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गुरुवार, दि. २४ अक्तूबर २०१३ के दिन परमपूज्य बापूजी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर प्रवचन किया। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि अपने बच्चे का जीवन स्वस्थ हो और उसे दीर्घ आयु मिले। इस दृष्टिकोन से सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार घर में बच्चे के जन्म के बाद षष्ठी पूजन किया जाता है। मगर समय के चलते गलत रूढ़ियाँ पड़ती गईं जिनकी वजह से इस पूजन का महत्व केवल कर्मकांड तक ही सीमित रह गया। इस पूजन का उद्देश्य, इसका महत्व और मूल पूजनपद्धति के बारे में बापूजी ने प्रवचन द्वारा मार्गदर्शन किया।
परमपूज्य बापूजी ने कहा, “ब्रह्मऋषियों में पहली बार माता बनी लोपामुद्रा (ऋषि अगस्त्य की पत्नी) और अरुंधति (ऋषि वसिष्ठ की पत्नी) दोनों एक ही समय पर प्रसूत हुईं। अगस्त्य-लोपामुद्रा एवं वसिष्ठ-अरुंधति, इन चारों ने अपने अपने बच्चे के लिए जो पहला पूजन किया उसे ’सप्तषष्ठी पूजन’ के नाम से सम्बोधित किया गया।मातृवात्सल्यविंदानम् में हम पढते हैं कि शुंभ निशुंभ नामक राक्षसों से लड़ते समय महासरस्वती की सहायता के लिए सभी देव अपनी अपनी शक्ति भेजते हैं। वे सात शक्तियां ही सप्तमातृकाएं हैं और उनकी सेनापति है काली। उन सात मातृकाओं के नाम निम्नलिखित हैं।१) माहेश्वरी – जो पंचमुखी है और वृषभ पर सवार है। उसके हाथ में त्रिशूल है।२) वैष्णवी – जो गरुड पर सवार है। उसके हाथों में चक्र, गदा और पद्म हैं।३) ब्रह्माणी – जो चार मुखोंवाली है और जो हंस पर सवार है। उसके हाथों में कमण्डलु तथा अक्षमाला है।४) ऐन्द्री – जो इंद्र की शक्ति है और ऐरावत पर सवार है। उसके हाथ में वज्र है।५) कौमारी – जो छे मुखोंवाली है और मोर पर सवार है।६) नारसिंही – जिसका मुख शेरनी का है। उसके हाथ में गदा और खड्ग है।७) वाराही – जिसका मुख वराह का है और जो सफ़ेद रंग के भैंसे पर सवार है। उसके हाथों में चक्र, खड्ग, तलवार और ढाल हैं।”इन सप्तमातृकाओं का पूजन ही ’सप्तषष्ठी पूजन’ है। खुद बापूजी के जन्म के बाद उनके घर में यह पूजन मूल पद्धति अनुसार किया गया। पूजन में इस्तेमाल की जानेवाली इन सप्तमातृकाओं की तस्वीर बापूजी ने २४ अक्तूबर २०१३ को प्रवचन के दौरान सभी श्रद्धावानों को दिखाई। उस पूजन का महत्व बताते हुए बापूजी ने आगे कहा, “शुंभ और निशुंभ की हत्या के बाद शुंभ का पुत्र दुर्गम उस में से बच निकला। उसे कौवे का रूप दिया गया इसलिए वह बच गया ऐसा नहीं है, बल्कि उसे देखकर इन सात सेनापतियों का मातृभाव जागा इसलिए उन्होंने मातृत्व की भावना से शत्रु के बालक को भी जीवनदान दिया। उनके इस कृत्य से प्रसन्न होकर महासरस्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि, ‘जो मानव अपने बच्चे के जन्म के बाद उनका (अर्थात इन सात मातृकाओं का) पूजन करेगा, आप उस बालक की रक्षक बनना।’ इसलिए घर घर में बच्चे के जन्म के पश्चात् इन सात मातृकाओं का पूजन करने की प्रथा शुरू हुई।तत्पश्चात बापूजी ने विस्तार से बताया कि यह पूजन कैसे किया जाता है।
