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हरि ॐ। यह ब्लाग हमें सदगुरु श्री अनिरुद्ध बापू (डा. अनिरुद्ध जोशी) के बारें में हिंदी में जानकारी प्रदान करता है।

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‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे – २’ के बारे में सूचना

सद्गुरु श्री अनिरुद्ध के प्रति रहने वाले श्रद्धावानों के प्रेम से भक्तिरचनाओं का उदय हुआ। अनेक ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ श्रद्धावानों ने अपनी भक्तिरचनाओं में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध का गुणसंकीर्तन किया है। इनमें से चुनिंदा भक्तिरचनाओं का सत्संग करने की संकल्पना त्रिनाथों की कृपा से वर्ष २०१३ में प्रत्यक्ष में आयी, वह ‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे’ इस अनिरुद्ध प्रेमयात्रा के स्वरूप में।
प्रार्थना ही हमारे सामर्थ्य का स्रोत है (The Prayer is the source of our strength)‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे’ इस अनिरुद्ध-प्रेम की वर्षा में सराबोर होकर श्रद्धावान भक्तों के मन शान्ति, तृप्ति, सन्तोष और आनन्द से ओतप्रोत भर गये। परन्तु इसके साथ ही ‘भावभक्तीची शिरापुरी। कितीही खा सदा अपुरी। जरी आकंठ सेविली तरी। तृप्ति न परिपूर्ण कधींही॥’ अर्थात् ‘भावभक्ति की शीरा-पुरी का चाहे कितना भी सेवन क्यों न किया जाये, परन्तु फिर भी कभी तृप्ति नहीं होती’ यह प्रेमपिपासा भी श्रद्धावानों के मन में उछल रही थी।
और हम सब अनिरुद्ध-प्रेमी श्रद्धावान भक्तों की यह भक्तिकामना पूरी हो रही है, ‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे’ – २ इस रूप में। ‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे’ – २ इस अनिरुद्ध-प्रेम-सत्संग का आयोजन दिनांक ३१ डिसेंबर २०१९ को किया गया है। स्थल वही है – पद्मश्री डॉ. डि. वाय. पाटिल स्टेडियम, नेरुळ, नवी मुंबई.
वर्ष २०१३ की ‘न्हाऊ तुझिया प्रेमे’ इस प्रेमयात्रा में सम्मिलित हुए श्रद्धावान भक्तों को अनिरुद्ध-प्रेम के पुन:प्रत्यय का आनन्द प्राप्त करने के लिए और जो श्रद्धावान भक्त सम्मिलित नहीं हो सके, उनके लिए इस अनिरुद्ध-प्रेमरस में भीगने का अनुभव प्राप्त करने के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है।
पिपासा ३, ४ और ५ का आगमन
पिपासा यह पुकार है उस भक्तरूपी मयूर की, जो सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी की प्रेमपिपासा से व्याकुल होकर, अनिरुद्ध-गुणसंकीर्तन में बेभान होकर नाचने की इच्छा रखता है। स्वयं को पूर्णत: भूलकर मात्र उस एक ही अनिरुद्ध प्रेमसागर में समाने की इच्छा से तेजी से बह रही नदी की उत्कटता ही पिपासा है। ‘बापू भेटला ज्या क्षणी मन हे जाहले उन्मनी। माझ्या अनिरुद्ध प्रेमळा त्याला माझिया कळवळा॥’ अर्थात् ‘जिस पल बापु मिले उस पल यह मन उन्मन हो गया, मेरा अनिरुद्ध प्रेममय है, प्रेमल है, उसके दिल में ही मेरे प्रति आत्मीयता है’ इस जीवनमंत्र का जाप करनेवाले भगीरथ भक्त का पुरुषार्थ है, पिपासा।
हम पिपासा भाग १ और २ की भक्तिरचनाओं में इस प्रेमपिपासा को अनुभव कर ही चुके हैं। हम सभी अनिरुद्ध-प्रेमी श्रद्धावान भक्तों के लिए एक खुशखबर है कि जल्द ही पिपासा भाग ३, ४ और ५ का आगमन होनेवाला है। इससे पहले प्रकाशित हुई पिपासा की भक्तिरचनाओं के समान ही इन रचनाओं में भी अनिरुद्धजी के प्रति रहनेवाले प्रेम से सराबोर ऐसीं अनेक भक्तिरचनाएं हम सभी को अनिरुद्ध-प्रेमरस से भिगो देनेवाली हैं।

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

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