने के सैनिक राममेहरसिंग अपने सामने खडे इस कठिण प्रश्न से डगमगाए नही, बिथर नही गए। हरियाना के झज्जल गावके राममेहरसिंगने बहोत ही शांतीसे, पूर्ण विचारों के बाद उनके मन को जो भाया हुआ, सीधा और आसान, लेकीन मेहनतका ऐसा कुछ उपाय ढूँढा की आगे जाकर सबको वह मार्गदर्शक बन गया। यह उपाय करने के बाद राममेहरसिंग का डिझेल खर्च अब है, सिर्फ रु. ६०,०००/- और अब उन्होने दक्षिण हरियाना बिजली वितरण निगमसे बिजली लेना भी बंद कर दिया। आज वह कम से कम महिना रु १,००,०००/- की बचत कर रहे है। लेकिन यह उन्होने कैसा मुमकीन किया?
राममेहर सिंग उनके फार्म पर बडी मात्रा में उपलब्ध रहने वाला पोल्ट्री वेस्ट का उपयोग करके बायोगॆस पावर प्लांट लगाने के बाद, उनके पास खुद इस पद्धती का उपयोग करके खुद ही निर्माण की गयी बिजली का प्रमाण इतना है, की दिनमें किसी भी प्रकार के लोडशेडिंग के बावजूद, कमसे कम १४ घंटो तक बिजली का वह इस्तमाल कर रहे है। उसके साथ ही पोल्ट्री वेस्ट के उपयोग से पावर प्लांट से निकलने वाली स्लरी (मैला) जो अत्यंत पुष्टिकर होने की वजह से "रवाद” के तौर पर खेतों मे इस्तमाल हो रहा है। इस "रवाद” मे नायट्रोजन, पोटॆशिअम और फॊस्फरस जैसे पुश्टिकर द्रव्य बडी मात्रा में उपलब्ध होते है, यह इस प्रयोग के बाद प्रमाणित किया गया है।ऐसी है यह पोल्ट्री वेस्ट से इलेक्ट्रीकल पावर जनरेशन की (बिजली निर्माण की) राममेहरसिंग की अनोखी संकल्पना।राममेहरसिंग की यह नई संकल्पना सिर्फ प्रतिकुल परिस्थिती का मौका उठाते हुए "वेस्ट” को ही महत्त्वपूर्ण साधनसंपत्ती मे रुपांतरीत किया। उन्होने खुद की समस्या पर एक सस्ता और विश्र्वास पैदा करनेवाला उपाय, निकाला ही, लेकीन हरियाना कें सभी पोल्ट्रीफार्म के मालिकों को एक अनोखा मार्ग दिखाया। राममेहरसिंग के अनोखी खोज पर हरियाना सरकार ने भी उचित ध्यान दिया। और इस प्रकार से बिजली निर्माण करने की जिनकी इच्छा थी, ऐसे पोल्ट्रीफार्म के मालिकों को आर्थिक सहायता की सुविधा उपलब्ध की।
आज की भाषा में अगर प्रचलित शब्द का उपयोग करना हो तो ऐसा पूछना पडेगा की, राममेहरसिंग ने किस तरह से ये "जुगाड’ किया?
"जुगाड’ हम भारतीय "जुगाड’ इस शब्द का उपयोग बहोत ही सहजता पूर्वक रोज के जीवन में इस्तमाल करते है। कोई काम या कुच करनेवाली चीजें अगर सहजतासें होती नही या उसका तालमेल नही हो पाता तो हम लोग झट से, हमे जो शब्द अभिप्रेत है "कैसे भी करके ये काम निपटना है।’ उसके लिए किस मार्ग का अनुसरण किया जाए, बहोत बार अनेक लोगो को ऐसा करने में कोई भी मार्ग फिर "निषिद्ध’ (इस्तमाल नही करना) नही होता, और इस रायज अर्थ के कारण, बहोत से लोग इसका गलत ही इस्तमाल करते है।
... और फिर इधरही प्रश्न उपस्थित होता है की जुगाड’ याने की क्या? आजके मॅनेजमेंट गुरुओंको और कंपनीयों के C.E.O.'s को इस शब्द का किसी भी हालत में यही अर्थ रायज है क्या? उनकी भी संकल्पना ऐसीही है क्या? बिलकुल नही। क्योंकी अगर आजकी जानलेवा स्पर्धा के युग में अगर आपको टिके रहना है तो अपने लिमीट से कुछ जादा देना चाहिए। क्योंकी अगर आजकी जानलेवा स्पर्धा के युग मे अगर आपको टिके रहना है, तो अपने लिमिट से कुछ जादा देना चाहिए। और इसका पुरा विश्वास यकीन में बदल सकता इसकी गॆरेन्टी आज के मेनेजमेंट जगत का "जुगाड’यह एक स्वयंसिद्ध मंत्र बन गया है। जो एक शास्त्रीय तंत्र है। साथ में एक कला भी है। जिसका पुरी तरह से विश्वास आजके मेनेजमेंट जगत को हो रहा है।
"जुगाड’ इस मेनेजमेंट मंत्र की या तंत्र की आसान और समझनेवाली व्याख्या अगर करनी हो तो ऐसा कह सकते है, की "जुगाड’ याने की मानवकें सूझबूझ से और हुशारीकी सहाय्यतासे, उपलब्ध साधनोसे प्रतिकूल परिस्थितीपर मात देकर, सबके लिए फायदेमंद साबित होनेवाला आसान, समझनेवाला और किफायती उपाय या समझोता निकालने की एक योजनाबद्ध तत्त्वप्रणाली।"जुगाड के लिए सवार होकर चॅलेंज स्वीकारने की मनकी धारणा होनी चाहिए। साथी ही जरुरी होता है हमेशा उपयोग में आनेवाली वस्तू आ नए वस्तू की तरह इस्तमाल करना, हुशारी और तुरन्त निर्णय लेनेकी क्षमता, कल्पकता, कठीन परिस्थिती में भी मन को शांर रखने की ताकद और साथही परिस्थिती के अनुसार बदल करने के विचारपूर्वक कृती करके किफायतीशिर मार्गसे अपेक्षित या अपेक्षासे जादा फलप्राप्ती या फलनिश्पत्ती कर सकते है। शायद यह फलनिष्पती कभी "कम खर्चा और जादा फायदा" इस स्वरूप मे होगी, या कभी "कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम स्वरूप में हो सकती है। इन दो विभिन्न प्रसंगो मे वस्तू का या सेव का दर्जा या गुणवत्ता किसी भी प्रकारसे गिरती नही या, उसको गिराया जाता भी नही। ऐसी अनोखी मॅनेजमेंट तंत्र का उगम भारत में हुआ है यह सुनकर अनेक लोगोंकी भौं उंची हो सकती है। लेकीन आज उसके उपयोग का विशिष्ठ ऐसा एक शास्त्र विकसित किया गया है, यह पक्का है।