पूजन की सजावट :१) एक पाटा लें। उसके नीचे ‘स्वस्तिक’ या ‘श्री’ की रंगोली बनाएँ क्योंकि यह मंगलचिन्ह हैं। पूजन की सजावट पाटे पर ही करें, चौरंग या टेबल पर न करें क्योंकि बड़ी माँ के समक्ष हम सब उसके बच्चे ही हैं। बालक पहला कदम पाटे की ऊँचाई तक ही उठा सकता है इसलिए पूजन की सजावट में पाटे का ही इस्तेमाल करें।२) पाटे पर शाल/पीताम्बर/चादर बिछाएं। पाटे के इर्दगिर्द रंगोली से सजाएंगे तो भी चलेगा।३) एक थाली (तरबहना) में किनारे तक समतल गेहूं भरें।४) उसमें बीचोबीच एक और उसके इर्दगिर्द छे सुपारियां रखें।५) पाटे पर थाली के दोनों तरफ दो नारियल रखें। नारियल को हल्दी कुमकुम लगाएं।६) दोनों नारियल के अंदर की तरफ, थाली के समक्ष लाल अक्षताओं की राशि (ढेर) रखें। यह राशियां देवों के वैद्य अश्विनीकुमारों की पत्नियां हैं। यह सगी जुड़वा बहनें हैं और उनके नाम जरा और जीवंतिका हैं। यह दोनों अश्विनीकुमारों की तरह एकदूसरे के बिना नहीं रह सकतीं और यह दोनों छोटे बच्चों के साथ खेलती हैं, उनका लालन-पालन करती हैं, ऐसी धारणा है। बालक तीन महीने का होने तक जब जब हस्ता है, तब वह हसी बच्चे द्वारा इन दोनों को दिया हुआ प्रत्युत्तर होता है।अ) जरा का अर्थ है बुढ़ापा देनेवाली। बच्चा बहुत बहुत वृद्ध होने तक जीए ऐसा वह आशीर्वाद देती है।ब) जिवंतिका का अर्थ है बच्चे के जीवन के अंत तक उसके स्वास्थ्य का खयाल रखूंगी ऐसा आशीर्वाद देनेवाली।७) पाटे पर चार दिशाओं में चार बीड़े रखें। उन पर एक एक सुपारी रखें। पूजन में बीड़ा रखने का अर्थ है भगवान को ‘आमंत्रित’ करना। बीड़ा-सुपारी से किया हुआ आमंत्रण किसी भी मंत्र के बिना किया हुआ आमंत्रण होता है। यह साक्षात आदिमाता के कात्यायनी स्वरूप ने कहा है। बीड़ा रखने से भगवान को आमंत्रण पहुँचता ही है क्योंकि यह कात्यायनी का संकल्प है।८) थाली की पिछली तरफ थाली से टेककर सप्तमातृकाओं का फोटो रखें।
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पिछले कुछ हफ्तोंसें परमपूज्य बापूजीके प्रवचन ’ॐ रामवरदायिनी श्रीमहिषासुरमर्दिन्यै नम:l” इस श्रीअनिरुध्द गुरुक्षेत्रम् मंत्र कें, अंकुरमंत्र भागकें तिसरें पद पर चालू हैंl
इस प्रवचन अंतर्गत बापूने हमें परमेश्वरी सूत्र (algorithms) और शुभचिन्हों कीं पहचान करा दीl इन सूत्रोंके अंतर्गत बापूने हमें, स्कंदचिन्ह, स्वस्तिक, सृष्टी के सूर्य – चंद्र, दीप, आरती, इत्यादी अनेक algorithms की विस्तृत जानकारी दीlउसके बाद जुलै के महिनें में बापू ने उनके प्रवचन की शुरुआत करते ही कहा की, “आज हमें विश्व का बहोत बडा रहस्य देखना हैं” और प्रवचन में बापूने प्रश्न किया की, गणित में Pi (п) यह constant (स्थिरांक) कैसे निर्माण हुआ?” फिर उसका जवाब समझाते समय कहा की Pi (п) यह स्थिरांक सृष्टी में कभी भी बदलता नही और यह स्थिरांक यानेकी वर्तुलका दायरा (घेरा) भागफल व्यास (चौडाई) यह होता है. यह कहते वक्त इसका संबंध हनुमानजी सें कैसा हैं, इस हनुमानजींका इस वर्तुल सें कैसा संबंध है यह समझाते हुए श्रीमारुती स्तोत्र कें “ब्रह्मांडाभोंवते वेढे वज्रपुच्छें करूं शके” इस ओवी का जिक्र