-
परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापुजी ने गुरूवार २३ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन में भगवान के सगुण रूप को श्रध्दावान प्यार से कैसे देखें और उस सगुण रूप के सभी पहलू किस तरह जान ले यह बात बापुजी ने स्पष्ट की है। वह आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं। (How to observe God's incarnation) Aniruddha Bapu Hindi Discourse 23-Jan-2014
-
ALL IS WELL DAD - Gajar - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 23-Jan-2014
-
परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापुजी ने गुरूवार २३ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन में असफ़लता का भय फ़ेक दो, असफ़लता से मत हारना, मत डरना यही है सफ़लता का पहला कदम।सफ़लता का सरल उपाय बताया वह आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं।
-
परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापुजी ने गुरूवार १६ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन में "बुरे विचारोंसे किस तरह बचा जा सकते है।" इसका सरल उपाय बताया वह आप इस व्हिडियो में देख सकते हैं।
-
गुरूवार १६ जनवरी २०१४ को परम पूज्य सद्गुरू श्री अनिरुद्ध बापुजीने प्रवचन में एक बहुतही महत्वपुर्ण Algoritham के बारेमें बताया। आदिमाता चण्डिका अपने पुत्र के साथ यानी परमात्मा के साथ हर पल केवल भावरुप में नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप में हमारे जीवन में रहती है यह बात इससे स्पष्ट हुई। हम सब को चण्डिकामाता और परमात्मा के हात जो व्यक्तित्व (Individuality) दिया गया है, जो हम में रहनेवाला bestest गुण है, वह गुण हमारे जीवन में इस मार्गदर्शन से कार्य करना शुरु करेगा।प्रवचन पूरा हो जाने के बाद बापु ने सभी श्रध्दावानों को एक दुर्लभ उपहार दिया। बापु ने स्वयं ‘जय जगदंब, जय जगदंब, जय जगदंब, जय दुर्गे’ यह गजर किया। इस गजर में सभी श्रध्दावान अपना देहभान खोकर तल्लीन हो गये थे। इस गजर में सम्मिलित होना हम सब को यकीनन ही अच्छा लगेगा। तो चलिए, ह्म भी इस गजर में शामिल होते हैं।
-
परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु जी ने १६ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन के दौरान शक का भी का सकारात्मक (positive) एवं विधायक (creative) उपयोग भक्ती मार्ग में किस तरह करना चाहिए इसके बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापुजी के द्वारा किया गया मार्गदर्शन इस व्हिडिओ में आप देख सकते है।
-
परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु जी ने ९ जनवरी २०१४ के हिंदी प्रवचन के दौरान भगवान और साधारण भक्त के बीच कोई एजंट नहीं होता, यह बात स्पष्ट की। इस व्हिडिओ में आप वह देख सकते हैं।
-
-
-
-