’जुगाड’ यह शब्द ’जुग्गड’ इस हिंदी / पंजाबी भाषा से आया है । पंजाब के ग्रामीण एरिया मे परिवहन का मार्ग रहनेवाला, अलग अलग पार्ट जोडकर बनाया गया, लोकप्रिय और कम खर्चाऊ वाहन याने की ’जूग्गड’ । यह वाहन प्रवासी (यात्रा करनेवाले) और सामान ले जा करनेके लिये समानरूपसे इस्तमाल किया जाता है । इसका आगेका भाग रहता है सायकल जैसा ; और पिछवाडा रहता है सायकल रिक्षा सरेखा या फ़िर जीप के पिछेका हिस्सा होता है वैसा । कम से कम लगभग ६० लोग एक ही समय इसमे यात्रा कर सकते है । कभी कभी तो इससे ज्यादा भी लोग यात्रा करते है । लेकिन बहुत कम समय यह वाहन जिस डिजल इंजिन पर चलता है, वह देखा जाए तो खेत मे इरिगेशन पंप चलाने के लिये इस्तमाल करते थे । इस वाहनों की आरटीओ की मान्यता प्राप्त नही है, तो भी आज भारत के ग्रामीण क्षेत्र मे बडी मात्रा मे इस वाहन का उपयोग किया जाता है। आज पुराने डिजल इंजिन की जगह मोटर सायकल के इंजिन ने ली है ।
उपलब्ध साधनोंका उचित उपयोग करके कल्पकता से और अच्छी या जिसमे कुछ नया हो ऐसी चीज बनाना याने की ’जुगाड’ ; जो करना आवश्यक है वह कम समय कम पैसे मे करना याने की ’जुगाड’ । ’सर्व्हायव्हल ऒफ़ द फ़िटेस्ट’ याने की जो सक्षम है | उसका की काल ने चक्र में निभाव लगता है, वही टिकता है। और इसे प्रत्यक्ष रुप में लाना याने की "जुगाड’"।
इस सहस्त्रककें पहिले बारा सालोमेंही हमने अनेक क्षेत्रो में अनेक स्तरोपर प्रचंड बदल होते हुए देखे है। इन बदलोंका स्पीड भी वैसे ही प्रचंड है, और यह स्पीड पकडते-पकडते बहोतोकी तो जान निकलती है। लेकीन शाश्वत मानवी मूल्योंका अगर हमने जतन नही किया तो कालचक्र की गतीमें हम टिक नही सकेंगे। हम बिखर सकते है, हमारा नाश हो सकता और इसिलिए कालचक्र गती, चरण, पहचानकर प्रत्यक्षके कार्यकारी संपादक डॉ.अनिरुद्ध जोशी इन्होने कुछ गिनेचुने सिर्फ सतरा लोगोंका सेमिनार लिया। जुलै कें लगभग दो हप्ते। हरएक व्यक्ति अलग-अलग क्षेत्रसे निगडीत थी। कोई डॉक्टर, कोई इंजिनिअर, तो कोई वकील, कोई बिझनेसमन तो कोई कॉर्पोरेट सेक्टर में उच्चपदस्थ स्वरूप मे काम करनेवाले मॅनेजमेंट एक्सपर्ट थे। तो कोई प्रायव्हेट कंपनीमें काम करनेवाले तो कुछ सेवाभावी संस्थासे जुडे हुए। इस तीस (३०) घंटो की सेमीनारमे डॉ.अनिरुद्धजीने अनेकविध विषयोके बारे में पहचान करा दी। अर्टेशन इकॉनॉमी, जुगाड, क्लाऊड कॉम्युटिंग जैसे अनेक विषयोंसे बहोतसे अनजाने थे। जुगाड के बारे में बोलते समय डॉ. अनिरुद्धजीने कहा, आनेवाले काल में यशस्वी होना है, तैरके जाना है, तो जुगाड स्ट्रेटजी याने की "जुगाड व्युहतंत्र" यह एकमेव उपायही होगा और यही जुगाड व्यूहतंत्र या व्यूहरचना जीवनके हर एक अंग को छा लेगी; साथही हर एक के जीवन का महत्वपूर्ण भाग बनकर उसे सक्षम बनाएगी।
और इसिलिए इस "जुगाड" की जरुरत आज कॉर्पोरेट जगत को भी प्रतीत हो रही है।
आज जग में आर्थिक मंदी का माहोल है। बडी-बडी बहुराष्ट्रीय कंपनीभी अपना खर्चा कैसे कम हो सकता है इसपर लक्ष केंद्रीत कर रही है। अनेक कंपनीयो को उनका रिसर्च और डेव्हलपमेंटपर होनेवाला खर्चा अब भारी पड रहा है। आज की तारीख में प्रचलित "सिक्स सिग्मा’" पद्धती नई परिस्थितीसे निपटने के लिए कम पड रही है। साथ ही इस खर्चेसे नया कुछ हात मे आएगा इसकी कोई गॅरेंटी नही और आया तो भी कभी और कितने समय के बाद, यह भी प्रश्न उपस्थित होता है। मार्केट में तो जानलेवा स्पर्धा है। ऐसे समय में अनेक मॅनेजमेंटगुरुज और बहुराष्ट्रीय कंपनीयोके सीईओज अपना हमेशा का ढाँचा, उसका दृष्टिकोन बदलके भारत मे उद्ग्म पारा "जुगाड" तंत्रका उपयोग हमेशा के व्यवहार में करने लगे है और उसका उत्तम उदाहरण याने की जनरल इलेक्ट्रीक और प्रॉक्टर अॅंड गँबल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनीया!