करते कहाl यह हनुमानजी कें पुच्छ का वर्तुलाकृति ब्रम्हांड को हमेशाहीं रहता है यह भी बापूनें स्पष्ट कियाlपिछलें प्रवचन में यानें की, ८ ऑगस्ट २०१३ कें प्रवचन में बापूनें π (Pi) इस स्थिरांक कीं ३६० दशांशतक कीमत बताईl यह कीमत पाच-पाचकें हिस्सों में (set) दिखाकर वह पाच-पाच के हिस्सों में (set) क्यों यह स्पष्टीकरण करकें बतायाlलेकिन अनेकोंकी गलत फैमि रहती की २२/७ यह Pi (π) की अचूक कीमत (exact value) हैंl पर ऎसा न होकर Pi (π) यह एक स्थिरांक हैl ’Pi or Π is an irrational number, which means that it cannot be expressed exactly as a ratio of any two integers. Fractions such as 22/7 are commonly used as an approximation of Π; no fraction can be its exact value.’ गणितज्ञो ने आजतक दशांश चिन्ह कें आगे पाच दशलक्ष अकोंतक π (Pi) की कीमत ढूढली हैlअधिक पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/विश्व-का-रहस्य-त्रिविक्/
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६ मई २०१० को ’रामराज्य २०२५’ इस संकल्पना पर आधारित परमपूज्य बापु का प्रवचन श्रद्धावानों ने सुना ही है। इस प्रवचन में बापु ने अनेकविध विषयों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी थी। उनमें एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा था- ’अच्छी तरह अंग्रेजी (इंग्लिश) भाषा में बातचीत करना सीखना’। उस समय बापु ने कहा था, “आज अंग्रेजी यह दुनिया के व्यवहार की भाषा बन गयी है। अपनी मातृभाषा पर नाज अवश्य होना चाहिए, लेकिन आज की घडी में अपनी लौकिक प्रगति के लिए अंग्रेजी में सुधार लाना आवश्यक है। यदि दुनिया की स्पर्धा में हमें बने रहना है, तो प्रवाही रूप से अंग्रेजी में बात करना आना ही चाहिए। इसके लिए हम ‘अनिरुद्धाज् इन्स्टिट्यूट ऑफ लँग्वेज अॅण्ड लिंग्विस्टिक्स’ इस संस्था की स्थापना कर रहे हैं।” बापु ने आगे कहा था, “कई लोग अंग्रेजी में बात करनी हो, तो पहले अपनी मातृभाषा में विचार करते हैं और फिर अंग्रेजी में बोलते हैं। यह गलत है। इससे विचार करने और उसे अभिव्यक्त करने में एक खाई सी बन जाती है। इस खाई के कारण भाषा धाराप्रवाही (फ्लुएंट) नहीं रहती। भाषा का प्रवाही रहना आवश्यक है। भाषा की जो फ्लुएन्सी है, वह महत्त्वपूर्ण है।”साथ ही इस इन्स्टिट्यूट की प्रमुख एवं सर्वेसर्वा स्वयं ‘सौ. स्वप्नगंधावीरा अनिरुद्धसिंह जोशी’ (यानी हम सबकी प्रिय नंदाई) रहने वाली हैं, यह भी बापु ने उस वक्त घोषित किया था। हम सब जानते ही हैं कि गत कई वर्षों से नंदाई ‘स्त्रियों के आत्मबल-विकास वर्ग (कोर्स)’ का संचालन कर रही हैं, जिसमें अंग्रेजी सीखना यह आत्मबल के पाठ्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। आत्मबल के वर्ग में प्रवेश ली हुईं कुछ महिलाओं को अंग्रेजी भाषा की कोई जानकारी नहीं रहती। लेकिन उन्हीं महिलाओं को नंदाई महज ६ महीने की कालावधि में अंग्रेजी भाषा बोलना एवं लिखना सिखाती हैं, जिससे कि आत्मबल का क्लास की हुईं महिलाएं प्रतिदिन के व्यवहार के लिए आवश्यक रहने वाली अंग्रेजी भाषा का उपयोग कर सकती हैं। साथ ही आत्मबल के कोर्स के अन्त में रहने वाले स्नेहसंमेलन में इन्हीं में से कुछ महिलाएं अंग्रेजी नाटिका में आत्मविश्वास के साथ हिस्सा लेती हैं।