आज बड़े अरसे बाद हम आपस में संवाद कर रहे हैं। पिछले कई दिनों से अपने ही दो प्रोजेक्ट्स में अर्थात जेरियाट्रिक इंस्टिट्यूट तथा श्री अनिरुद्ध धाम के कार्यों में व्यस्त था, तत्पश्चात हर वर्ष की भांति मैं बापूजी के साथ गाणगापुर गया था।आज नववर्ष की पूर्वसंध्या पर मैं आपको अर्थात बापूजी के सभी श्रद्धावान मित्रों को तथ उनके श्रद्धावान परिवारजनों को नववर्ष की अनिरुद्ध शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। आनेवाला नया साल अम्बज्ञता के अर्थात आनंद के मार्ग पर जीवन यात्रा करनेवाला साबित हो यही बापूजी के चरणों में प्रार्थना करता हूँ। हम लोग प्रत्येक नववर्ष की शुरुआत उपासना से करते आ रहे हैं। मुझे यकीन है कि इस वर्ष भी बापूजी के सभी श्रद्धावनमित्र नववर्ष का स्वागत उपासना करते हुए आनंदोत्सव करेंगे।१ जनवरी का दिन और एक कारण की वजह से हम सभी श्रद्धावानों के लिए महत्त्वपूर्ण है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी १ जनवरी को दैनिक प्रत्यक्ष का नववर्ष विशेषांक छपनेवाला है और पहले ही घोषित किए अनुसार इस वर्ष का विषय है 'सोशलमीडिया - परिपूर्ण व परिपक्व इस्तेमाल।' पिछले कई सालों से कम्प्यूटर्स तथा इंटरनेट का हमारे जीवन में महत्त्व सद्गुरु बापू हमें समझाते आए हैं। बिलकुल बैंक के व्यवहारों से शौपिंग तक, बच्चों की शिक्षा, उनका स्कूल-कॉलेज में दाखिले से नौकरी पाने तक, यात्रा की टिकट से लेकर सरकारी कार्य तक तथा प्रमुखता से ऑफिसस में तो बड़े पैमाने पर यह कम्प्यूटर्स एवं इंटरनेट का इस्तेमाल करना एक तरह से अधिकाधिक अनिवार्य होता चला जा रहा है। श्रद्धावान समय के साथ चलें यह विधायक हेतु तथा दृष्टिकोण सामने रखकर दैनिक प्रत्यक्ष का यह नववर्ष विशेषांक आ रहा है, क्योंकि कम्प्यूटर्स, इंटरनेट तथा सोशल मीडिया आनेवाले समय में केवल जरुरत ही नहीं बल्कि इसका एक अभिन्न अंग होगा।
अधिक पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/नववर्ष-की-श्रद्धावान-मित/
अंग्रेजी मे पढने के लिये: http://aniruddhafriend-samirsinh.com/aniruddha-wishes-of-new-year-to-shraddhavan-friends/
मराठी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/नव्या-वर्षाच्या-श्रध्दाव/
-
भारत सर्वाधिक युवाओं का देश बनता जा है। इसी मात्रा में, इस युवा देश में युवाओं के सर्वाधिक पसंदीदा माध्यमवाले सोशल मीडिया का प्रभाव बहुत अधिक मात्रा में बढ़ता जा रहा है। देश में नेटीजन्स की संख्या करोड़ों में बढ़ रही है, ऐसे में कोई भी सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को रोक नहीं सकेगा।टेक्नोलॉजी के विकास के साथ साथ अधिकाधिक व्यापक होता हुआ यह माध्यम आज विश्व पर अपना अधिपत्य जमाए हुए है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सोशल मीडिया का अपरिहार्य परिणाम बिलकुल स्पष्ट नज़र आ रहा है ।अतः अब समय आ गया है, इस ज़बरदस्त क्षमतावाले माध्यम को अधिक प्रगल्भता से,कलात्मक ढंग से और जिम्मेदारी से इस्तेमाल करने का। इसीलिए आ रहा है, 'दैनिक प्रत्यक्ष' का १ जनवरी २०१४ का नववर्ष विशेषांक, जिसका विषय है.……’सोशल मिडीया - परिपूर्ण एवं परिपक्व इस्तेमाल'
अंग्रेजी मे पढने के लिये: http://aniruddhafriend-samirsinh.com/the-dainik-pratyaksha-the-new-year-issue-2014/
मराठी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/दैनिक-प्रत्यक्ष-नववर्ष-व-2/
-