जुगाड इनोव्हेशन इस किताब में किताब का यश प्रथित लेखक मँनेजमेंट तज्ञ नविराजाऊ, जयदीप प्रभू और सिमोनी आहूजा को जाता है। जिन्होनें "जुगाड’" की छ:(६) मूलभूत तत्व पेश किए है। जिस किसको अपने क्षेत्र में अगर यशस्वी होने की इच्छा आकांक्षा है, उस हर व्यक्तिको इस उत्कृष्ट, किताब कों पढना होगा। किताब में लिखे हुए कुछ तत्व इसप्रकार है;
१) संकट या प्रतिकूल परिस्थितीकोही चान्स मानना।
२) कमसे कम साधानसंपत्तीका उपयोग करके जादासे जादा अपनी कार्यकक्षमता बढाना।
३) विचारप्रणाली और कृती की परिवर्तनियता याने की ढॉंचे मे बंद विचार प्रणाली छोडकर उदारतावादी होना, अर्थात नयापन स्वीकारने केलिए आवश्यक होनेवाली मन की आझादी।
४) प्रश्नों के उपाय या सिंपल साधा रास्ता जो आसान हो।
५) अनदेखे घटकोंका विचार करना- जिनका पुरी तरह से समावेश करना।
६) मन को भाता है वही करना ( अनेक-अनेक पर्यायों का विचार करने के बाद)
इन सारे तत्वोका/मुद्दोका एकत्रित विचार करके खोजा गया उपाय मतलब "जुगाड"" तंत्र का उचित उपयोग। कोईभी एक तत्त्व अगर दुर्लक्षित हो गया, तो उसे "जुगाड" कहना मुश्किल होगा; वह "जुगाड" होही नही सकता; और इसिलिए "जुगाड" यह सायन्स (शास्त्र) और आर्ट (कला) का सुंदर संगम है।राममेहरसिंग के इस अभिनव प्रयोग को सब बाजूसे सोचने के बाद ऐसा उअकीन से कह सकते है की "जुगाड" की मूलभूत तत्त्वों को "जुगाड" के जडसे सभी नियमोंका परिपालन किया।
जडसे सभी नियमोंका पालन करने से, आज से कभी न सोचा हुआ उपाय अपने आप सामने आ सकता है। आसाम के मोरीगाव में रहनेवाले कनकदासने सहजतासें इन सारे तत्त्वोंका सुंदर उपयोग करके अपने प्रश्नों का सहज सुंदर उपाय ढूंढा। कामपर जानेके लिए कनकदासजीको हमेशा सायकल से यात्रा करनी पडती और वहाभी गड्डों भरे रास्तोसें। रास्ते ठिकठाक करना यह उनका काम नही था और होता तो भी उनकी कुवत से बाहर था। और ऐसा विचार करना भी निरर्थक था। पिठ कें दर्द से कनकदासजी परेशान थे। लेकीन उन्होने हार न मानी। इस गड्डोभदे, पथ्तरोंसी भरी राहकाही का मैं किस तरह उपयोग कर सकता हू इन विचारोनें उन्हे घेर लिया। और इसमेसे ही खोज हुई एक अनोखे सायकल की। कनकदासजीनें अपनें सायकल में कुछ बदलाव किए उसके बाद जब सायकल गड्डोंसे जाती है, तब उसके अगले पैह्हीये के "शॉक एब्सॉर्बर्स” उर्जा उत्सर्जित करते है, जिसकी वजह से यह उर्जा पिछले पहियें को गती देनेके लिए इस्तमाल की जाती है। याने की सायकल जितनी बार खड्डोंसे जाकर धक्के खाएगी, उतने ही प्रमाण में वह सायकल सहजतासें जादा स्पीड पकडेगी और चला नेवाले कें परिश्रम कम हो जाएगें, और चलानेवाले को चलाते समय गड्डोंकी तकलीफ शॉक एब्सॉर्बर्स की वजह से कम हो जाएगी! यहापर कनकदासजीने संकटकोही मौका माना। कमसें कम उपकरण इस्तमाल करके वह भी किफायतशीर। उन्होनें खोजा हुआ उपाय सर्वसामान्य आदमी इस्तमाल कर सकता था और यह सब करतें समय उनके विचारोंमें और कृतीमे लचीकता थी। ढाँचे के अंदर विचार करने की प्रणाली को उन्होने ठुकराया; और आखिर में ऐसा कह सकते है की अनेक पर्यायोंका विचार करके आखिर में उनके मन को जो भाया वही उन्होंने कीया।
एसी यह अभिनव सायकल “इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेंट” अहमदाबाद कें प्रोफेसर श्री. गुप्ताजी के नजरोंमे आई। और उन्होने कनकदासजीको इस खोज का पेटंट दिलाने मे मे मदत की। आज एम.आय.टी के विद्यार्थी भी इस खोज का इस्तमाल स्वयंचलित वाहन मे किस प्रकार कर सकते है इसका शास्त्रके आधारपर अभ्यास कर रहे है। जिसकी वजह से बडे पैमाने पर इंधन की बचत होकर प्रदूषण का स्तर भी कम हो।लेकीन कनकदासजी यह एक ही स्टॅंड अलोन’ (एकमेव) उदाहरण नही है; भारत मे ऐसे अनेक उदाहरण मिल सकते है। चेंगलपट्टू(तामिलनाडू) के बालरोगतज्ञ डॉ. सत्या जगन्नथ को ग्रामीण क्षेत्र में आवश्यक इन्क्यूबेटर्स का प्रश्न सता रहा था। उस समय सब जगह उपलब्ध होनेवाली इन्क्यूबेटर्स की किमत एक लाख के आसपास थी। ग्रामीन क्षेत्र कें सर्वसामान्य जरुरत मंदों को इसकी सेवा पुसाना मुमकीन नही था। और यह ग्रामीण क्षेत्र में बालमृत्यू होने का एक प्रमुख कारण था। डॉ. सत्या जगन्नाथनकी जिज्ञासा उन्हे शांती से बैठने दे नही रही थी। गरीब जरुरत मंदोकी आत्मीयता, अपनेपनसे, डॉ. सत्या जगन्नाथनने उपयोग में सिंप्पल और "लो-कॉस्ट’ (एकदम सस्ता) "इन्फन्ट वॉर्मर ढूंढ निकाला। उसमेंही फेरफार करके उन्होने एक अनोखे इन्क्यूबेटर की निर्मिती की। जिसकी किमत १५,०००/- तक थी। इस खोज की वजह से आज भारत के ग्रामीण क्षेत्र को सतानेवाला, परेशानकरनेवाला बहोत बडा प्रश्न डॉ. सत्या जगनाथनने हल किया। उसके लिए उन्होने पुरी तरह से अपरंपारिक (अनकन्व्हेन्श्नल) मार्ग का उपयोग किया। लीक के बाहर जाकर खुले मनसे विचार करने की क्षमता उनमे थी।
आज भारतीय कॉर्पोरेट विश्वने भी इस जुगाड तंत्र का उपयोग किया है और उसी का मूर्तिमान उदाहरण याने की "टाटा नॅनो” कार|