इसी अनुषंग से, अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए उपयोगी साबित होनेवालीं, स्वयं नंदाई के द्वारा लिखी गयीं पुस्तकें, संच (Set) के स्वरूप में शीघ्र ही प्रकाशित हो रही हैं। इन पुस्तकों के आधार से सभी इच्छुक श्रद्धावानों के लिए अंग्रेजी सीखने का सहज एवं सुलभ मार्ग खुल जायेगा। इस पुस्तक को देखना, पढना और उसका उपयोग करना यह एक अनोखा आनन्ददायक अनुभव होगा। साथ ही बापु को अपेक्षित रहने वाले रामराज्य के प्रवास का यह एक महत्त्वपूर्ण पडाव होगा, यह निश्चित है।
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२७ जून २०१३ के प्रवचन में बापु के द्वारा विशद की गयी गेहूँ का सत्त्व बनाने की रेसिपी यहाँ पर दी जा रही है।गेहूँ रात को पानी में भिगोकर रख दीजिए। अगले दिन यह पानी निकालकर गेहूँ को नये पानी में भिगोइए। तीसरे दिन यह पानी निकालकर गेहूँ को पुन: नये पानी में भिगोइए। चौथे दिन गेहूँ में से पानी निकाल दीजिए और इस भिगोये गये गेहूँ में थोडा सा पानी डालकर इस मिश्रण को मिक्सर में या सिलबट्टे से पीस लें। इस तरह पीसे हुए गेहूँ को निचोडकर और छानकर बनी लपसी (खीर) एक टोप में निकाल लीजिए और तश्तरी (छोटी थाली) से ढंक दीजिए।छह-सात घण्टे बाद टोप पर रखी तश्तरी हटाकर देखें। गेहूँ का सत्त्व बर्तन में नीचे इकट्ठा हो जाता है और ऊपर निथार/पानी दिखायी देता है। ऊपर दिखायी देने वाले निथार/पानी को निकाल दीजिए। इस प्रकार से बने गेहूँ के सत्त्व को मरतबान या डिब्बे में भरकर रख दीजिए।पर्याय १:
स्थूल व्यक्तियों के लिए :-
१) गेहूँ का सत्त्व – एक कटोरी २) पानी – चार कटोरी ३) हिंग – एक छोटा चम्मच ४) नमक (स्वादानुसार) ५) पीसा हुआ जीरा (स्वादानुसार)ऊपरोक्त मिश्रण एक टोप में लेकर धीमी आंच पर पकायें। इस मिश्रण को बार बार हिलाते रहना जरूरी है, जिससे कि उसमें गुठलियां न बनें।पर्याय २:
कृश (पतले) व्यक्तियों के लिए :-
१) गेहूँ का सत्त्व – एक कटोरी २) घी – दो चम्मच ३) दूध – एक कटोरी ४) शक्कर – दो चम्मच ५) इलायची पावडर (स्वादानुसार)एक टोप में दो चम्मच घी डालकर सेंकें। अब उसमें गेहूँ का सत्त्व डाल दें। फ़िर उसमें एक कटोरी दूध और दो चम्मच शक्कर डालकर धीमी आंच पर पकायें। इलायची पावडर (आवश्यक हो तो) उसमें डालकर बार बार हिलाते रहें। मिश्रण में चमक आ जाने पर वह पक गया है, यह मानकर गॅस बंद कर दें।गेहूँ का सत्त्व दिन में एक बार प्रतिदिन सामान्यत: उपयोग में लायी जाने वाली कटोरी जितना खा सकते हैं।(सूचना: इस रेसिपी का व्हिडीयो जल्दीही उपलब्ध कराया जाऍगा) -
धारी माता का प्रकोप
हाल ही में उत्तराखंड में जलप्रलय हुआ जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर मानवहानी तथा वित्तहानी हुई। यह सारी ख़बरें हम समाचार पत्रों में और न्युजचॅनल्स् में देख ही रहें थे। कल प्रवचन के दौरान बापूजी ने इस घटना का उल्लेख किया। इस बात से सम्बंधित लेख आज के दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुआ है। उसका हिंदी अनुवाद यहॉं दे रहा हूँ।