३० अगस्त २००९ के रोज़ दैनिक प्रत्यक्ष में छपे हुए अग्रलेख में परमपूज्य सद्गुरु बापूजी ने उन्हें 'क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है' यह स्पष्टरूप में कहा था। इस अग्रलेख के जरिए बापूजी ने ९ मानदण्ड दिए थे जो संस्था से जुड़े हुए प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए संचालित किए जाते हैं। संस्था के कार्य में सेवा करनेवाले प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह मानदण्ड हमेशा लागू रहेंगे। इन मानदण्डों के आधार पर प्रत्येक श्रद्धावान को किसी भी अधिकारपद पर कार्यरत व्यक्ति का बर्ताव परखने का भी सम्पूर्ण अधिकार है।इस वर्ष के अनिरुद्ध पूर्णिमा के मेरे भाषण में मैंने कहा था कि इन मानदण्डों की सूची मैं मेरे ब्लॉग पर जाहिर करूँगा। वे निम्नलिखित हैं :-परमपूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्धांजी ने श्रद्धावानों के लिए दिए हुए मानदण्ड -१. प्रतिदिन दो बार आह्निक करना।२. आह्निक, रामरक्षा, सद्गुरुगायत्री, सद्गुरुचलीसा, हनुमानचलीसा एवं दत्तबावनी कण्ठस्थ करना और क़िताब में देखे बगैर उन्हें पढ़ना। हर चार महीनों में कम से कम एक रामनाम बही लिखकर पूरी करना और उसे रामनाम बैंक में जमा करना।३. सहकर्मियों तथा अपने अधिकारक्षेत्र में कार्य करनेवालों के साथ मग़रूरी से एवं रुखाई से पेश न आना। सहकर्मियों अथवा अपने अधिकारक्षेत्र में कार्य करनेवालों से हुई किसी ग़लती के लिए उन्हें ताकीद ज़रूर दें, लेकिन उन्हें अपमानित न करें।४. उपासनाओं के समय उस स्थल पर मौजूद किसी भी व्यक्ति को ‘मैं उपासनाओं से बढ़कर हूँ अथवा मुझे उपासना की ज़रूरत नहीं है’ इस तरह का बर्ताव नहीं करना है।
अधिक पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/परमपूज्य-सद्गुरु-श्री-अन/
मराठी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/परमपूज्य-सद्गुरु-श्रीअनि/
-
गुरुवार,दिनांक 07-11-2013 के प्रवचन में सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। जनवरी 2014 में ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव मनाया जायेगा। ‘श्रीश्वासम्’ का मानवी जीवन में रहनेवाला महत्त्व भी बापु ने प्रवचन में बताया। सर्वप्रथम “उत्साह” के संदर्भ में बापु ने कहा, “मानव के प्रत्येक कार्य की, ध्येय की पूर्तता के लिए उत्साह का होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। उत्साह मनुष्य के जीवन को गति देते रहता है। किसीके पास यदि संपत्ति हो लेकिन उत्साह न हो, तो वह संपत्ति भला किस काम की! मगर यह उत्साह लाये कहाँ से? आज हम देखते हैं कि सब जगह अशक्तता दिखायी देती है। शरीर की ९०% अशक्तता का कारण मानसिक होता है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं से यह पूछे कि क्या वास्तव में मैं इतना दुर्बल हूँ? मेरी ऐसी हालत क्यों होती है? मैंने अपने जीवन का क्या विकास किया? क्या मैंने प्रयत्नपूर्वक मुझ में रहनेवाले किसी एक अच्छे गुण का विकास करने के लिए, उसे बढाने के लिए अपरंपार परिश्रम किया है? यह हुई एक बात। दूसरी बात है- मैंने बचपन में जो सपने देखे थे, उनमें से कम से कम एक को पूरा करने के लिए क्या मैंने कोई योजना बनायी? तीसरी बात है- क्या मैंने किसी व्यक्ति की, जो मेरा रिश्तेदार या दोस्त नहीं है ऐसे किसी व्यक्ति की केवल इन्सानियत की खातिर सहायता की है? जो मेरा रिश्तेदार या दोस्त नहीं है ऐसे किसी व्यक्ति के लिए क्या