आज की घडी मे टाटा नॅनो यह दुनिया की सबसे सस्ती कार है। मोटारसायकल या स्कूओटर से जानेवाली चार लोगों की पुरी फॅमिली, यह भारत में सभी शहरों मे हमेशा दिखनेवाला चित्र था। ऐसे फॅमिलीज को पुसाना ऐसी आरामदेनेवाली, सुरक्षित, साथ में दो पैसो को अर्लटरनेट ऑप्शन साबित होनेवाली कार सबको मिले ऐसी इच्छा उस समय टाटा ग्रुप के चेअरमन रतन टाटा की थी। "जुगाड" तंत्र का उपयोग करके टाटा मोटर्स ने ही यह सच न होनेवाली चिज प्रत्यक्षस्वरूप में लाई। टाटा मोटर्सने "फ्रूगल इंजिनिअरिंग याने की काटछाट कृती और अभियांत्रिकी का बहोतही अच्छा मेल, संगम बनाकर उनका उद्दिष्ट सफल किया और यही कित्ता आगे टाटा मोटर्स के एम.डी. रविकांत ने चलाया। जब पश्चिम बंगाल के सिंगूर में सामाजिक और राजकिय कारणोंके कारण खडा करकें उत्पादन चालू करना मुमकीन न हुआ, तब श्री. रविकांतने सभी पर्यायोंका एकत्रित विचार करके खुद के अंतर्मन का आवाज सुनकर फँक्टरी खडी करके उत्पादन चालू होने के लिए लगनेवाला अठ्ठाईस महिनोंका समय श्री. रविकांतने चौदा महिनोंपर लाया। श्री. रविकांतने "जुगाड’’ के सारे तत्व जैसे के तैसे एक सही तरी के से इस्तमाल में लाए थे|
भारत के कॉर्पोरेट विश्र्व के ऐसे एक नही अनेक किस्से हम देख सकते है। क्योंकी "जुगाड” के लिए आवश्यक रहनेवाले सारे गुण विचारों की बैठक ही आजूबाजूकें प्रतिकूल परिस्थितीकीं वजहसें भारतीय जनमानसकें मनोवृत्तीमें ही है। सिर्फ उसे एक विशिष्ठ पद्धतीसे इस्तमाल करने की जरुरत है। भारत के सभी शहरों में दिखनेवाली "शेअर रिक्षाकी” पद्धत "जुगाड” नही तो क्या है? बैठनेवाले सभीयो का फायदा, उनकों चाहिए वैसी टॅक्सी और रिक्षाचालकों को भी और ज्यादा उत्पादन ! इंधन की बचत, जिससें कम होनेवाला प्रदूषण और साथही परिवहनपर पडनेवाला तनाव भी कम। अब इस शेअरींग पद्धतीकों शासकीय यंत्रणाकी भी मान्यता प्राप्त होने लगी है। बहुराष्ट्रीय कंपनीयों का उदाहरण दिया जाए तो जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) इस कंपनीका दे सकते है। "जीई” का हमेशा इस्तमाल में आनेवाला महँगा और वजन में भी भारी ईसीजी मशीन भारत मॆं इस्तेमाल में इतना सही नही था। वह ईसीजी मशीन उसके ज्यादा वजनके कारण दुसरी जगह ले जाना मुमकीन न था; क्योंकी उसे वहा से ले जानाजादा कष्ट निर्माण करनेवाला था । साथही भारत जैसे देश में अनेक जगहों पर लोडशेडिंग (बीजली का भारनियमन) की वजह से ऐसा बिजली पर चलने वाला मशीन किसी काम का न था । ऐसे समय मे जीई (इंडीया) के इंजिनियर्सने यह चॅलेंज स्विकारकर कामयाब होकर एक नए इसीजी मशीन की रचना की । हमेशा के उपयोग मे चलने वाली मशीन की तुलना मे इस ’मॅक ४०’ मशीन का वजन एक पंचमांश था और किंमत एक दशांश थी । वजन से हलका होने के कारण उसे कही भी लेकर जाना डॉक्टरों के लिये बहुत आसान हो गया । और साथही बॅटरी पर चलने के कारण याने की बिजली की जरूरत न होने के कारण, गाँव गाँव में यह मशीन इस्तमाल करना बहुत ही आसान हो रहा था । जीई हेल्थ केअर (इंडीया) के प्रेसिडेंट और सीईओ टेरी ब्रेसनहॅम इनके मत के अनुसार "तुम्हारी खोज यह सिर्फ़ नए तंत्रज्ञान पर डिपेंड न रहकर, यह खोज एक व्यावसायिक आदर्श बननी चाहिए, जिसकी वजहसे नए विकसित तंत्रज्ञान जादा से जादा लोगों फ़सानेमे आ सके और उनतक पहुँचाने वाले हो। और इस नये इसीजी मशीन ने ठीक यही करके दिखाया ।
एक बडे बहुराष्ट्रीय कंपनीने "जुगाड" की छ: की छ: तत्वों की सही तरीकेसे उपयोग में लाने के लिये "जीई" यह एक उत्तम, सही उदाहरण है । आज भारत में "जीई" का राजस्व, लगान कम से कम चौदा हजार पाचसौ करोड रुपये इतना है । इस पर हम अंदाजा लगा सकते है की "जीई" के सिर्फ़ भारत के व्यवसाय की व्याप्ति कितनी होगी ।
किसी भी कॉर्पोरेट कंपनी में ऐसा कौनसा भी नया उत्पादन अगर बनाना हो तो उसकी शुरुवात होती है अपना ग्राहक फ़िक्स करने से फ़िर उस ग्राहक की आवश्यकता और जरुरते देखी जाती है । यहॉं पर झटसे आँखोंके सामने आती है, ’नोकिया’ यह बहुराष्ट्रिय मोबाईल कंपनी का ’नोकिया ११०० ’ इस मोबाईल सेट का उदाहरण । जब उनके भारतके, आफ़्रिकाके और ब्राझील के "एथनोग्राफ़र्स" ने उस उस देश के संभाव्य ग्राहकक्षेत्र की जानकारी इकठठा की , तो मोबाईल जैसा नया उत्पादन बाजारमे लाने की तैयारी करने वाली किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए निराशा जनक ही थी । अस्वच्छतासे भरी झोपडपट्टी मे रहने वाले, अशिक्षितों का भरपूर प्रमाण होनेवाले बाजारमें उपलब्ध होनेवाला दुसरा कौनसा भी मोबाईल जेब को न परवडने वाला महँगा और उस मोबाईल की अतिप्रगत फ़ीचर्स समझने मे कठीन लगने वाली गरीब मेहनत करने वाले और मजदूर वर्ग के लोग । जो वहाँ पे रहते थे और काम करते थे वहाँ पर धुल का जादा प्रमाण और बिजली की कमी होने के कारण उस समय जो सब जगह उपल्ब्ध मोबाईल्स थे , वो इस माहौल मे जादा समय टिक नही पाते ।
यह सब जानकारी हाथ में आते ही नोकियाके आविष्कार कर्ते और तंत्रज्ञ काम मे लग गये.... इस वर्ग को उनकी समस्याओं पर मात करनेवाला मोबाईल उपलब्ध करके देना ही हैयह चॅलेंज उन्होंने स्वीकार लिया ।
