धारी माता का प्रकोप
हाल ही में उत्तराखंड में जलप्रलय हुआ जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर मानवहानी तथा वित्तहानी हुई। यह सारी ख़बरें हम समाचार पत्रों में और न्युजचॅनल्स् में देख ही रहें थे। कल प्रवचन के दौरान बापूजी ने इस घटना का उल्लेख किया। इस बात से सम्बंधित लेख आज के दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुआ है। उसका हिंदी अनुवाद यहॉं दे रहा हूँ।
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श्रीधारा माता |
ऐसा माना जाता है कि चारधाम यात्रा करनेवाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा धारा माता करती है। इसीलिए सरकार उत्तराखंड के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित धारा माता का मंदिर न गिराया जाए, यह मांग पिछले दो सालों से की जा रही थी। स्थानिक जनता का विश्वास है कि धारा माता अलकनंदा नदी का प्रवाह नियंत्रित करती है और उसके नियंत्रण की वजह से अलकनंदा का स्वरूप सौम्य रहता है। इसी कारण स्थानिक धार्मिक संघटनाओं से लेकर सर्वसामान्य जनता तक सभी की यह बिनती थी कि धारा माता मंदिर के प्रति सरकार ऐसा निर्णय न ले। मगर विकास के लिए बिजली की जरूरत का कारण बताकर सरकार ने इस मांग को नजरंदाज कर दिया। १६ जून की शाम के छः बजे धारा माता का मंदिर गिराया गया। मंदिर में स्थित धारा माता की मूर्ती निकाली गई।
उसी समय केदारनाथ में बादल फटा और तत्पश्चात दो घंटों में अतिवृष्टि ने तबाही मचा दी। चारधाम यात्रा के लिए हजारों की संख्या में आये हुए श्रद्धालू वहां फंस गए। मुसलाधार बारिश, भूस्खलन की वजह से फंसे हुए श्रद्धालुओं को बाहर निकालना मुश्किल हो गया और इस विपत्ति की तीव्रता बढती गई। इस तरह की विपत्ति आने पर इसकी जिम्मेदारों को ढूँढने की जिम्मेदारी अपनेआप प्रसारमाध्यम उठाते हैं। उत्तराखंड में आई हुई विपदा के बाद भी ऐसा ही हुआ। पीड़ितों की संख्या और फंसे हुए श्रद्धालुओं की जानकारी देते हुए, पर्यावरण के बारे में सोचे बगैर मूर्खों की तरह बनाई जानेवाली योजनाओं तथा प्रकल्पों की जानकारी देकर प्रसारमाध्यम सरकार की खिचाई कर रहे थे। मगर इन बातों को स्वीकार करने के बाद भी स्थानिक जनता धारा माता के गिराए हुए मंदिर की तरफ इशारा करके अपनी नाराजगी व्यक्त कर रही थी।
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श्रीधारा माता का मंदीर |
धारा माता का यह मंदिर पिछले ८०० सालों से था। यह प्राचीन बलस्थान माना जाता है। यह धारणा है कि धारा माता काली माता का ही रूप है। कहा जाता है कि इस बलस्थान की जानकारी श्रीमद्भागवत में दर्ज है।श्रीनगर (जम्मू-काश्मीर स्थित श्रीनगर नहीं) के पास कालियासुर नामक स्थान पर स्थित धारा माता का यह मंदिर स्थानिकों का श्रद्धास्थान है। यह पारम्पारिक सोच रही है कि धारा माता की मूर्ती बहुत ही उग्र होने के बावजूद माता द्वारा स्वीकारा हुआ यह रूप हमारे सुरक्षा के लिए ही है। इस पर आधारित ऐतिहासिक कथा भी बताई जाती है।
सन १८८२ में एक सरफिरे राजा ने इसी तरह मंदिर से छेड़खानी करने की कोशिश की थी। ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त भी इसी तरह कुदरती संकट आया था। इसलिए सुरक्षा करनेवाली धारा माता के मंदिर के प्रति स्थानिक जनता की भावनाए बहुत तीव्र हों, तो इस में अचरज की कोई बात नहीं है।