मैंने परिश्रम किया है? और सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि जिस भगवान ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, उस भगवान के लिए मैंने क्या कभी कुछ किया? फ़िर कोई कहेगा कि वह ईश्वर ही हमारे लिए सब कुछ करता रहता है, वही सब कुछ देता रहता है, उसके लिए भला हम क्या करेंगे? लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि ईश्वर तुमसे ये ही तीन बातें चाहता है। इस चण्डिकापुत्र को तुमसे इन्हीं तीन बातों की अपेक्षा रहती है।”बापु ने आगे कहा, “ये तीन बातें करने के लिए आवश्यक रहनेवाली ऊर्जा, उत्साह ही हमारे पास नहीं रहता। उसमें भी कई मुसीबतें, मोह आते ही रहते हैं। कभी हम गलती करते हैं, तो कभी दूसरे गलती करते हैं। जिसे काम करना होता है, उसे कोई रुकावट नहीं आती। जिसे करना नहीं होता, उसके सामने सौ अडचनें खडी होती रहती हैं। जिसे काम करना होता है, वह रुकावटों को मात देकर काम करता ही है। लेकिन मन में, प्राण में उत्साह न हो तो शरीर में कैसे आयेगा? यह उत्साह लाये कहाँ से?उत्साह के लिए संस्कृत शब्द है- मन्यु. मन्यु यानी जीवित, रसभीना, स्निग्ध उत्साह। शरीर के प्राणों की क्रिया को मन और बुद्धि का उचित साथ दिलाकर कार्य संपन्न करनेवाली शक्ति है उत्साह। चण्डिकाकुल से, श्रीगुरुक्षेत्रम् मन्त्र से यह उत्साह मिलता है। भगवान पर रहनेवाले विश्वास से यह उत्साह मिलता है। ‘मानव का भगवान पर जितना विश्वास, उससे सौ गुना उसके लिए उसका भगवान बड़ा’ ऐसा मानव के मामले में होता है। और विश्वास एवं उत्साह उत्साह की पूर्ति करनेवाली बात है- ‘श्रीश्वासम्’! यूँ तो मानव अनेक कारणों के लिए प्रार्थना करता है, लेकिन यह विश्वास बढने के लिए प्रार्थना करना ज़रूरी होता है। भगवान पर का विश्वास बढानेवाली और प्रत्येक पवित्र कार्य के लिए उत्साह की पूर्ति करनेवाली बात है- ‘श्रीश्वासम्’!श्रीश्वासम् उत्सव के बारे में बताते हुए बापु ने कहा, “जनवरी 2014 में श्रीश्वासम् उत्सव बडे उत्साह के साथ मनाया जायेगा। उसके बाद प्रत्येक गुरुवार को श्रद्धावान ‘श्रीहरिगुरुग्राम’ में श्रीस्वस्तिक्षेम संवाद के बाद श्रीश्वासम् कर सकेंगे। श्रीश्वासम् उत्सव की तैयारी के लिए कल से (यानी 08-11-2013 से) मैं स्वयं उपासना करनेवाला हूँ।इस ‘श्रीश्वासम्’ के लिए मैं एक व्रत का स्वीकार कर रहा हूँ, जिससे कि जो भी यह श्रीश्वासम् चाहता है, वह उस प्रत्येक को मिल सके। इस व्रतकाल में मैं हर गुरुवार आने ही वाला हूँ। श्रीश्वासम् के लिए मुझे अपनी तैयारी करनी है। मुझे प्रत्येक के लिए ऐसा चॅनल open करना है, जिससे कि प्रत्येक श्रद्धावान अपनी क्षमता एवं स्थिति के अनुसार उसे उपयोग में ला सके। यह मेरी साधना है, उपासना है। श्रीश्वासम् में शामिल होना चाहनेवाला प्रत्येक श्रद्धावान पहले दिन से ही इसका पूरी तरह लाभ उठा सके, इसके लिए की गयी तैयारी ही मेरी यह उपासना होगी। प्रत्येक श्रद्धावान श्रीश्वासम् से मिलनेवाली ऊर्जा ग्रहण कर सके, इसके लिए चॅनल्स खोलने का कार्य करनेवाली यह उपासना होगी।
अधिक पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/श्रीश्वासम्/
मराठी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/shree-shwasam-marathi/