........ और साकार हुआ नोकिया का क्रांतीकारी ’नोकिया - ११००’ यह मोबाईल । धुँधले माहौल में भी भारी पडनेवाला मजबूत डिझाईन, जिसमे यह फ़ोन इस्तमाल करनेवाले को कोई कठिनाई न आए इसिलिए अतिप्रगत एक भी फ़िचर नही दिए गए थे.... सिर्फ़ कॉल लेना - करना, साथ ही एसएमएस की सुविधा... बस... । साथमे इस रिसर्च करनेवालों के यह भी ध्यान मे आया की बहुत बार इनकी बस्ती मे मोबाईल रखनेवाले लोग मोबाईल स्क्रीन का उपयोग अंधेरेमे उजाले के लिये करते है । तभी उन्होंने इन मोबाईल मे ही टॉर्च का फ़ीचर भी समाविष्ट किया और इस अनोखे डिझाईन की उनको पुश्ती भी मिल गई । यह फ़ोन ग्राहको मे इतनी भारी मात्रा मे लोकप्रिय हो गया की पुछो मत । सिर्फ़ इन गरीब मेहनती बस्तियों मे ही नही तो उपयोग मे आसान होने के कारण मध्यमवर्ग में भी यह अच्छी तरह से लोकप्रिय हो गया की पुछो मत । सिर्फ़ इन गरीब मेहनती बस्तीयोंमे ही नही, तो उपयोग मे आसान होने के कारण, मध्यमवर्गमे भी यह अच्छी तरह से लोकप्रिय हो गया । इसके सिवाय आकस्मिक वह और एक वर्ग में लोकप्रिय हो गया, जो थे आशिया खंड के ट्रक ड्रायव्हर्स ; जिन्हे अगर रात्री के समय ट्रक मे कुछ फ़ॉल्ट आ गया तो उसे दुरुस्त करने के लिये लाईट की जरुरत के कारण उन्होंने भी इस फ़ोन को उठा लिया । यह फ़ोन इतना लोकप्रिय साबित हुआ की पूरे जग मे कम से कम २५ करोड के उपर सेटस् बिक गये । यह आज तक के किसी भी मोबाईल मॉडेल के बिक्री के लिये उच्चांक था ।
आज की घडी मे पहले कभी न महसूस हुई इतनी ’जुगाड’ की आवश्यकता अब समझ मे आ रही है । नए सहस्त्रक के स्वागत समय जग की संख्या छ: सो करोड थी; वही आज इस सहस्त्रक के पहिलेल्ही तप मे सातसौ करोड तक जा पहुँची है । जिसकी वजह से सची जगह खाना और धान साथही नैसर्गिक साधन संपत्ती की कमी बडे पैमाने पर महसूस हो रही है । जिसका परिणाम हर एक वस्तू की किमत पर हो रहा है । साथही किसी भी उत्पादन के समय लगनेवाला पानी और बिजली का प्रश्न भी डरावना रुप धारण कर रहा है। साथ में बाजार में होनेवाली स्पर्धा भी तीव्र होती जा रही है। ग्राहक भी अब चयनशील हो गया है, उसके पास भी खरीददारी के लिए अनेक पर्याय उपलब्ध है। जिसकी वजह से वस्तू की कॉलिटी बढाकर दाम कम रखनेकी जरुरत सबको महसूस हो रही है। .___ ऐसी परिस्थितीमे "जुगाड’" का मार्ग सबको अपनी और खीच रहा है। इशारा कर रहा है। आज के जगतकी तो यह जरुरत बन गई है।
गाव का गरीब मजदूर हो या खेती के साथ पशुपालन करनेवाला छोटा किसान हो या, शहरके कार्पोरेट विश्वकी जिम्मेदारी संभालनेवाला उच्च पद का अधिकारी हो; छोटेसे गाव का छोटासा धंदा करनेवाला हो या फिर देश का बडा उद्योगसमूह हो; मल्टिनॅशनल (बहुराष्ट्रीय) उद्योगसमूह हो या फेसबुक-गुगल जैसी जानकारी तंत्रज्ञानसें जुडी आयटी कंपनीया हो; सरकारी या आधी सरकारी (निमसरकारी)संस्था हो; हर एक को आनेवाले समयमें सक्षमतासें (सभी अॅंगल से) टिके रहने के लिए "जुगाड" का उपयोग महत्त्वपूर्न बन गया है;बल्कि; वह उनकी बुनियादी जरुरत बन गयी है। "जुगाड" का दृष्टिकोन (एप्रोच) न रखनें की वजहसें या ना स्वीकारनें के कारण अनेक कंपनीयोंकी या युरोपीय देशोकी क्या हालत हुई है, इसके अनेक दाखले or उदाहरण दिए जा सकते है।
आजुबाजूकी परिस्थितीसे "जुगाड’" तत्व की सहजतासें परिचित भारतीय समाजने, "पहले ही वह सावधानता’ यह श्री. समर्थ रामदास स्वामी कें उक्तीनुसार आगे आनेवाले समय के लिए "जुगाड’" तंत्र का उपयोग व्यापक स्तरपर पुरी तरहसें करना उनके लिए आसान होगा जिसमे किसीका भी अलग मत होने का कारण नही। लेकीन उसकी जरुरत के लिए जो है, जैसा है उससेही शुरुआत करने की और जो पाया है, साध्य किया है, उसपर संतुष्ट न रहकर "जुगाड’" का उपयोग करके प्रयास करते रहने की; फीर यशस्वी होने के लिए यह देखनी नही पडेगी, यश ही आपके पिछे आएगा।.. १०८% कीसी भी शक के सिवा!
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मानव यह भावनाप्रधान प्राणि है l मानव की भावनाओं का अध्ययन करके उसके द्वारा व्यक्ति या समूह का रुझान सांवेगिक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) के आधार से जानने का विज्ञान आज कल विकसित हो रहा है l भावनाओं में बहकर किसी भी घटना के प्रति रिअॅक्ट न करते हुए परिस्थिति को रिस्पाँड करने के लिए मानव को सांवेगिक बुद्धिमत्ता का उपयोग करना चाहिए l सांवेगिक बुद्धिमत्ता के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. ०८ मई २०१४ के हिंदी के प्रवचन में महत्त्वपूर्ण विवेचन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
samirsinh.com/emotional- intelligence/ -
सभी सब श्रद्धावान जानते ही हैं कि परमपूज्य सद्गुरु बापू पिछले ३ गुरुवार श्रीहरिगुरुग्राम में प्रवचन के लिए नहीं आए हैं। निरंतर ३ गुरुवार बापू का दर्शन न होने के कारण कई श्रद्धावानों ने आस्था और प्रेम से बापू के बारे में जानना चाहा। उन सभी श्रद्धावानों को मैं यह बताना चाहता हूँ कि बापू अपनी बहुत ही कठोर उपासना में व्यस्त हैं तथा अभी कुछ और समय तक यह उपासना जारी रहेगी। इस उपासना की वजह से परमपूज्य बापू पिछले ३ गुरुवार को श्रीहरिगुरुग्राम में नहीं आए।अभी कुछ और समय तक परमपूज्य बापू का श्रीहरिगुरुग्राम में प्रवचन के लिए आना उनकी उपासना पर निर्भर रहेगा।॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥
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मेरी बुद्धि में ही कुछ खोट है, मेरे पास बुद्धि ही कम है, यह कहकर अकसर मानव स्वयं को कोसते रहता है l भगवान ने सभी मानवों को एकसमान बुद्धि का वरदान दिया है, मानव उसका उपयोग कर अभ्यास के साथ उसे कितना बढाता है, इस बात पर ही उसका बुद्ध्यंक (Intelligence Quotient) निश्चित होता है l मानव के बुद्ध्यंक के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि. ०१ मई २०१४ के हिंदी प्रवचन में महत्त्वपूर्ण विवेचन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
विडियो लिंक - http://aniruddhafriend-samirsinh.com/intelligence- quotient/