श्रीधारा माता ऐसा माना जाता है कि चारधाम यात्रा करनेवाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा धारा माता करती है। इसीलिए सरकार उत्तराखंड के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित धारा माता का मंदिर न गिराया जाए, यह मांग पिछले दो सालों से की जा रही थी। स्थानिक जनता का विश्वास है कि धारा माता अलकनंदा नदी का प्रवाह नियंत्रित करती है और उसके नियंत्रण की वजह से अलकनंदा का स्वरूप सौम्य रहता है। इसी कारण स्थानिक धार्मिक संघटनाओं से लेकर सर्वसामान्य जनता तक सभी की यह बिनती थी कि धारा माता मंदिर के प्रति सरकार ऐसा निर्णय न ले। मगर विकास के लिए बिजली की जरूरत का कारण बताकर सरकार ने इस मांग को नजरंदाज कर दिया। १६ जून की शाम के छः बजे धारा माता का मंदिर गिराया गया। मंदिर में स्थित धारा माता की मूर्ती निकाली गई।उसी समय केदारनाथ में बादल फटा और तत्पश्चात दो घंटों में अतिवृष्टि ने तबाही मचा दी। चारधाम यात्रा के लिए हजारों की संख्या में आये हुए श्रद्धालू वहां फंस गए। मुसलाधार बारिश, भूस्खलन की वजह से फंसे हुए श्रद्धालुओं को बाहर निकालना मुश्किल हो गया और इस विपत्ति की तीव्रता बढती गई। इस तरह की विपत्ति आने पर इसकी जिम्मेदारों को ढूँढने की जिम्मेदारी अपनेआप प्रसारमाध्यम उठाते हैं। उत्तराखंड में आई हुई विपदा के बाद भी ऐसा ही हुआ। पीड़ितों की संख्या और फंसे हुए श्रद्धालुओं की जानकारी देते हुए, पर्यावरण के बारे में सोचे बगैर मूर्खों की तरह बनाई जानेवाली योजनाओं तथा प्रकल्पों की जानकारी देकर प्रसारमाध्यम सरकार की खिचाई कर रहे थे। मगर इन बातों को स्वीकार करने के बाद भी स्थानिक जनता धारा माता के गिराए हुए मंदिर की तरफ इशारा करके अपनी नाराजगी व्यक्त कर रही थी।श्रीधारा माता का मंदीर धारा माता का यह मंदिर पिछले ८०० सालों से था। यह प्राचीन बलस्थान माना जाता है। यह धारणा है कि धारा माता काली माता का ही रूप है। कहा जाता है कि इस बलस्थान की जानकारी श्रीमद्भागवत में दर्ज है।श्रीनगर (जम्मू-काश्मीर स्थित श्रीनगर नहीं) के पास कालियासुर नामक स्थान पर स्थित धारा माता का यह मंदिर स्थानिकों का श्रद्धास्थान है। यह पारम्पारिक सोच रही है कि धारा माता की मूर्ती बहुत ही उग्र होने के बावजूद माता द्वारा स्वीकारा हुआ यह रूप हमारे सुरक्षा के लिए ही है। इस पर आधारित ऐतिहासिक कथा भी बताई जाती है।सन १८८२ में एक सरफिरे राजा ने इसी तरह मंदिर से छेड़खानी करने की कोशिश की थी। ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त भी इसी तरह कुदरती संकट आया था। इसलिए सुरक्षा करनेवाली धारा माता के मंदिर के प्रति स्थानिक जनता की भावनाए बहुत तीव्र हों, तो इस में अचरज की कोई बात नहीं है।अंग्रेजी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/2013/06/28/the-wrath-of-the-dhari-devi-dhara-mata/मराठी मे पढने के लिये : http://aniruddhafriend-samirsinh.com/2013/06/28/धारा-देवीचा-धारा-माता-प्र/