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महज परमार्थ में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल बनने के लिए आत्मयोग्यता और आत्मविश्वास का होना आवश्यक है l आत्मयोग्यता बढाने से आत्मविश्वास बढता है और आत्मयोग्यता बढाने के लिए सद्गुरुतत्त्व की भक्ति करना यह राजमार्ग है l आत्मयोग्यता को बढाने के संदर्भ में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने गुरूवार ०१ मई २०१४ के हिंदी के प्रवचन में, मार्गदर्शन किया, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
विडियो लिंक - http://aniruddhafriend-samirsinh.com/self-esteem/ -
सद्गुरुतत्त्व पर श्रद्धावान का विश्वास कितना है, इस बात पर ही उसका जीवनविकास निर्भर करता है l जो भी माँगना है, वह सद्गुरु से ही माँगना चाहिए l परंतु कुछ माँगने पर भी यदि मेरे साईनाथ ने मुझे वह नहीं दिया तो कोई भी मुझे वह नहीं दे सकता और मैं मेरे साईनाथ के अलावा किसी और से वह स्वीकार भी नहीं करूँगा ऐसा विश्वास श्रद्धावान के मन में रहना चाहिए l विश्वास से ही सब कुछ होता है, ऐसा परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने गुरूवार ०१ मई २०१४ के हिंदी प्रवचन में, जो आप इस व्हिडियो में देख सकते हैंl
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हरि ॐआर्थिक दहशतवादझूठे धन से क्या तात्पर्य है ? सच्चा पैसा भविष्य में नहीं रहने वाला है, यह भीषण वास्तविकंता कितने लोंगों को पता है ? मुद्रा के मूल अस्तित्व के बारे में प्रश्नडाँ. अनिरुध्द जोशीये रे ये रे पावसातुला देतो पैसापैसा झाला खोटापाऊस आला मोठा ।
यह गाना बचपन में हर एक बच्चा प्रेमपूर्वक गाता रहता है । परंन्तु इस गाने का एक समीकरण समझ में नही आता कि खोटे ( झुठे ) पैसों के चक्कर में पडकर बरसात क्यों जोरदार प्रतिसाद देती हैं इतना ही नही बल्कि धीरे-धीरे मन में यह प्रश्न उठने लगता है कि आखिर खोटे पैसे का वास्तव में क्या तात्पर्य है ? परंन्तु यह उलटा समीकरण वर्तमान में संपूर्ण संसार को आर्थिक स्थिती का प्रमुख गणितीय सूत्र बन चुका है । इसका अहसास विगत तीन दशकों से, अनेक तरीकों से, समाज शास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों को होने लगा है । खोटा पैसा ही सच्चा और सच्चा पैसा भविष्य में रहेगा ही नही, यह भीषण वास्तविकता आज हममें से कितने लोंगों को पता है । यहाँ पर मै काला पैसा, या सफेद पैसा की बात नहीं करना चाहता हूँ । मेरे मन जो विचार चल रहा है वो उस मुद्रा के मूल अस्तित्व के बारे मे है । वैश्वीकरण के युग में मानो पूरा संसार ही एक छोटे से गाँव में सिमट कर रह गया है । और ऎसे समय में गरीब व असहाय राष्ट्र क्या अपना स्वतंत्र अस्तित्व रख सकेंगे ? क्या कम से कम आधे राष्ट्र भी शेब बच सकेंगें क्या, यह एक गहन प्रश्न बन गया है । यद्यापि इस प्रश्न पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है फिर भी इसे नजरंदाज करना हमें सुविधाजनक लगता है । यह सबसे दुर्भाग्य एवं भविष्य के लिये विनाशकारी बात है ।वीसंवी शताब्दी के पहले ५० वर्षो में हुये दो महायुध्दो के कारण तथा शीघ्रता से होने वाले वैज्ञानिक विकास के फलस्वरुप संपूर्ण पृथ्वी का नक्सा ही बदल गया है । दूसरे महायुध्द के अपरिहार्य परिणाम के फलस्वरुप इग्लैंड और जर्मनी की आर्थिक व वसाहतवादी सत्ता क्षीण हो गयी । अमेरिका व रशिया ये दोनों महाशक्तियां अधिकाधिक बलवान होने लगी । दूसरे अर्धशतक मे सोव्हियत पुनियन में साम्यवादी क्रांती धीरे-धीरे विकृत होती-होती सिर्फ नाम भर के शेष रह गयी है । तथा रशिया के घटक राष्ट्रों का विभाजन हो जाने से रशिया का वर्चश्व ही समाप्त हो गया । इतना ही नही ब्लकि रशिया के घटक राष्ट्रों मे तथा चीन में भी वर्तमान समय में भांडवल शाही का पुर्नजीवन हो रहा है । इन्हीं सब कारणों के चलते आज अमेरिका, संसार में एक बलशाली भांडवलशाही राष्ट्र के रुप में, संपूर्ण संसार का बेबंद राजा बन गया है । महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी युध्द अमेरिका ने अपनी भूमी पर नही लडने के की कुशलता दिखाने के कारण महायुध्दों के संहरक परिणाम व नुकसान अमेरिका को नही भोगने पडे ।शस्त्रो का व्यापार व आर्थिक दावपेंचों के कारण अमेरिका अधिकाधिक बलवान होता जा रहा है ।अमेरिका के आर्थिक वसाहतवाद के पाँच प्रमुख उद्देश्य है--१. अपना कोई भी प्रतिस्पर्धी उत्पन्न न होने देना - इसके लिये युरोप, जपान, ब्राझील और भारत जैसे राष्ट्रों को अपने आर्थिक नियंत्रण मे रखना अथवा परस्पर युध्द की धमकियों ( भारत-पाकिस्तान ) से ग्रासित रखने की तरकीब करना ।२ भारत व चीन का रशिया की तर्ज पर विभाजन करने की चाल चलना ।३ संयुक्त राष्ट्र संघटना ( UNO ) का उपयोग अपनी मनमानी को कायदेशीर साबित करने के लिये करना ।४ तेल उप्तादक राष्ट्रों को अपने नियंत्रण में रखकर स्वत: के ओद्योगिक हितो को सुरक्षित रखना ।५ ईराक पर लगायी गयी व्यापारिक बंदी के कारण ईराकी नागरिकों को नानाप्रकार के कष्ट भोगने पडे । मूलरुप से समृध्द यह देश १९९० के बाद दरिद्री होने लगा । ईराक का प्रतिव्यक्ति वार्षिक उत्पन्न ३५०० डालर्स था जो घटकर सन् २००० में मात्र ४०० डालर रह गया था ।
अन्न की कमी को मिटाकर भूख मरी को टालने के लिये बारम्बार याचना करने के बाद १९९६ में अपने पास पेट्रोल को कम भाव में बेचकर उसके बदले में खाद्यपदार्थ व धान्य प्राप्त करने छूट ईराक को दी गयी । U ICEF (United Nations children's Fund ) के अंदाज के अनुसार युध्द प्रारम्भ होने के पहले ही पाँच लाख ईराकी नागरिक क्षेपणास्त्रे तथा अन्न धान्यों की कमी के कारण मर चुके थे । जिनमें से तीनलाख पाँच वर्ष से कम आयु वाले बच्चे थे । सक्षम क्रूर तो होते ही है, परन्तु अमेरिका का क्रौर्य भी कम से कम उतना ही भयानक है, ब्लकि उससे ज्यादा भयानक है ।
लडाई हमेशा दो राष्ट्रों अथवा राष्ट्र समूहों के बीच होती है । परंतु अमेरिका ने दूसरे विश्वयुध्द के बाद सब जगह वैज्ञानिक प्रगति के कारण होने वाले वैश्वीकरण को जिसतरह अपने फायदे के लिये लागू किया उसके अनुसार किसी भी राष्ट्र का स्वतंत्र आर्थिक व सांस्कृतिक अस्तित्व ही शेष न रहने देना ही अमेरिका का महत्वपूर्ण उद्देश्य है ।वर्तमान में अमेरिका का आर्थिक साम्राज्य प्रत्येक राष्ट्र में फैल चुका है । भूतकाल की वसाहतवाद की तुलना में अमेरिका का यह नया आर्थिक साम्राज्यवाद प्रत्येक मानवी अस्मिता को क्षीण करने ही वाला है । ध्यान में रहे कि, अमेरिका में ही आंतरराष्ट्रीय नाणे निधी, संयुक्त राष्ट्र संघटना, विश्व बँक और वैश्विक व्यापार संघटना के मुख्य कार्यालय है । अमेरिका का शेअर बाजार आज अनेक देशों के बाजारों पर अपना वर्चस्व बनाये हुये है । दूसरे महायुध्द के पहले सारे वित्तीय व्यवहार उस देश तक ही सीमित रहते थे और अन्तरदेशीय व्यापार तथा बहुउद्देशीय बाजारों को एक सीमित सहकार्य की ही संकल्पना हुआ करती थी । परंन्तु वर्तमान मे सभी देशों के आर्थिक प्रावाह का नियंत्रण मानों एक ही जगह पर केन्द्रित हो चुका है । साधारणत: १९६५ से Trans National अर्थात राष्ट्रातीत कंपनियां अधिकाधिक संख्या में आगे आने लगी है । ऎसे राष्ट्रातीत कंपनियो को स्वीकारना विकासशील व गरीब राष्ट्रो की मजबूरी हो जाती है । क्योंकि ऎसा न करने पर उनके उद्योंगों को आर्थिक सहायता कौन देगा ? इन कंपनियों के पास अकूल संपत्ती होने के कारण वे किसी भी क्षेत्र में व्यवस्थित चल रहे उद्योगो को बुरीहालत में लाकर उन्हें खरीद सकती है अथवा किसी भी नये क्षेत्र में नया उद्योग शुरु कर सकती है और इसके फल स्वरुप तेजी से आर्थिक केन्द्रीकरण हो सकता है ।अर्थोप्तत्ती का नया समीकरण- विगत पाँच दशकों में अमेरिका द्वारा लाये गये वैश्विक अर्थ व्यवहार में बदलाव के कारण ७० टक्के देश लगातार बढ रहे और कभी भी न भर पाने वाले राष्ट्रीय कर्ज में डूब चुके है । सन् १९७० मे अमेरिका ने अधिकृत तरीके से अपनी राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था में बदलाव किया और U.S. फेडाल बँक ने राष्ट्रीय मुद्रा और सोना का परस्पर संबंध हमेशा के लिये समाप्त कर दिया । फलस्वरुप अमेरिकी मुद्रा का उप्तादन "बँक के कर्ज " के नयी विषारी प्रक्रिया के अनुसार होने लगा । यह नया विष अमेरिका के साथ व्यापारिक संबध रखने वाले सभी देशों की मुद्राओं को कमजोर करने लगा और इसीलिये उन्हे भी अपनी-अपनी मुद्राओं में, अमेरिका के नियमों से मिलते जुलते बदलाव करने पडे ।
फलस्वरुप अब अर्थ का तात्पर्य राष्ट्रीय संपत्ति नही ब्लकि अर्थ का तात्पर्य कर्ज का समीकरण दृढ हो चुका है । वर्तमान मे जब कोई राष्ट्र स्वत: की आर्थिक व्यवस्था का वैश्विकरण करना चाहता है ( स्वत: की औद्योगिक प्रगती के लिये ) तब जो-जो मुद्रा नये तरीके से आती है, वो सब सिर्फ बँक के कर्ज के रुप में ही मिलती है । एक बार इस अर्थव्यवस्था को स्वीकार कर लिया तो सोने की खानें, औद्योगिक उप्तादन और राष्ट्रीय मेहनत इत्यादि अर्थोत्पादन के साधन बिल्कुल रह ही नही जाते । इतना ही नही ब्लकि ग्राहको द्वारा बँका में जमा की गयी राशि भी अर्थोत्पादन का साधन नही रह जाती । कामगारों की मेहनत और उप्तादन क्षमता सिर्फ बँको द्वारा " निर्माण " किये गये भांडवल ( निधी ) का पुर्नवितरण करती है । जब बँक कर्ज मंजूर करके कर्ज लेने वाले व्यक्ति के खाते में यह रकम कागजीस्वरुप मे जमा करती है तभी वास्तव में मुद्रा उत्पन्न होती है और ठीक से समझ लो कि सिर्फ शून्य से और शून्य से ही इस नवीन मुद्रा की निर्मिती होती है । इसका क्या अर्थ है- कर्ज मंजूर होने से पहले यह अमुक रकम अस्तित्व में ही नही थी । परन्तु जब यह कर्ज ली गयी रकम खर्च की जाती है तभी मुद्रा का खेल शुरु होता है, ऎसा माना जाता है ।अब सवाल है कर्ज वापस करने का । यह कर्ज जब उत्पादन क्षमता की मूल्य से लौटाया जाता है तब इस कर्ज द्वारा निर्मित येन व डालर्स का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है । वास्तव में कर्ज लौटाने के लिये उपयोग में लायी गयी रकम बँक मे रहती ही नही है । सच्चाई तो यह है कि यह कही भी नही रहती है और चलन मे तो कतई ही नही रहती । ऎसा कर्ज चुकाने के लिये उपयोग मे लायी रकम व्यवहार मे चल रही मुद्रा को उस रकम के मूल्य के बराबर कम कर देती है । अर्थात जब सुस्थती रहती है तब लोग अपना ॠण चुकाते है और उतनी ही यात्रा में चलन में रहने वाले पैसे को कम कर देते है । ऎसी परिस्थिती में सहजता से ही आर्थिक घाटा निर्माण होता है और उसी की तुलना में सभी का हिस्सा भी बन जाता है । और इसमे ही अगले प्रश्नों का उत्तर निश्चित है-१ कामगारों की संख्या लगातार कम क्यो करनी पड रही है ?२ मेहनत की तुलना में मजदुरी की मात्रा हमेशा कम होती है ?
वर्तमान आर्थिक व्यवस्था में मुद्रा की भरपाई करने के लिये सिर्फ एक ही उपाय शेष बचता है -- " कर्ज "। इसके कारण विकासशील देशों को ऋणमुक्त होने के लिये बारम्बार कर्ज लेना पडता है । लगातार बढ रहे व्याज के कारण आवश्यक मात्रा मे मुद्रा व्यवहार में नही सकती और जब कर्ज चुकाया जाता है तब अस्थायी रुप से निर्माण हुयी रकम आर्थिक व्यवस्था से निकल जाती है । परन्तु उसपर लगाये गये व्याज की रकम की भरपाई ने होने के कारण एक बडी समस्या खडी हो जाती है । व्याज की यह रकम भरने के लिये वारम्बार कर्ज का चक्र शुरु ही रहता है । इसका मतलब यह है कि वर्तमान मे अर्थव्यवस्था " अपर्याप्त मुद्रा " पर चल रही है । इसी के कारण डालर को पकडने की जीवघातक दौड शुरु है । जो जितना ज्यादा स्वार्थी, अप्रामाणिक और क्रूर होता है वही जीतता है, बाकी को यहाँ कोई स्थान नही मिलता । फलस्वरुप ग्राहकों की सुविधा, कीमत और माल की गुणवत्ता की अपेक्षा कंपनियां बाजार पर अपना कब्जा जमाने के लिये अनैतिक मार्गो पर जादा खर्च करती है । विकसित देशो की बाजारों की आवश्यकतानुसार ही ( स्वत: के पक्के माल की विक्री के लिये ) गरीब व विकासशील देशों की प्रगती होने दी जाती है । विकासशील व गरीब राष्ट्रों को सहायता करने के नाम पर सतत उनका शोषण करना ही अमेरिका का धोरण है ।
सन १९७१ से शुरु की गयी अमेरिका की इस नयी अर्थव्यवस्था का नाम है " डेब्ट डालर्स "। इस नयी अर्थव्यवस्था के परिणाम स्वरुप राष्ट्रीय मालिकत के उद्योगों का दिवाला आसानी से पिट रहा है । सभी देशों की राष्ट्रातीत कंपनियां काफी बडी तादाद मे विकासशील देशों मे अपना जाल फैला रही है और अपनी मालिकियता बना रही है । उसके लिये अपनी कीमतों को अवास्तविक रीती से कम करके देशी कंपनियों को घाटे मे लाती है और बाद मे एकबार अधिकार जमा लेते ही वही कीमतें उतनी ही अवास्तविक तरीके से बढा देती है । धीरे-धीरे सभी प्रकार की बाजारे इन कंपनियों के हाथो मे तथा इन कंपनियों की डोर अमेरिका की अर्थव्यवस्था के हाथो में तथा अमेरिका की सरकार यानी अमेरिका की दुकान को कुछ भी करके फायदा पहुँचाने वाला एजंट - ऎसी परिस्थिती में किसी भी देश की राज्यसंस्था उनके देश की मक्तेदार कंपनियों के सामने लाचार हो जाती है । अर्थात राजकीय संस्था अब स्वतंत्र नही रह जाती । क्या वे अंतत: अमेरिका के रिमोट कंट्रोल के नीचे ही दबने वाले है ?
वर्तमान में भारत ने परदेशी भांडवल और औद्योगिक र्स्पधा का ठीक से मुकाबला करने वाले नियम न बनाने के कारण ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी मालकियत उत्पन्न करके अंतत: राष्ट्र के रुप मे भारत के हिस्से मे ज्यादा कुछ नही आने देगी । इसका स्पष्ट अहसास हमे होना चाहिये । सन् १९८३ के बाद संघटित क्षेत्रों मे प्रतिव्यक्ति उप्तन्न की तुलना मे असंघटित क्षेत्रों मे प्रतिव्यक्ति आय कम हो रही है । साथ ही साथ इसी दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों की प्रतिव्यक्ति उत्पन्न शहरी क्षेत्रो मे प्रति व्यक्ति आय की तुलना में ज्यादा से ज्यादा कम होती जा रही है ।वैश्विककरण के कारण सभी राष्ट्रों का आर्थिक विकास होगा व फलस्वरुप इन देशों का सर्वागीण विकास होगा, ऎसे उदात्त विचार हमेशा व्यक्त किये जाते थे । परन्तु वास्तव में वैसा होते हुये कही भी दिखायी नही दे रहा है । वास्तव में तो वैश्वीकरण के कारण संसार की मानवसंपत्ती व प्राकृतिक संपत्ती का प्रचंड नुकसान ही हो रहा है । तर्कसंगत रुप से मुनाफे के पीछे भागते हुये सभी देशों के पर्यावरण का बडी तेजी से नुकसान हो रहा है । ओजोन वायु का रिसाव, जंगलों का काटना, अनेको प्रजातियों का नाश, अनेक प्रकार की बँक्टीरिया तथा व्हायरसेस में जिनेटिक बदल, तापमान में बदल आदि के कारण ऎसा लगता है कि अगले १०० वर्षो में विश्व की लोकसंख्या सचमुच एक गाव के बराबर रह जायेगी ।
इस वैश्वीकरण व अमेरिका की आर्थिक साम्राज्यशाही के धोरण के चलते अबतक विभिन्न सामाजिक रीतियों के कारण लोंगों द्वारा प्राप्त किये हुये राजकीय, सामाजिक और आर्थिक अधिकार नष्ट होने लगे है ।आर्थिक साम्राज्य के इस धोरण ( सिध्दांत ) के कारण जो सबसे बडा परिणाम हुआ है ( भारत के साथ सभी देशोंपर ) वो है, कामागारों की अवनति । एक समय भारत में अत्यंत सुंदर तरीके से चलने वाले कामगार आंदोलनों को कुछ समय से लिये विघातक रुप प्राप्त हुआ था, यह सत्य है, परन्तु उसके बाद १९८० के बाद से सभी प्रकार की कामगार संघटनायें बलहीन हो गयी किंबहुना बलहीन की गयी, ऎसा विदारक दृश्य स्पष्ट रुप से दिखायी दे रहा है । लोकशाही राष्ट्रपध्दति तथा लोकशाही समाज रचना, राष्ट्र की सच्ची संर्वागीण प्रगती के लिये आवश्यक होती है, परन्तु वास्तविक व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बिना लोकशाही अविकृत नही रह सकती, यह अंतिम सत्य है ।स्वत: के सामाजिक व राष्ट्रीय अधिकार का यथोचित ज्ञान रखने वाला सामान्य व्यक्ति तैयार करना तथा उसे उसे सामाजिक व राष्ट्रीय कर्तव्यों का भान रखने के बारे मे सिखाना ही आज की ज्वलंत आवश्यकता है । क्योंकि अमेरिका का साम्राज्यवाद आज प्रत्येक देश की संस्कृति को भी जीतते जा रहा है और तब अब वो दिन दूर नही जब सभी देशों की संस्कृती का बडी मात्रा में अमेरिकीकरण हो चुका होगा । यह बात अच्छीतरह से समझ लेनी चाहिये कि आर्थिक प्रगति करते समय मानवी मूल्यों का विचार बाजू मे रखकर होने वाली उन्नति विनाशकारी ही होती है ।सन् २००० अप्रैल में हुयी हॅवान परिषद में एक ऎतिहासिक घटना हुयी । स्वयं अमेरिका सहित अनेक देशों में वैश्वीकरण का विरोध सुरु हो गया है । परन्तु जबतक हम सामान्य लोग इस समस्या को ठीक से नही समझेंगे तब तक यह संकट पूरी पृथ्वी के विनाश की तैयारी करते ही रहेगा ।पैसों की बरसातधन धना धन इन्फोटेनमेंट प्रां. लि. ने नयी धन धना धन ऑनलाईन लॉटरी की शुरुवात की है । इसमें धन धना धन द्वारा ट्राई धन का खेल तीन लकी नंबरों पर आधारीत है । ई टी व्ही की सभी वाहिनियों पर ( मराठी, बंगाली और कन्नड ) तथा एशियानेट वाहिनी पर इस ऑनलाइन लाटरी का प्रक्षेपण किया गया है । लाटरी टर्मिनल टेक्नोस्ट सिस्टम कंपनी से लिये गये है । इसमें ब्रॅडमा कन्झ्युमेबल और लॉलिस्टिक भागीदार है । साथ ही साथ प्रत्येक खेल में पॉच हजार रुपयों तक की इनाम राशि ग्राहकों को तुंरत दी जाती है ।